सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपने जाने की वेला में भारत के सीजेआई ऑफ़िस को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के अंतर्गत घोषित कर दिया है। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसके खिलाफ उन्हीं का संस्थान एक समय हाई कोर्ट में न केवल प्रतिवादी बन कर उपस्थित हुआ था, बल्कि शीर्ष अदालत में इस फैसले को चुनौती भी देने वाला खुद सुप्रीम कोर्ट ही था।
Supreme Court holds that office of Chief Justice of India is public authority under the purview of the transparency law, Right to Information Act (RTI). pic.twitter.com/97pyExixuQ
— ANI (@ANI) November 13, 2019
‘Transparency doesn’t undermine judicial independency’, Supreme Court says while upholding the Delhi High Court judgement which ruled that office of Chief Justice comes under the purview of Right to Information Act (RTI). https://t.co/axAjUFzDRr
— ANI (@ANI) November 13, 2019
Very good judgment delivered by Hon’ble supreme court but whether administrative setup of govt and Judiciary shall implement as per aim and spirit?
— ADV KHAGESH B.JHA (@juristkhagesh) November 13, 2019
Breaking : RTI Applicable To Office Of CJI; SC Upholds Delhi HC Judgment https://t.co/ckKlEydGMW
2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण और याचिकाकर्ता व आरटीआई कार्यकर्ता एससी अग्रवाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के विरोध को दरकिनार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ ने सीजेआई के कार्यालय को सूचना के अधिकार के दायरे के बाहर मानने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकारी के ज़रिए अपील की और मामला रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अगस्त 2016 में अपने नेतृत्व की पाँच सदस्यों वाली संविधान पीठ को सुपुर्द कर दिया। इसमें जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एनवी रमना, डीवाई चंद्रचूड़, दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना थे।
इसी बेंच ने आज का फैसला दिया है। फैसला लिखने वाले जज संजीव खन्ना ने कहा कि पारदर्शिता से न्यायिक स्वतंत्रता कमज़ोर नहीं होती। न्यायिक स्वतंत्रता जवाबदेही के साथ ही चलती है। यह जनहित में है कि बातें बाहर आएँ। जस्टिस रमना ने इसमें यह जरूर जोड़ा कि पारदर्शिता का मतलब जजों की निजता खत्म हो जाना या उन्हें सर्विलांस के दायरे में ले आना नहीं है। आरटीआई का इस्तेमाल न्यायपालिका पर नज़र रखने के लिए हो सकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सम्पत्ति की जानकारी जजों की ‘निजी’ जानकारी नहीं हो सकती और न्यायपालिका का कामकाज औरों से अलग राह पर नहीं हो सकता अगर वे संवैधानिक कुर्सी पर हैं और लोकसेवा का कार्य कर रहे हैं।