Saturday, May 4, 2024
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9वीं सदी के चोल राजाओं से IAS अधिकारी ने ली प्रेरणा, 2020 में बदल दी पानी को तरस रहे एक जिले की सूरत

विक्रांत राजा को यह सब करने की प्रेरणा 9वीं शताब्दी के चोल राजवंश से मिली। बकौल राजा, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि स्कूल के समय इतिहास के जिस हिस्से ने उन्हें बेहद प्रभावित किया था उसे जिलाधिकारी के तौर पर अमल में लाने का मौका मिलेगा।

हर साल देश के कई राज्य सूखे की चपेट में आते हैं। जलस्तर लगातार नीचे गिरता चला जा रहा है। इसके पीछे के कारण नए नहीं हैं। जल संचयन के परंपरागत तरीकों से दूरी इसका एक प्रमुख कारण है। लेकिन, अब एक बार फिर सरकारें उन्हीं परंपराओं की ओर लौटने को मजबूर हैं, जिन्हें विकास के नाम पर पीछे धकेल दिया गया था।

केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी के कराईकल ज़िले को पिछले साल बारिश की कमी और कावेरी नदी से पानी की आपूर्ति न मिलने के कारण सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया था। सूखे के कारण यहाँ के लोग बेहद निराश थे। जिले में सूखे से परेशान किसान अपनी जमीन का केवल पाँचवां हिस्सा ही खेती के लिए प्रयोग करते थे। एक बाल्टी पानी के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता था। अत्यधिक दोहन के कारण भू जलस्तर 200 से 300 फीट नीचे चला गया था।

हालात कुछ ऐसे थे कि लोग गाँव छोड़कर दूर शहरों में जाने लगे। जो लोग गाँव में रह गए वह बद से बदतर ज़िंदगी जीने को मजबूर थे। ऐसे समय में विक्रांत राजा जिलाधिकारी बन कराईकल आते हैं। सूखे की मार झेल रहे लोगों की समस्याओं को दूर करना राजा की असली परीक्षा थी। राजा ने बिना देरी किए लोगों की प्यास बुझाने की एक योजना बनाई।

29 वर्षीय विक्रांत राजा ने द बेटर इंडिया से बातचीत में कहा, “तमिलनाडु का मूल निवासी होने के नाते, मैंने
कराईकल जैसी जगहों के बारे में पर्याप्त किस्से सुने थे। मुझे अपनी कृषि गतिविधियों के लिए ‘द राइस बाउल’ कहकर बुलाया जाता था। मॉनसून और कावेरी नदी पर निर्भरता के कारण सूखे ने कराईकल की कमर तोड़ दी थी। इसके बाद प्रदूषित जल निकायों और अतिक्रमणों की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता थी।”

योजना के मुताबिक राजा ने ‘नाम नीर ‘(हमारा जल) नाम से एक परियोजना की शुरुआत की। योजना को नाम के अनुरूप स्थानीय लोगों, शैक्षणिक संस्थानों, मंदिर अधिकारियों, कॉरपोरेट्स और सरकारी अधिकारियों के सामूहिक प्रयासों से लागू किया गया। विक्रांत राजा उपदेश की बजाय जमीनी कार्य पर यकीन करते हैं। तालाब पुनरुद्धार के लिए सरकारी अधिकारियों को सामाजिक जिम्मेदारी सौंपी गई। राजा और उनकी टीम ने इसकी शुरूआत कराईकल के प्रसिद्ध मंदिर, थिरुनलारु से जुड़े तालाब से की। शुरुआत भी कुछ ऐसे कि तीन हफ्तों से भी कम समय में उनके पास एक तालाब था। जैसा वह चाहते थे।

राजा बताते है कि पहली सफलता के बाद हम लोक निर्माण और आम जनता जैसे अन्य विभागों के अधिकारियों का ध्यान अपनी कार्यों की ओर आकर्षित करने में कामयाब रहे। यह सब तब और तेज हुआ कि जब सरकारी अधिकारियों द्वारा करीब 35 तालाबों को पूरी तरह से व्यवस्थित कर दिया गया। इसके बाद तो राजा ने एक महीने के लिए ज़िले में जागरूकता अभियान चलाया। राजा ने इस अभियान से जुड़ने के लिए लोगों को स्वयंसेवक बनाने का अनुरोध किया।

वहीं सरकारी तंत्र से भी अभियान को कुछ इस तरह से मदद की गई कि मनरेगा योजना के तहत प्रत्येक गाँव को एक तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए कहा गया। यह इतना सफल रहा कि इस अभियान से 85 तालाब का
पुनरुद्धार हुआ। अधिकांश तालाब मंदिरों के किनारे होते हैं तो उनके अधिकारियों से उसकी सफाई कराने को कहा गया। इससे करीब 30 तालाबों का पुनरुद्धार हुआ। इसके लिए मंदिर समितियों ने अपने स्तर पर मंदिर के धन का प्रयोग किया।

इसके अलावा, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के जरिए 20 तालाबों को प्रमुख नहर से जोड़ा गया। इससे कावेरी नदी से कृषि क्षेत्रों तक पानी का प्रवाह सुलभ हुआ। सबसे अच्छी बात यह कि ज्यादातर मामलों में लोगों और संगठनों ने पैसा न देकर मुफ्त सेवाओं या सामग्री की पेशकश की। इस अभियान को लोगों तक पहुँचाने के लिए प्रशासन की ओर से एक अपील की गई। इसमें कहा गया कि लोग अपने पसंदीदा अभिनेताओं या परिवार या दोस्तों के जन्मदिन के अवसर पर तालाब की सफाई करें। इस अभियान से छात्र बड़ी संख्या में जुड़े और यह बेहद सफल रहा। कुल मिलाकर इस अभियान के तहत 450 प्रदूषित क्षेत्रों और पूरी तरह से सूख चुके 178 जल स्रोतों को तीन माह के अंदर पुनर्जीवित कर दिया गया।

इतनी ही नहींं इसके बाद जल केंद्रों से जुड़े क्षेत्रों का सौन्दर्यीकरण करने के लिए सभी लोगों ने करीब 25,000 पौधे लगाए। इस अभियान का असर कुछ इस तरह हुआ कि पोवम नामक एक छोटे से गाँव में किसानों ने 15 साल बाद कृषि कार्य फिर से शुरू कर दिया।

विक्रांत राजा को यह सब करने की प्रेरणा 9वीं शताब्दी के चोल राजवंश से मिली। बकौल राजा, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि स्कूल के समय इतिहास के जिस हिस्से ने उन्हें बेहद प्रभावित किया था उसे जिलाधिकारी के तौर पर अमल में लाने का मौका मिलेगा।

आपको बता दें कि एक समय था जब चोल वंश के तहत 400 से अधिक जलाशयों के साथ कराईकल जिला फलता-फूलता था। बाढ़ प्रबंधन के कारण कावेरी के पानी को कृषि क्षेत्रों में बहने से रोक दिया गया था। इसके चलते चोल शासकों के अधीन इंजीनियरों ने वर्षा जल को संरक्षित करने वाले चैनलों और बंडों का एक नेटवर्क बनाया, जिसके माध्यम से प्रचुर मात्रा में उपयोग के लिए पानी सुनिश्चित किया गया।

डिप्टी कलेक्टर (आपदा प्रबंधन) एस. भास्करण बताते हैं कि जब लोग तालाब पर निर्भर थे, तो उन्होंने इसकी देखभाल की। जब कुएँ पर आए, तो वे तालाबों को भूल गए। जब हैंडपंप आया तो कुएँ उपेक्षित हो गए। जब पाइप से पानी की आपूर्ति शुरू हुई तो हैंड पंपों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। जिले में लगातार भूजल स्तर का गिरना जल स्त्रोतों की उपेक्षा का ही परिणाम है।

इस सफल अभियान पर डिप्टी कलेक्टर (राजस्व) एस प्रवेश कहते हैं कि पर्यावरण की रक्षा करने के लिए सार्वजनिक भागीदारी सबसे बड़ी कुंजी है। हमें ग्रामीणों को यह समझाने की आवश्यकता है कि ये संसाधन उनके अपने हैं। ‘नाम नीर’ ने लोगों को यह संदेश देने में पूरी सफलता प्राप्त की। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए विक्रांत राजा ने बताया कि 2018-2019 के बीच कराईकल के भूजल स्तर में 10 फीट की वृद्धि हुई है।

करीब तीन साल तक इस जिले को देने के बाद बीत दिनों राजा को मुख्यमंत्री वी नारायणसामी के सचिव के रूप में तैनाती मिली है। उनकी शुरू की गई परियोजना का दूसरा चरण इस साल मॉनसून के बाद शुरू होगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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