राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित कुशलगढ़ के दशहरा मैदान में जनजाति सुरक्षा मंच ने रविवार (24 अप्रैल, 2022) को महासम्मेलन का आयोजन किया। इस दौरान आदिवासियों के धर्मांतरण का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया। मंच के पदाधिकारियों ने एक सुर में धर्मांतरण कर दूसरे धर्म को अपनाने वाले लोगों को जनजाति कोटे के तहत मिलने वाले आरक्षण को भी छोड़ने को कहा। इसके साथ ही ऐसे लोगों को समाज से बाहर निकालने की भी माँग उठी।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे बंशीलाल कटारा ने कहा कि आदिवासी हमेशा से धर्म की रक्षा करता आया है। हम धूनी, धाम और धर्मध्वजा की रक्षा करेंगे। उन्होंने जनजातियों की सुरक्षा के मुद्दे को सड़क से संसद और सरपंच से सांसद तक का आंदोलन का ऐलान किया। कटारा कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में एससी/एसटी की भारतीय एवं राज्यवार, आरक्षण और संरक्षण के लिए राष्ट्रपति से सूची जारी कराने का प्रावधान है। इसके मुताबिक, अपना धर्म छोड़कर ईसाई और मुस्लिम बने लोगों को एससी कोटे के तहत आरक्षण की सुविधा नहीं मिल सकती है।
हालाँकि, ऐसे लोग एसटी की सूची में शामिल हो सकते हैं। जब भी आदिवासी धर्मांतरण कर ईसाई धर्म में शामिल होता है, तो वे भारतीय ईसाई कहलाते हैं। ऐसे में वो अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं। इस तरह से ये ईसाई और मुस्लिम, दोनों मजहबों में जाकर लाभ लेते हैं।
चर्चा के दौरान इस बात का भी जिक्र किया गया कि 1968 में पूर्व सांसद कार्तिक उराँव ने एक स्टडी के जरिए दावा किया था कि देश के 5 प्रतिशत ईसाई भारत के 62 प्रतिशत से अधिक एसटी कोटे से मिलने वाले राजकीय अनुदानों का फायदा उठा रहे हैं।
बीजेपी के जनजाति मोर्चा ने भी की यही माँग
इसी तरह से भाजपा की जनजातीय मोर्चा के नेताओं ने भी ईसाई और मुस्लिम धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को आरक्षण से बाहर करने की माँग उठाई थी।