अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद ये ख़बर और इसके विरोध की चर्चा पूरी दुनिया में होती रही। अमेरिका में दंगे हो रहे हैं, मॉल्स को लूटा जा रहा है और पुलिस से झडपें हो रही हैं। ये सब कम्युनिस्ट और एंटीफा वालों द्वारा किया जा रहा है। कई लोग भारत में भी कुछ ऐसे ही दंगे भडकाने की बातें कर रहे हैं। भारत में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ की तर्ज पर समुदाय विशेष के समर्थन में हैशटैग ट्रेंड कराया गया। ये सब अफ्रीकन अमेरिकी समुदाय और भारतीय में रह रहे समुदाय विशेष की तुलना करते हुए किया गया। इन सबके बीच आपको पता है कि आनंद शर्मा दक्षिण अफ्रीका में क्या कर रहे थे?
भारत में दूसरे मजहब वालों को सड़क पर आने और उन्हें हिंसा करने के लिए भड़काने की कोशिश की जा रही है। हालाँकि, दोनों समुदायों की तुलना की ही नहीं जा सकती। भारत में मजहब के नाम पर ही देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान बना। इसके बाद भी यहाँ के संविधान द्वारा समुदाय विशेष को बराबरी से भी बढ़ कर सुविधाएँ दी जाती रही हैं। उनके लिए कई सारी योजनाएँ आती हैं। अल्पसंख्यकों के लिए भारत में कई नीतियाँ हैं।
जबकि अफ़्रीकी अमेरिकी समुदाय की बात करें तो उनके पूर्वजों को अफ्रीका से स्लेव्स बना कर लाया गया था। भारत में रहने वाले दूसरे समुदाय को कभी भी स्लेवरी से नहीं जूझना पड़ा। अमेरिका में भी इस्लामी कट्टरवादियों ने जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के विरोध को अपना हथियार बनाना चाहा। वहाँ भी ‘ला इलाहा इल्लालाह’ के नारे गूँजे। इसी बीच तुष्टिकरण के लिए कुख्यात कॉन्ग्रेस पार्टी ने भी एक नया खेल शुरू कर दिया।
दक्षिण अफ्रीका में वहाँ के राष्ट्रपति रामाफोसा के नेतृत्व में एक एंटी-रेसिज्म अभियान लॉन्च किया गया। दक्षिण अफ्रीका की सत्ताधारी पार्टी अफ्रीकन नेशनल कॉन्ग्रेस ने एक प्रेस रिलीज इस सम्बन्ध में जारी किया। साथ ही इसके लिए अलायन्स बनाने की बात कही गई, जिसमें ‘कॉन्ग्रेस ऑफ साउथ अफ्रीकन ट्रेड यूनियंस’ भी शामिल है। शुरू में इस अभियान से ऐसा लगा कि ये दक्षिण अफीका के लिए है और वैश्विक स्तर पर नहीं है।
दक्षिण अफ्रीका में भी ‘ब्लैक’ लोगों की हत्या हो जाती है, जिस बारे में ये दल चुप रहता है। एक स्थानीय अख़बार में इसकी आलोचना की गई। स्थानीय अख़बार ने कहा कि एएनसी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखा जाए तो उसके द्वारा इस अभियान को लॉन्च करना उसके दोहरे रवैये का प्रदर्शन है क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में भी ‘ब्लैक’ लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए और पार्टी अभी तक वहाँ चीजें ठीक करने में सफल नहीं हो पाई है।
दक्षिण अफ्रीका के अख़बारों और पार्टी द्वारा जारी किए गए प्रेस नोट को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये अभियान देश के आन्तरिक मुद्दों को लेकर है, ग्लोबल स्टेज पर इसका कोई रोल नहीं होगा। हालाँकि, उस प्रेस रिलीज के दूसरे पेज पर एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जिसे आप मिस नहीं कर सकते और आपको वो चीज खटकेगी ही। पैनलिस्ट्स की सूची में आनंद शर्मा भी शामिल हैं, जो राज्यसभा में उप नेता प्रतिपक्ष हैं।
इस अभियान को एक वर्चुअल टॉक के माध्यम से लॉन्च किया जाना है और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति वहाँ अपना बयान देने वाले थे। इसके बाद एक पैनल डिस्कशन आयोजित किया गया था, जिसमें पैनलिस्टों को अपनी-अपनी राय साझा करनी थी। कुल 8 पैनलिस्टों में से 7 दक्षिण अफ्रीका के हैं जबकि सिर्फ़ एक भारत से और वो हैं आनंद शर्मा। कॉन्ग्रेस के जाने-माने नेता आनंद शर्मा। आनंद शर्मा ने डिस्कशन में हिस्सा भी लिया।
उन्होंने कार्यक्रम में नेल्सन मंडेला और महात्मा गाँधी की बात करते हुए अपनी बात शुरू की। कोलोनिज्म और रेसिज्म की बातें करते हुए आनंद शर्मा ने एएनसी को आईएनसी का भाई तक बता दिया। अमेरिका में हो रहे दंगों के बारे में बोलते हुए उन्होंने इसे ‘कॉल ऑफ एक्शन’ करार दिया और साथ ही कहा कि ये बराबरी के अधिकार के लिए हो रहा है। उन्होंने अफ़्रीकी राष्ट्रपति को ‘कॉमरेड’ कह कर संबोधित किया।
उन्होंने न्याय, सहिष्णुता, स्वीकार्यता और ऐसे कई पंचिंग शब्दों का प्रयोग करके अपने भाषण को वजनदार बनाने की कोशिश की। वहीं अफ़्रीकी राष्ट्रपति ने मानवता के लिए एक साथ खड़े होने की अपील की। उन्होंने इस दौरान रोहिंग्याओं पर भी ‘अत्याचार’ होने की बात कह दी। उन्होंने इजरायल पर फिलिस्तीन के इलाकों पर अवैध कब्जे का आरोप लगाया और आलोचना की। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है।
अपने सम्बोधन में आनंद शर्मा ने कहा कि भारत के लोगों को न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए। ये बात ही बेहूदा है क्योंकि भारत अमेरिका के आंतरिक मामलों में क्यों बोलेगा? हाल ही में जब डोनाल्ड ट्रम्प ने कश्मीर और फिर बाद में चीन को लेकर मध्यस्थता करने की बात कही थी तो भारत ने इससे इनकार कर दिया था क्योंकि ये हमारा आंतरिक मामला है। अब भारत इसके विपरीत जाकर दूसरों के आंतरिक मामले में दखल क्यों देगा?
हालाँकि, कॉन्ग्रेस का इस मामलों में यही बचाव का बयान रहता है कि किसी नेता ने कुछ किया है तो उसने अपने व्यक्तिगत दायरे में, इससे पार्टी का कोई लेनादेना नहीं है। बता दें कि जब 2016 में पीएम मोदी दक्षिण अफ्रीका दौरे पर गए थे तो कुछ संगठनों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया था। वहाँ के व्यापारी गुप्ता ब्रदर्स ने तो उन्हें गिरफ्तार करने की माँग तक कर दी थी। ऐसे में आनंद शर्मा किन लोगों का साथ दे रहे हैं?
दक्षिण अफ्रीका के नेताओं की तो अपनी मजबूरी है क्योंकि वहाँ समुदाय विशेष की जनसंख्या पाकिस्तान से भी ज्यादा है और वो वोट के लिए फिलिस्तीन का पक्ष लेकर इजरायल को भला-बुरा कहते रहते हैं। हाँ, चीन और दक्षिण अफ्रीका के रिश्ते ज़रूर अच्छे हैं। हाल ही में बीजिंग ने उसे अपना स्ट्रेटजिक पार्टनर बनाया है। इसीलिए वहाँ के राष्ट्रपति ने रोहिंग्या की बात तो की लेकिन उइगर की नहीं। ऐसे में आनंद शर्मा वहाँ किसका हित साधने गए थे, ये सवाल तो कॉन्ग्रेस से बनता है।