महाराष्ट्र में रज़ा अकादमी और तहफ़ुज़ नमूस-ए-रिसालत बोर्ड व प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाले वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) ने महाराष्ट्र सरकार पर ‘पैगंबर मुहम्मद बिल’ लाने के लिए दवाब बनाने की कोशिश की है। ताकि पैगंबर मुहम्मद समेत दूसरे धर्मों के प्रतीकों के खिलाफ ईशनिंदा कानून लाया जा सके।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बिल के ड्राफ्ट को तैयार कर लिया गया है। इस बिल को ‘पैगंबर मुहम्मद बिल’ के रूप प्रमोट किया जा रहा है। इसका टाइटल ‘पैगंबर मुहम्मद और अन्य धार्मिक प्रमुखों की निंदा अधिनियम, 2021’ या ‘अभद्र भाषा (रोकथाम) अधिनियम, 2021’ रखा गया है।
महाराष्ट्र में अपना दबदबा रखने वाले मुस्लिम संगठन रज़ा अकादमी ने एक तरह से चेतावनी दी है कि ‘तहफ़ुज़ ए नमूस ए रिसालत’ विधेयक विधानसभा में पारित किया जाए। अन्यथा वो देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे।
Assembly Mein Tahaffuz e Namoos e Risaalat Bill Manzoor Kiya Jaaye – Hazrat Saiyyad Moin Miya
— Raza Academy (@razaacademyho) July 5, 2021
Hamare Jaayez Mutalbaat Agar Pure Nahi Hue To Hum Mulkgeer Ehtejaj Karenge – Raza Academy#RazaAcademy pic.twitter.com/Jc6SaOPWg5
वहीं ऑल इंडिया सुन्नी जमीयतुल उलेमा के अध्यक्ष मौलाना मोइन अशरफ कादरी (मोइन मियाँ) ने कहा, “यह हमारा सुझाव है, लेकिन सरकार इस बिल को जो नाम देना चाहे दे सकती है। हमारी माँग है कि हमारे पवित्र पैगंबर और सभी देवी-देवताओं और धर्मगुरुओं की निंदा, उपहास और अपमान को रोकने के लिए कड़ा कानून होना चाहिए। साम्प्रदायिक लड़ाइयाँ इसलिए हो रही हैं क्योंकि हमारा मौजूदा कानून उपद्रवियों को रोक पाने में असफल है।”
संविधान की धारा 295 (A) और ‘रंगीला रसूल’ का केस
भारत में ईशनिंदा से जुड़ा कोई कानून नहीं है। लेकिन, भारतीय दंड संहिता में एक कानून ऐसा है जो जानबूझकर किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों के खिलाफ जेल और जुर्माने का प्रावधान करता है। आईपीसी की धारा 295 (A) के तहत अगर आरोपित ने ‘जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से’ किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई है तो उसे जुर्माने के साथ 3 साल तक की सजा हो सकती है।
इंडियन पीनल कोड की धारा 295 (A) का मामला बहुत ही दिलचस्प रहा है। इसकी शुरुआत वर्ष 1923 में गुलाम भारत में हुई थी। उस दौरान कट्टरपंथी मुस्लिमों ने भगवान श्री कृष्ण समेत दूसरे देवी देवताओं को लेकर अपमानजनक और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हुए ‘कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी’ और ‘यूनिसेवी सादी का महर्षि’ नाम की दो अत्यधिक विवादित पुस्तकें प्रकाशित की। पहले में भगवान श्री कृष्ण तो दूसरे में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती को लेकर बहुत ही अपमानजनक टिप्पणी की गई थी। खास बात ये है कि इस पुस्तक को एक अहमदी मुस्लिम ने लिखा था। उस समय तक धारा 295(A) अस्तित्व में नहीं था।
मुस्लिमों की इस हरकत के जवाब में महाशय राजपाल के करीबी दोस्त पंडित चामुपति लाल ने इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद की एक छोटी सी जीवनी लिखी। ‘रंगीला रसूल’ के शीर्षक वाला यह छोटा पैम्फलेट पैगंबर मोहम्मद के जीवन पर एक व्यंग्यपूर्ण कहानी थी। इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए पंडित चामुपति ने महाशय राजपाल से वादा लिया कि वह कभी भी इसके लेखक के नाम को उजागर नहीं करेंगे।
यह पैम्फलेट ऐतिहासिक रूप से हदीसों के इतिहास पर आधारित था और पूरी तरह से सटीक था। लेकिन इससे लाहौर के मुस्लिम पूरी तरह से आक्रोशित हो उठे। यह ऐसा मामला था कि लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया और इसका पहला संस्करण बहुत ही जल्द बिक गया। इसके प्रकाशित होने के करीब एक महीने के बाद जून 1924 में महात्मा गाँधी ने अपने साप्ताहिक ‘यंग इंडिया’ जर्नल में इसकी कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि यह राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है।
इस मामले में लाहौर उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि यह लेख मुस्लिम समुदाय को ‘आक्रोशित’ करने वाला था। कानूनी तौर पर इसका अभियोजन इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि धारा 153 (A) के तहत लेखन विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी या नफरत का कारण नहीं बन सकता। कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिमों के आक्रोश ने तत्कालीन शाषकों को कानून बदलने और धारा 295 (A) लागू करने के लिए मजबूर कर दिया था।
घटना के बाद 6 सितंबर, 1929 को इल्म उद दीन नाम के एक 19 वर्षीय मुस्लिम बढ़ई ने अपनी दुकान के बाहरी बरामदे में बैठे हुए महाशय राजपाल की छाती पर आठ बार हमला किया। चोट लगने से महाशय राजपाल की मौत हो गई।
सबसे खास बात यह थी कि इल्म उद दीन खुद अनपढ़ था और उसने अपने जीवन में रंगीला रसूल या कोई दूसरी किताब नहीं पढ़ी थी। बावजूद इसके मुस्लिम संगठनों और मौलानाओं ने उसके अंदर इतनी नफरत भर दिया था कि उसने महाशय राजपाल की हत्या कर दी। उसे लगा कि राजपाल ने ‘ईशनिंदा’ की है।
जब इल्म उद दीन को हत्या का दोषी ठहराया गया था तो उर्दू कवि इकबाल और जिन्ना ने हत्या जैसे जघन्य अपराध को एक शानदार धार्मिक कार्य बताते हुए उसकी सराहना की थी।
हत्यारे इल्म उद दीन को धार्मिक नायक बताते हुए ‘गाजी’ के रूप में उसका महिमामंडन किया गया। पाकिस्तान में उसकी एक मजार भी है। मजार में वार्षिक उर्स आयोजित किया जाता है। वहाँ पर मुस्लिम ‘गाजी इल्म उद दीन’ को श्रद्धाँजलि देते हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि ईशनिंदा कानून नहीं होने के बावजूद कट्टर मुस्लिमों को पैगंबर के कथित ‘अपमान’ के बदले के तौर पर हत्या और आगजनी करने से रोका नहीं गया। कई साल पहले पैगम्बर मुहम्मद को लेकर दिए गए बयान के बदले के तौर वर्ष 2019 में हिंदू महासभा के पूर्व नेता कमलेश तिवारी के घर में घुसकर कट्टरपंथी मुस्लिमों ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी थी।
वर्ष 2020 में एक विधायक के रिश्तेदार ने कथित तौर पर मोहम्मद पैगंबर पर फेसबुक में टिप्पणी कर दी थी, जिसके बाद हिंसक भीड़ ने दो पुलिस स्टेशनों को आग लगा दी। इसी तरह से 2015 में फ्रेंच मैगजीन शार्ली हेब्दो के ऑफिस में घुसकर 12 लोगों की हत्या कर दी गई थी।