Saturday, November 2, 2024
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पश्चिम बंगाल के स्कूल की अनोखी पहल, मुस्लिम प्रिंसिपल के लिए बजनी चाहिए तालियाँ

स्कूल प्रशासन ने लड़कियों के लिए राज्य सरकार की परियोजना के अनुरूप कन्याश्री समूह भी बनाया है। समूह के सदस्य गाँवों में सतर्कता और जागरूकता बनाए रखते हैं और अगर कहीं बाल-विवाह हो रहा हो तो उसकी रिपोर्ट दर्ज कराते हैं।

पश्चिम बंगाल आए दिन चर्चा में बना रहता है। इसमें कई ऐसे राजनीतिक समीकरण भी बनते-बिगड़ते दिखते हैं, जहाँ ममता सरकार आए दिन आलोचनाओं का शिकार होती रहती है। लेकिन इस बार बात कुछ अलग है। फ़िलहाल पश्चिम बंगाल से आई एक प्रेरणादायी ख़बर। जिसकी सिर्फ तारीफ़ नहीं बल्कि भरपूर तारीफ़ होनी चाहिए।

मामला मुर्शिदाबाद के लालगोला में स्थित लक्ष्यपुर हाई स्कूल का है। यहाँ बाल-विवाह के ख़िलाफ़ शिक्षकों ने एक ऐसी मुहिम छेड़ी है, जिसके अंतर्गत बालिकाओं की 18 साल से पहले शादी न करने संबंधी एक शर्तनुमा ख़त (Undertaking) तैयार किया गया है। इसमें लिखा है, “मैं अपनी बेटी का विवाह 18 साल से पहले नहीं  करूंगा। शिक्षा से भी वंचित नहीं रखुंगा। मैं उसे शिक्षित करूंगा और 18 वर्ष की आयु के बाद ही उसके विवाह की व्यवस्था करूंगा।” स्कूल द्वारा तैयार किए गए इस अंडरटेकिंग पर लगभग 1,800 अभिभावकों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। बता दें कि इस स्कूल में 1,957 लड़कियाँ हैं, जो कि 22 गाँवों से आने वाले लगभग 3,205 छात्रों की कुल संख्या के आधे से भी अधिक है।

राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आधार पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके बाद स्कूल ने यह अनूठी पहल शुरू की। इस रिपोर्ट के अनुसार 15 से 19 वर्ष की उम्र की 25.6 प्रतिशत लड़कियों के बाल-विवाह की घटनाओं में पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है और 39.9 प्रतिशत के साथ मुर्शिदाबाद सभी जिलों में शीर्ष पर है। 2015-16 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, बाल-विवाह का राष्ट्रीय औसत 11.9 प्रतिशत है।

अभिभावकों से हस्ताक्षर कराने संबंधी अंडरटेकिंग के बारे में स्कूल के प्रिंसिपल जहाँगीर आलम का कहना है कि इस तरह के अंडरटेकिंग पर हस्ताक्षर लेना अनिवार्य तो नहीं है लेकिन अगर किसी को इस पर हस्ताक्षर करने में कोई आपत्ति है तो उसे दूर करने के लिए हम अभिभावकों के साथ बात करेंगे, जिससे उनकी किसी भी तरह की परेशानी का समाधान किया जा सके। इसके अलावा उन्होंने बताया कि अभी तक तो ऐसे माता-पिता सामने नहीं आए हैं, जिन्होंने इस अंडरटेकिंग पर सवाल खड़े किए हों या फिर इस पर हस्ताक्षर करने में किसी प्रकार की कोई आपत्ति दर्ज की हो।

अधिकारियों और शिक्षकों का कहना है कि स्कूल प्रशासन ने स्कूली लड़कियों के लिए राज्य सरकार की परियोजना के अनुरूप कन्याश्री समूह भी बनाया है। समूह के सदस्य गाँवों में सतर्कता और जागरूकता बनाए रखते हैं और अगर कहीं बाल-विवाह हो रहा हो तो उसकी रिपोर्ट दर्ज कराते हैं। इन परिस्थितियों में स्कूल के शिक्षक माता-पिता के साथ बातचीत करते हैं और सही फ़ैसला लेने का मार्गदर्शन करते हैं। अगर बात नहीं बनती है तो आवश्यकता पड़ने पर पुलिस और जिला प्रशासन की मदद भी लेते हैं।

स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि इस इलाके में कम उम्र में विवाह करने का चलन है। चूँकि पुरुष काम के लिए अधिकतर समय बाहर रहते हैं, ऐसे में माताएँ ही लड़कियों की देखभाल करती हैं। इसलिए वो अपनी बेटियों की जल्द शादी करना सुविधाजनक समझती हैं। हालांकि अब धीरे-धीरे लोग इस बात को समझ रहे हैं और स्कूल द्वारा छेड़ी गई इस मुहीम का हिस्सा भी बन रहे हैं।

कुल मिलाकर अगर इस तरह के अंडरटेकिंग की बात करें तो निश्चित रूप से यह पहल अनूठी होने के साथ-साथ बालिकाओं के विकास में अपना अहम योगदान तो देगी ही साथ ही अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल भी क़ायम करेगी। इस तरह की पहलों का स्वागत हर मायनों में किया जाना चाहिए, जिससे अन्य राज्यों के स्कूल भी इस तरह की पहल करने का साहस जुटा सकें।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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