Monday, July 14, 2025
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‘मनमोहन सिंह ने की थी मनमर्जी, मुसलमान स्पेशल क्लास नहीं’: सुप्रीम कोर्ट में सच्चर कमेटी की सिफारिशों को चुनौती

याचिका में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय से 9 मार्च 2005 को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि मनमोहन सिंह ने अपनी मर्जी से यह कदम उठाया था। 2005 की अधिसूचना में इस बात का जिक्र तक नहीं है कि इसे कैबिनेट चर्चा के बाद जारी किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट में सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने को चुनौती दी गई है। याचिका ‘सनातन वैदिक धर्म’ नामक संगठन के छह अनुयायियों ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि पिछड़े वर्गों के लिए उपलब्ध सुविधा का लाभ मुस्लिमों को नहीं मिल सकता। उन्हें विशेष वर्ग के तौर पर नहीं माना जा सकता। साथ ही इसे हिंदुओं के अधिकारों का उल्लंघन भी बताया गया है।

मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए किया था। वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर याचिका में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय से 9 मार्च 2005 को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि मनमोहन सिंह ने अपनी मर्जी से यह कदम उठाया था। 2005 की अधिसूचना में इस बात का जिक्र तक नहीं है कि इसे कैबिनेट चर्चा के बाद जारी किया गया था।

याचिका में दावा किया गया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपनी मर्जी से मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का परीक्षण करने के लिए समिति नियुक्त करने का निर्देश जारी किया जबकि अनुच्छेद 14 व 15 के आधार पर किसी भी धार्मिक समुदाय के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता। याचिका में कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की जाँच के लिए एक आयोग नियुक्त करने की शक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद-340 के तहत भारत के राष्ट्रपति के पास निहित है। समिति का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद-77 के उल्लंघन है। पूरे मुस्लिम समुदाय की पहचान सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में नहीं की गई है और इसलिए, मुसलमानों को, एक धार्मिक समुदाय के रूप में, पिछड़े वर्गों के लिए उपलब्ध लाभों के हकदार विशेष वर्ग नहीं माना जा सकता।

इसमें कहा गया है कि सच्चर समिति असंवैधानिक और अवैध है क्योंकि यह राष्ट्रपति के आदेश के तहत नहीं है। याचिका में कहा गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग की सामाजिक व आर्थिक स्थिति किसी भी अन्य समुदाय या धार्मिक समूह से भी बदतर है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति किसी भी अन्य समुदाय की तुलना में बदतर है और सरकार उनकी बेहतरी के लिए उचित कदम उठाने में विफल रही है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मुस्लिम समुदाय किसी विशेष व्यवहार का हकदार नहीं है, क्योंकि वे कई वर्षो तक शासक रहे हैं और यहाँ तक कि ब्रिटिश शासन के दौरान भी उन्होंने सत्ता का आनंद लिया, जबकि हिंदू समुदाय के एससी/एसटी वर्ग और ओबीसी को दबा दिया गया, प्रताड़ित किया गया, कुचला गया, या तो बल या लालच से कन्वर्ट किया गया और आज़ादी से पहले इन्हें अत्याचार का सामना करना पड़ा। सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह सच्चर समिति की रिपोर्ट पर भरोसा कर मुसलमानों के पक्ष में कोई नई योजना न लाए।

उल्लेखनीय है कि इस याचिका में यह भी कहा गया है कि ‘मुसलमानों की परिवार नियोजन में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसी वजह से उनका परिवार आमतौर पर काफी बड़ा होता है और बच्चों को उचित भोजन और पोषण नहीं मिल पाता है। इसके अनुसार समिति ने इन सभी पहलुओं पर कोई विचार नहीं किया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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