Friday, April 26, 2024
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‘गाय को बचा लो, उठा कर ले जा रहे तस्कर’ – फोन पर हँसती रही राजस्थान पुलिस, फिर गोरक्षकों पर हंगामा क्यों?

जब स्थानीय व्यक्ति ने पुलिस को कॉल किया तो पुलिसकर्मी गाय की तस्करी (गो-तस्करी) होने की सूचना को नज़रअंदाज़ करते हुए और शिकायतकर्ता की बातों से बेखबर अपने साथियों के साथ हँसते व बातचीत करते हुए पाए गए।

राजस्थान के भरतपुर से पुलिस का एक संवेदनहीन चेहरा उजागर हुआ है। एक स्थानीय व्यक्ति ने पीसीआर को कॉल कर के गाय की तस्करी (गो-तस्करी) किए जाने की सूचना दी लेकिन पुलिस ने इस पर कोई कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाई। जब स्थानीय व्यक्ति ने पुलिस को कॉल किया तो पुलिसकर्मी गाय की तस्करी (गो-तस्करी) होने की सूचना को नज़रअंदाज़ करते हुए और शिकायतकर्ता की बातों से बेखबर अपने साथियों के साथ हँसते व बातचीत करते हुए पाए गए।

दरअसल, गो-तस्करों ने गाय को SUV वैन में डाला और उसे लेकर चले गए। ‘टाइम नाउ’ के अनुसार, जब स्थानीय नागरिक राजकुमार सिंह ने गाय की तस्करी होने की सूचना दी तो पुलिसकर्मी हँसी-मजाक कर रहे थे। सीसीटीवी वीडियो फुटेज में तीन तस्करों (जिनमें से एक संभवतः ड्राइवर है) को गाय को गाड़ी में डालते हुए देखा जा रहा है। वो गाय को किसी तरह से अंदर गाड़ी में डालने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें निर्दोष जानवर के पाँव मुड़ जाते हैं।

‘टाइम्स नाउ’ के रिपोर्टर ने खबर का विवरण देते हुए कहा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जो राज्य के गृह मंत्री भी हैं – उनके राज्य में न तो सड़कों पर महिलाएँ सुरक्षित हैं और न ही गायें सुरक्षित हैं। ये मामला शुक्रवार (अक्टूबर 9, 2020) का है, जब गो-तस्करों ने भरतपुर के कोतवाली थाने से कुछ ही दूर इस वारदात को अंजाम दिया। पास के ही एक मकान में लगी सीसीटीवी में ये घटना कैद हो गई।

बताया गया है कि जब स्थानीय व्यक्ति ने इस घटना को देख कर पुलिस को सूचना दी तो वो हँसते हुए आपस में ही बातचीत करते रहे। इस घटना के 48 घंटे बीत जाने के बावजूद गाय तो दूर, भरतपुर पुलिस अब तक उस गाड़ी का भी पता नहीं लगा पाई है, जिस में गाय को ठूँस कर तस्कर ले गए। अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई न होने से पता चलता है कि पुलिस इस घटना को कितने हल्के में ले रही है।

आखिर स्थानीय व्यक्ति जब गो-तस्करो को पकड़ने के लिए खुद ही बीड़ा उठाते हैं तो इस पर जम कर हंगामा होता है। लेकिन, अगर उनकी शिकायतों को नज़रअन्दाज़ कर पुलिसकर्मी आपस में हँसते-बतियाते रहेंगे तो क्यों न ग्रामीण भी गाय को बचाने के लिए खुद ही निकल पड़ें? और, क़ानूनी के निकम्मेपन के कारण ही ऐसा होता है। इसी क्रम में कभी गोरक्षक क़ानून भी अपने हाथ में ले लेते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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