Sunday, July 13, 2025
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संभल की जिस इमारत को मुस्लिम कहते हैं जामा मस्जिद उसकी फर्श से लेकर छत तक सब बदल दिया, कोर्ट से माँग- ASI को मिले कंट्रोल, आम लोगों को प्रवेश की हो इजाजत

शाही मस्जिद के कमेटी के प्रमुख जफर अली ने इस हलफनामे के बाद कोर्ट में माना कि मस्जिद 1920 से एएसआई संरक्षित स्मारक है और इसमें उन्हें किसी प्रकार का बदलाव कराने की इजाजत नहीं है। लेकिन फिर भी यहाँ परिवर्तन हुए।

उत्तर प्रदेश के संभल के शाही जामा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर केस में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर दिया है। इस हलफनामे को दायर करते हुए अदालत को बताया गया कि कैसे 1920 से एएसआई पर ही इस मस्जिद के संरक्षण और रखरखाव की जिम्मेदारी है, लेकिन बावजूद इसके उन्हें लंबे समय से मस्जिद में जाने नहीं दिया गया।

ASI ने जहाँ अपने लिखित बयान में माँग की कि शाही जामा मस्जिद का कंट्रोल और प्रबंधन उन्हें वापस मिले। वहीं केंद्र के वकील विष्णु शर्मा ने कानून के उल्लंघन का हवाला देते हुए माँग की कि मस्जिद में आम लोगों को जाने की भी इजाजत दिया जाए।

एएसआई की ओर से अदालत में दावा किया है कि 1920 में केंद्रीय संरक्षित स्मारक घोषित की गई शाही जामा मस्जिद की संरचना में कई बार बदलाव किए गए हैं। इस हलफनामे में यह भी कहा गया है कि मस्जिद कमेटी ने एएसआई के सर्वेक्षण कार्य में रुकावट डाली। एएसआई ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मस्जिद कमेटी ने उनकी टीम को कई बार सर्वेक्षण कार्य करने से रोका। इस दौरान केंद्र के वकील विष्णु शर्मा ने अदालत में एएसआई के जवाब के साथ कुछ तस्वीरें भी पेश कीं, जो मस्जिद में किए गए बदलावों का प्रमाण देती हैं।

बता दें कि संभल की जामा मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि ये स्थान हरिहर मंदिर का है और 1529 में यहाँ एक मस्जिद बनाई गई थी। इसी दावे के बाद कोर्ट ने सर्वे को मंजूरी दी मगर ASI अधिकारियों के अनुसार, मस्जिद तक जाने पर उन्हें लगातार अवरोधों का सामना करना पड़ा, जिसके चलते ASI को मस्जिद के वर्तमान स्वरूप और उसमें हुए परिवर्तनों की जानकारी नहीं मिल पाई।

हालाँकि पता हो कि इस मस्जिद का पहले दौरा 1998 में हुआ था और उसके बाद प्रशासन और पुलिस के सहयोग से 26 जून 2024 को ASI की टीम को मस्जिद का निरीक्षण करने का अवसर मिला था, जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण बदलाव देखे थे। इन सबके बारे में कोर्ट को अवगत कराया गया है।

एएसआई ने बताया कि मस्जिद में प्राचीन इमारतों और पुरातात्विक अवशेषों के संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधानाओं का उल्लंघन हो रहा है। ASI ने बताया कि मस्जिद की सीढ़ियों पर अवैध स्टील रेलिंग लगाई गई है, जिसके खिलाफ 19 जनवरी 2018 को FIR दर्ज कराई गई थी (यह कॉपी भी कोर्ट को दी गई है)। यह रेलिंग उनकी बिना अनुमति के लगी है।

इसी तरह मुख्य हॉल के हौज का पत्थर लगाकर नवीनीकरण किया गया है, जिससे मस्जिद का मूल स्वरूप प्रभावित हुआ है। इसके अलावा, मुख्य द्वार से अंदर आते ही पुराने फर्श को बदलकर नया फर्श लगाया गया है। वहीं मुख्य हॉल के गुंबद से लोहे की चेन से कांच का झूमर लटकाया गया है।

आगे एएसआई ने यह भी कहा कि मस्जिद को इनेमल पेंट की मोटी परतों से पूरी तरह से पेंट किया गया है और प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग किया गया है, जिससे मस्जिद की ऐतिहासिकता खत्म हो रही है। इसके अलावा बता दें कि मस्जिद में एएसआई ने कई अतिरिक्त निर्माण कार्य भी देखे। जैसे मस्जिद में छोटे कमरे बंद किए जा चुके हैं। वहीं मस्जिद के 1875-76 के रेखा चित्र देखने पर भी सामने आता है कि मस्जिद के ऊपर हिस्से पर कुछ कमाननुमा स्ट्रक्चर था, जो कि अब नहीं है।

उल्लेखनीय है कि शाही मस्जिद के कमेटी के प्रमुख जफर अली ने इस हलफनामे के बाद कोर्ट में माना कि मस्जिद 1920 से एएसआई संरक्षित स्मारक है और इसमें उन्हें किसी प्रकार का बदलाव कराने की इजाजत नहीं है। लेकिन फिर भी यहाँ परिवर्तन हुए। जफर ने यह भी बताया कि मस्जिद में एक ऐसा कमरा और कुआं भी है जो 100 साल पुराना है। अब कोर्ट इस पूरे मामले में अगली सुनवाई 8 जनवरी 2025 को होनी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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