Monday, December 2, 2024
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जब हो रही जनसंख्या नियंत्रण पर बहस, तब मोहन भागवत ने यूँ ही नहीं छेड़ी 3 बच्चों की बात: फर्टिलिटी रेट के आँकड़े बता रहे हैं खतरा कितना बड़ा, TFR से ही टेंशन में हैं कोरिया-जापान

टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) की बात RSS प्रमुख ने की वह जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख संकेतक है। 15 से 49 वर्ष की कोई महिला इन वर्षों में कितने बच्चों को जन्म देगी, वह TFR कहलाता है। देश भर की इस आयु की महिलाओं द्वारा जन्म दिए गए बच्चों की संख्या का औसत निकाला जाए तो राष्ट्रीय TFR मिलता है।

भारत वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन चुका है। बीते कई दशकों से यह बहस होती आई है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई कानून बनाया जाना चाहिए। कई जगह अधिक बच्चे वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं से वंचित करने सम्बन्धी कदम उठाने की भी बात हुई है। इन सबके बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि देश में दम्पत्तियों को 3 बच्चे पैदा करने की जरूरत है। उन्होंने इसके लिए टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) के संबंध में बात की है।

RSS प्रमुख ने क्या कहा?

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने यह बयान रविवार (1 दिसम्बर, 2024) को नागपुर में एक सार्वजनिक कायर्क्रम में दिया। उन्होंने कहा, “जनसंख्या में गिरावट चिंता का विषय है। आधुनिक जनसंख्या शास्त्र कहता है कि जब किसी समाज की जनसंख्या का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 से नीचे चला जाता है तो वह समाज पृथ्वी से खत्म हो जाता है, उसे कोई नहीं मारेगा। कोई संकट न होने पर भी वह समाज नष्ट हो जाता है। उस प्रकार अनेक भाषाएँ और समाज नष्ट हो गये।”

उन्होंने आगे कहा, “TFR 2.1 से नीचे नहीं जाना चाहिए, हमारे देश की जनसंख्या नीति 1998 या 2002 में तय की गई थी। लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि किसी समाज का TFR 2.1 से कम नहीं होनी चाहिए। अब पाॅइंट वन तो इन्सान जन्म नही ले सकता, इसलिये हमे दो से ज्यादा तीन की जरुरत है यही जनसंख्या विज्ञान कहता है।”

उनके इस बयान को लकर असदुद्दीन ओवैसी, कॉन्ग्रेस और सपा ने विरोध जताया। हालाँकि, उनका यह बयान किसी राजनीतिक मुद्दे को लेकर नहीं था। RSS मुखिया मोहन भागवत ने इस बयान में जो चिंता जताई है, वह जायज भी है और उसकी पुष्टि खुद भारत सरकार के आँकड़े करते हैं।

भारत की वर्तमान में जनसँख्या 140 करोड़ से अधिक है। ऐसे में यदि को अधिक बच्चे पैदा करने सम्बन्धी बात करे तो यह काफी अटपटा लगता है। लेकिन यह तर्क पर 100% खरा है और जिन देशों ने समय रहते इस पर एक्शन नहीं लिया, वह आज बड़ी समस्याओं में घिर चुके हैं। भारत में यह समस्या समझने के लिए पहला डाटा समझते हैं।

क्या कहते हैं आँकड़े?

दरअसल, जिस टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) की बात RSS प्रमुख ने की वह जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख संकेतक है। 15 से 49 वर्ष की कोई महिला इन वर्षों में कितने बच्चों को जन्म देगी, वह TFR कहलाता है। देश भर की इस आयु की महिलाओं द्वारा जन्म दिए गए बच्चों की संख्या का औसत निकाला जाए तो राष्ट्रीय TFR मिलता है।

इससे यह भी पता चलता है कि भविष्य में सामाजिक और आर्थिक रूप से देश की क्या स्थिति होगी और उसकी जरूरतें क्या होगीं। भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट जानने के लिए सरकार एक सर्वे करवाती है। यह सर्वे 1990 के दशक से हो रहे हैं। यह नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के नाम से जाना जाता है।

अब तक इसके 5 सर्वे हो चुके हैं। सबसे नया सर्वे 2019-20 के बीच किया गया था। इस सर्वे के अनुसार, वर्तमान में देश का TFR 1.99 है। यह आँकड़ा चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि यह उस स्तर से कम है, जितना यह होना चाहिए। जनसंख्या विज्ञानियों के अनुसार, किसी भी समाज का औसत TFR 2.1 होना चाहिए।

यदि किसी समाज का TFR 2.1 होगा तभी वह अपनी वर्तमान जनसंख्या बरकरार रख पाएगा। इस रिप्लेसमेंट लेवल TFR कहते हैं। यदि यह आँकड़ा इससे नीचे जाता है तो जनसंख्या आगामी समय में घटती जाएगी। भारत में यह आँकड़ा 2.1 से नीचे आ चुका है। ऐसे में यह चिंता का विषय होना चाहिए।

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने भी यही चिंता जताई। भारत से संबंधित आँकड़ों के भीतर जाया जाए, तो और भी चिंताजनक तस्वीर सामने आती है। आँकड़े दिखाते हैं कि मुस्लिमों को छोड़ कर देश के किसी भी धर्म की महिलाओं का रिप्लेसमेंट लेवल TFR 2.1 नहीं है।

मोहन भागवत tfr

इस ग्राफ से यह समस्या समझी जा सकती है। 1990 के दशक में उदारीकरण और शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ने के कारण लगातार देश में सभी समाज में तेजी से TFR में गिरावट आई है। इसका असर यह है कि हिन्दू, सिख और जैन धर्म 2 से नीचे आ चुके हैं।

ग्राफ में दिखता है कि देश के TFR में 1992-93 से अब तक 41% की कमी आ चुकी है। वर्तमान में मुस्लिमों का ही देश में TFR 2.1 के स्तर से ऊपर है। उनका TFR वर्तमान में 2.36 है।

घटता TFR समस्या क्यों?

घटता TFR वर्तमान में जापान, कोरिया, चीन समेत तमाम पश्चिमी देशों की समस्या है। जापान और कोरिया में यह समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। कोरिया में वर्तमान में TFR 0.7 है। यानी औसतन एक महिला एक भी बच्चे को जन्म नहीं दे रही है। यह विश्व में सबसे कम है। कोरिया ने इस समस्या से लड़ने के लिए पुरुषों की पेड छुट्टियों में तक बढ़ोतरी की है।

इसके अलावा इस छुट्टी की अवधि 90 दिन से 120 दिन कर दी है। सरकार ने यह भी फैसला लिया है कि जिन भी घरों में 1 वर्ष के कम की आयु के बच्चे हैं, उन्हें ₹63,500/माह देगी। वहीं 2 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के घरों को सरकार ने ₹42000 से अधिक देने की घोषणा भी की है।

कम TFR के चलते कोरिया की जनसंख्या भी घटने लगी है। उसकी जनसंख्या 2018 में 5.18 करोड़ थी जो कि अब घट कर लगभग 5.16 करोड़ हो गई है। कोरिया को चिंता है कि यदि उसकी इसी तरह जनसंख्या घटती रही तो उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर काम करने वाले लोगों तक की समस्या झेलनी पड़ेगी। कोरिया के जैसे ही हाल जापान का है।

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के एक वरिष्ठ सलाहकार ने हाल ही में कहा था कि यदि जापान में जन्म दर नहीं सुधरी तो देश एक दिन गायब हो जाएगा। जापान का TFR 1.26 है। यह लगातार घटता जा रहा है। इस घटते TFR के चलते जापान की लगभग 33% जनसंख्या अब 65 वर्ष या उससे अधिक है। जापान को इसके चलते श्रमिक समस्या से भी जूझना पड़ रहा है।

जापान की सरकार ने भी इसको लेकर कई कदम उठाए हैं। चीन का भी यही हाल है। चीन ने समस्या को भांपते हुए 1979 में लगाया गया एक बच्चा नियम 2016 में हटा दिया था। हालाँकि, इसके बाद भी चीन की जनसंख्या पिछले 2 साल से घट रही है।

यदि इन सब देशों के उदारहण को देखा जाए तो RSS प्रमुख की बात समय से पहले दी गई चेतावनी लगती है। RSS प्रमुख के बयान को खारिज करने वालों को भी यह उदाहरण देखने चाहिए। भारत भी समस्या रहते अगर चेत जाता है तो उसे ना आगे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता करनी होगी और ना ही उसे बूढ़ी होती जनसंख्या का दंश झेलना पड़ेगा।

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