उत्तर-पूर्वी दिल्ली में इस साल फरवरी में हुए दंगों के सिलसिले में पुलिस पिछले कुछ दिनों से चार्जशीट दाखिल कर रही है। अलग-अलग मामलों में जब से चार्जशीट दाखिल करने का सिलसिला शुरू हुआ है, तभी से पुलिस और प्रशासन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। एक विशेष वर्ग द्वारा आरोपितों को छात्र बताकर, प्रेगनेंसी का हवाला देकर एक अलग नैरेटिव गढ़ी जा रही है कि ‘मासूमों’ को फँसाया जा रहा है, क्योंकि वो ख़ास मजहब से हैं। जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है।
इस मुद्दे पर पूरी सच्चाई सामने लाने के लिए हमने ग्रुप ऑफ इंटेलेक्चुअल एंड एकेडेमिक्स (GIA) की कन्वीनर और सुप्रीम कोर्ट की वकील मोनिका अरोड़ा के साथ बातचीत की।
हमने उनसे दंगों को लेकर किस तरह की प्लानिंग की गई थी और किस तरह से इसे एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पेश किया गया, इस पर विस्तार से प्रकाश डालने के लिए कहा। मोनिका अरोड़ा ने बताया कि दंगे तो 24 और 25 फरवरी को हुए थे, लेकिन इसकी योजना दिसंबर से ही बननी शुरू हो गई थी। ये एक सोची-समझी साजिश थी। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2019 में जब CAA आया और कहा गया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांगलादेश से प्रताड़ित होकर भारत आए हिंदुओं को नागरिकता दी जाएगी, तभी से साजिशें शुरू हो गई थी।
उन्होंने कहा कि इस एक्ट में समुदाय विशेष के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा गया था, मगर फिर भी फर्जी जानकारी फैलाई गई और इसके तहत हेट स्पीच दिए जाने लगे। कॉन्ग्रेस ने दिल्ली की रैली में लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाया। सोनिया गाँधी ने कहा, “ये आर-पार की लड़ाई है। सड़क पर आ जाओ, जेलें भर दो, ये आखिरी मौका है।” राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने भी यही बातें कहीं।
इसके बाद उमर खालिद ने लोगों से कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने पर वे सड़कों पर आएँ और इंटनेशनल मीडिया को दिखा दें कि वो भारत में प्रताड़ित हैं, सुरक्षित नहीं हैं।
फिर जामिया मिलिया इस्लामिया में AAP नेता अमानतुल्लाह खान की हेट स्पीच सामने आई। उन्होंने कहा, “ट्रिपल तलाक तो मोदी ने समाप्त कर दिए, दाढ़ी, टोपी और अजान भी समाप्त कर देंगे। सड़कों पर आ जाओ।” उसके बाद शरजील इमाम का देश को परमानेंटली काटने का बयान आता है और कॉन्ग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर तो पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को कातिल ही बोल देते हैं।
मोनिका अरोड़ा ने बताया कि बड़े-बड़े नेताओं द्वारा दिसंबर से फरवरी तक परोसे गए नफरत का परिणाम ये दंगा था। साथ ही उन्होंने शाहीनबाग और छोटे छोटे बच्चों द्वारा भड़काऊ नारेबाजी करने की तरफ भी इशारा किया।
जब हमने मोनिका अरोड़ा से उनकी रिपोर्ट ‘धरने से दंगे तक का मॉडल’ के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि ये मॉडल चार स्टेज में हुए। उन्होंने पहले स्टेज के बारे में बताया कि 11 दिसंबर को CAA पारित होने के बाद हर जगह हेट स्पीच दिए जाने लगे। यूनिवर्सिटी के बच्चे-शिक्षक बाहरी लोगों के साथ मिलकर पेट्रोल बम फेंकने लगे, आगजनी करने लगे। पुलिस के साथ मारपीट करने लगे और फिर सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट में जाकर कहते हैं कि हमें पुलिस मार रही है, बचा लो। तो सुप्रीम कोर्ट कहता है कि पहले हिंसा रोको, फिर कार्रवाई करेंगे।
फिर उन्होंने सेकेंड स्टेज के बारे में बताते हुए कहा कि इनका मॉडल था कि किसी मुख्य सड़क के एरिया को घेर लो। वह जगह ऐसी होनी चाहिए, जहाँ पर दोनों मजहब वाले बराबर संख्या में हों। वहाँ पर टेंट लगा दो। स्टेज पर माइक लगा दो। पीछे एक संविधान रख दो और साथ में एक तिरंगा। लेकिन इनका हाथ में तिरंगा और दिल में दंगा सबके सामने आ गया। उन्होंने बताया कि किस तरह से वहाँ पर मोदी विरोधी, शाह विरोधी, भारत विरोधी, हिंदू विरोधी भाषण दिए गए। माँ काली को बुर्का पहनाया गया, स्वास्तिक को झाड़ू से तोड़ते हुए दिखाया गया। इससे उनका जिहादी विचारधारा साफ दिख रहा था।
उन्होंने कहा कि शाहीनबाग में PFI का पैसा आया। सुबह से शाम तक बिरयानी बाँटा गया। वो कहती हैं, “मेरे एक Law Intern ने मुझे बताया कि वो 8 घंटे तक वहाँ रहा, बिरयानी खाया और 500 रुपए मिले, वो लेकर चला आया।” प्रदर्शनकारियों ने ऐसा माहौल बनाया कि पुलिस उन पर लाठीचार्ज करे, ताकि नेशनल न्यूज बने, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। पुलिस ने संयम बरता।
फिर इनका तीसरा स्टेज शुरू होता है। इन लोगों ने मार्केट में, एरिया में जुलूस में आना शुरू किया। हजारों की संख्या में महिलाएँ बुर्के में शिव मंदिर के सामने ‘आजादी’ के नारे लगाए। पुलिस भी जख्मी हुए। मगर महिला होने की वजह से पुलिस इनका कुछ कर भी नहीं सकते। महिलाओं और बच्चों को आगे करके पुरुष अपनी साजिश को अंजाम दे रहे थे।
उन्होंने बताया कि चौथे चरण के तहत 22 फरवरी 2020 को सफूरा रात के 1:30 बजे समुदाय विशेष की महिलाओं को लेकर आई और जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 4 को ब्लॉक कर दिया। इसके बाद सुबह 6 बजे जाफराबाद सड़क को जाम कर दिया। इनकी दूसरी टीम ने चाँदबाग में सड़क को जाम किया। सफूरा, नताशा, देवांगना आदि ने महिलाओं को फ्रंटलाइन में ढाल की तरह इस्तेमाल किया। ताकि पुलिस महिलाओं पर हमला नहीं करेगी और पीछे वे अपने मंसूबों को अंजाम देने में कामयाब हो जाएँगे।
24 फरवरी को यही महिलाएँ मौजपुर चौक पर हजारों की संख्या में बैठी हुई थी। तभी महिलाओं ने डीसीपी अमित शर्मा को बुलाया कि आइए बात करते हैं। उन्होंने सोचा कि महिलाएँ हैं और बातचीत से मसला हल हो जाएगा। मगर जैसे ही वो वहाँ पर पहुँचे महिलाओं ने बुर्के में से चाकू, छूरी, रॉड, डंडों आदि से उन पर हमला कर दिया। एक ने उनका हेलमेट निकाल दिया। बाकी ने उनके सिर पर मारा। जिहादी भीड़ उन पर टूट पड़ी। जब अन्य पुलिस वालों ने किसी तरह से उन्हें छुड़ाकर पास वाले नर्सिंग होम में एडमिट करवाया तो जिहादी भीड़ ने उस हॉस्पिटल को ही जला दिया। इसके बाद उन्हें वहाँ से निकाल कर किसी दूसरे हॉस्पिटल के ICU में भर्ती कराया गया।
मोनिका अरोड़ा ने बताया कि AAP के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन ने किस तरह से प्लानिंग की थी और दंगे के एक दिन पहले खजूरी खास थाने से अपना पिस्टल रिलीज करवाया था। घर के सीसीटीवी कैमरा को बंद कर दिया था। इसके बाद उन्होंने शिव विहार में फैयाज के राजधानी स्कूल से हिंदू के स्कूल को निशाना बनाया गया। स्कूलों को लूटा गया, फिर उसे जला दिया गया। आईबी के अंकित शर्मा की नृशंस हत्या की गई, दिलबर नेगी को काटकर जला दिया गया। विवेक के सिर में ड्रिल कर दिया गया।
उन्होंने हिंसा की क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा कि 19 दिसंबर को सीलमपुर के 7 मेट्रो स्टेशन को बंद कर दिया जाता है। 40,000 जिहादियों की भीड़ इकट्ठा होती है। 13 जनवरी को 4000 की संख्या में जुलूस मालवीय नगर की तरफ आजादी के नारे लगाती निकलती है। 15 जनवरी को हर जगह धरने शुरू हो जाते हैं। 22 फरवरी को महिलाओं को बुलाकर जाम कर दिया जाता है। फिर 23 फरवरी को 3:30 बजे स्थानीय लोग इकट्ठा होते हैं और प्रदर्शनकारियों के हटने के लिए कहते हैं। बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने भी पुलिस से कहा तो उन्होंने कहा कि अभी ट्रंप हैं, दो दिन में हटा देंगे। जिसके बाद उन्होंने कहा कि हाँ, उसके बाद तो हम आपकी भी नहीं सुनेंगे।
इसके बाद इस बात को हवा दी जाने लगी कि कपिल मिश्रा ने दंगा भड़काया, मगर इससे पहले ही जगह-जगह पर भीड़ इकट्ठी हुई। दिसंबर में NIA को ISIS मॉड्यूल मिले। 23 फरवरी की शाम से ही पत्थरबाजी शुरू हो जाती है। 24 फरवरी की सुबह दुकानें जला दी जाती है। डीसीपी अमित शर्मा को अधमरा कर दिया जाता है। हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की हत्या कर दी जाती है।
मोनिका अरोड़ा ने सफूरा के प्रेगनेंट और माँ बनने की बात कहने वालों पर निशाना साधते हुए प्रीति गर्ग की याद दिलाई, जिन्होंने अपने 9 साल और 11 साल के बच्चों को बचाने के लिए छत के ऊपर से नीचे फेंक दिया था। पड़ोसी ने उसे पकड़ लिया, बच्चा बच गया। वो कहती हैं कि क्या वो माँ नहीं है, क्या वो बच्चे नहीं हैं?
इसके बाद उन्होंने व्हाट्सएप मैसेज की भी बात की, जिससे दंगे की साजिश रची गई थी और बताया गया था कि इस दौरान उन्हें क्या करना चाहिए। उन्होंने जय भीम-जय मीम का नारा लगाया। स्क्रिप्ट पहले से ही तैयार थी कि किसका कौन सा रोल होगा। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली पुलिस द्वारा दाखिल किए गए चार्जशीट पर भी बात की।
अंत में मोनिका अरोड़ा कहती हैं, “मुझे आशा नहीं विश्वास है धरने से दंगे तक का ये मॉडल आखिरी एक्सपेरिमेंट होगा। ऐसा कोई भी शाहीनबाग 2, कोई भी खिलाफत 2, कोई भी जिन्ना वाली आज़ादी के नारे नहीं लगा पाएगा और कोई भी यहाँ ऐसी साजिशें नहीं कर पाएगा। फिर किसी प्रीति गर्ग को पहली मंजिल से अपने बच्चों को नहीं फेंकना पड़ेगा। फिर किसी विनोद कश्यप को सिर पर पत्थर मार-मारकर खत्म नहीं किया जाएगा। हम कोशिश करेंगे कि ऐसा हिंदुस्तान हमारे सामने आए। ये हमारी भी कोशिश है और आपकी भी। कम से कम हम सच्चाई को सामने तो रखें। सच्चाई तो 100 पर्दे फाड़कर सामने आ जाती है।”