Thursday, April 25, 2024
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‘पिछले 7 सालों में 200 मूर्तियाँ विदेशों से भारत आईं’: PM मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा- भारत ने इसे Soft Power चैनल के रूप में इस्तेमाल किया

पीएम मोदी ने कहा कि पिछले 75 सालों से भारत के लोग अपनी भाषा, खानपान और भाषा को लेकर संकोच में जी रहे हैं। यह विश्व के किसी अन्य देश में नहीं होता। अपनी मातृभाषा को गर्व के साथ बोलना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार (27 फरवरी को) अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 86वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित किया। इसमें उन्होंने देश के बहुमूल्य धरोहरों को वापस लाने और मातृभाषा सहित तमाम विषयों पर बात की। प्रधानमंत्री ने कहा कि साल 2013 तक करीब 13 बहुमूल्य प्रतिमाएँ भारत आई थीं, लेकिन पिछले सात सालों में भारत ने 200 से अधिक मूर्तियों को विदेशों से भारत लाया है। इसके साथ ही उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीयों की सुरक्षा उनकी प्राथमिकता है।

पीएम मोदी बिहार के गया के कुंडलपुर मंदिर से चोरी हुई एक हजार साल से भी पुरानी भगवान अवलोकितेश्वर पद्मपाणि (भगवान गौतम बुद्ध) की मूर्ति को इटली से वापस लाया गया। उन्होंने कहा, “ऐसे ही कुछ वर्ष पहले तमिलनाडु के वेल्लूर से भगवान आंजनेय्यर (हनुमान जी) की प्रतिमा चोरी हो गई थी। हनुमान जी की ये मूर्ति भी 600-700 साल पुरानी है। इस महीने की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया में हमें प्राप्त हुई और हमारे मिशन को मिल चुकी है।”

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “हजारों वर्षों के हमारे इतिहास में देश के कोने-कोने में एक-से-बढ़कर एक मूर्तियाँ हमेशा बनती रहीं। इसमें श्रद्धा भी थी, सामर्थ्य भी था, कौशल्य भी था और विवधताओं से भरा हुआ भी था। हमारे हर मूर्तियों के इतिहास में तत्कालीन समय का प्रभाव भी नज़र आता है।” उन्होंने कहा ये भारत की मूर्तिकला के नायाब उदाहरण के साथ-साथ भारतीयों की आस्था से भी जुड़ी हुई थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अतीत में बहुत सारी मूर्तियाँ चोरी होकर भारत से बाहर गईं। कभी इस देश में तो कभी उस देश में। उनके लिए यह सिर्फ एक कलाकृति थी। उन लोगों को न उसके इतिहास से लेना-देना था और न श्रद्धा से। लेकिन, जिन देशों में ये मूर्तियाँ चोरी करके ले जाई गईं थीं, अब उन्हें भी लगने लगा कि भारत के साथ रिश्तों में soft power का जो diplomatic channel होता है, उसमें इसका भी बहुत बड़ा महत्व हो सकता है। पीएम मे कहा, “अमेरिका, ब्रिटेन, हॉलैंड, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, सिंगापुर, ऐसे कितने ही देशों ने भारत की इस भावना को समझा है और मूर्तियाँ वापस लाने में हमारी मदद की है।”

पीएम मोदी ने कहा, “इन मूर्तियों को वापस लाना, भारत माँ के प्रति हमारा दायित्व है। इन मूर्तियों में भारत की आत्मा का, आस्था का अंश है। इनका एक सांस्कृतिक-ऐतिहासिक महत्व भी है, क्योंकि इसके साथ भारत की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं, भारत की श्रद्धा जुड़ी हुई है और एक प्रकार से people to people relation में भी ये बहुत ताकत पैदा करता है।” पीएम ने कहा कि पिछले साल सितम्बर में जब वे अमेरिका गए तो वहाँ उन्हें काफी पुरानी-पुरानी कई सारी प्रतिमाएँ और सांस्कृतिक महत्व की चीजें मिलीं।

मातृ भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पीएम मोदी ने कहा कि जैसे अपनी माँ को नहीं छोड़ा जा सकता, उसी तरह मातृभाषा नहीं छोड़ी जा सकती। माँ और मातृभाषा मिलकर जीवन के आधार को मजबूत और चिरंजीवी बनाते हैं। अमेरिका एक तमिल परिवार का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि बहुत पहले जब वह अमेरिका गए थे तो देखा कि एक तमिल परिवार ने नियम बनाया था कि अगर वे शहर से बाहर नहीं है तो खाना हमेशा साथ खाते थे और अपनी तेलुगू भाषा में ही बात करते थे। यह नियम बच्चों पर भी लागू होता था। यह उनकी मातृभाषा के प्रति उनका प्रेम था।

पीएम मोदी ने कहा कि पिछले 75 सालों से भारत के लोग अपनी भाषा, खानपान और भाषा को लेकर संकोच में जी रहे हैं। यह विश्व के किसी अन्य देश में नहीं होता। अपनी मातृभाषा को गर्व के साथ बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में कई भाषाएँ और बोलियाँ होने के बावजूद वे एक-दूसरे से सिखती रहीं और परिष्कृत होती रहीं। विश्व की सबसे पुरानी भाषा तमिल है और यह एक भारत की भाषा है। इस पर सभी भारतीयों को गर्व होना चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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