राम जन्मभूमि मंदिर में विघ्न डालने के आज आखिरी दरवाजे भी सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दिए हैं। जमीयत उलेमा ए हिन्द, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इशारे पर याचिका डालने वालों, इरफ़ान हबीब-प्रशांत भूषण के लिबरल गिरोह समेत 18 याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट की नई संविधान पीठ ने ख़ारिज कर दी हैं। इसकी अध्यक्षता नए सीजेआई एस ए बोबडे कर रहे थे।
#MandirDebateOver | SC’s 5-judge bench headed by CJI S A Bobde dismisses all petitions seeking review of Ayodhya verdict of November 9. pic.twitter.com/M51XiROzbL
— TIMES NOW (@TimesNow) December 12, 2019
इसके अलावा हिन्दू महासभा की वह याचिका भी ख़ारिज कर दी गई, जिसमें बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बदले मुस्लिम पक्ष को राहत के तौर पर अयोध्या में कहीं और मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि का विरोध किया गया था। इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए अखिल भारत हिन्दू महासभा अदालत से इस आदेश पर पुनर्विचार करने की गुज़ारिश की थी।
गौरतलब है कि 9 नवंबर, 2019 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यों वाली संविधान बेंच ने राम जन्मभूमि स्थल का पूरा मालिकाना हक हिन्दुओं दिया था। साथ ही मस्जिद बनाने के लिए अलग से 5 एकड़ ज़मीन देने के निर्देश केंद्र सरकार को दिए थे। इस पीठ की अध्यक्षता तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई ने की थी और इसमें मुस्लिम जज जस्टिस अब्दुल नज़ीर भी शामिल थे। पीठ ने अपना फैसला सर्वसम्मति से दिया था।
वहीं लिबरल गिरोह की बात करें तो उसकी ओर से याचिका दाखिल करने वालों में इरफ़ान हबीब, शबनम हाशमी, अपूर्वानंद झा, नंदिनी सुंदर और इस्लाम स्वीकार करने का ऐलान कर चुके और लम्बे समय से हिन्दू-विरोधी कार्यों में लिप्त हर्ष मंदर शामिल हैं। इनमें से एक भी व्यक्ति 1949-50 से 2019 तक चले मूल मुकदमे में पक्षकार नहीं था। इरफ़ान हबीब ने इस मुकदमे में हिन्दू पक्ष के साक्ष्यों को झुठलाने की कोशिश अवश्य की थी, लेकिन असफल रहे थे।
अपनी याचिका में इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के ऊपर ही मुकदमे की प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया था। उनके अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जमीन के मालिकाना हक से आगे बढ़कर मुक़दमे की परिधि में हिन्दू और मुस्लिम आस्थाओं के टकराव को शामिल कर लिया था।
इस याचिका को दायर करने वाले अधिवक्ता पूर्व आम आदमी पार्टी नेता, राफेल घोटाले के याचिकाकर्ता और जनमत संग्रह की आड़ में कश्मीर पाकिस्तान को सौंप देने की माँग का समर्थन कर इसके लिए पिटने वाले प्रशांत भूषण थे।
याचिका में यह भी कहा गया है कि हिन्दू पक्ष को जन्मभूमि की ज़मीन देने का आधार केवल आस्था को माना गया था, जबकि मस्जिद के पक्ष में पुरातात्विक साक्ष्यों को नज़रंदाज़ कर दिया गया। यह कोरा झूठ था। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ़ किया था कि वह हिन्दू पक्ष को यह ज़मीन आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि पुरातत्व विभाग की खुदाई में मस्जिद के हज़ारों साल पहले तक मंदिर के साक्ष्य मिलने, मस्जिद बनने के बाद से 19वीं सदी के छठे दशक के बीच हिन्दू पक्ष द्वारा अपनी पूजा साबित करने और मुस्लिमों द्वारा इसी कालखंड में लगातार नमाज़ साबित न कर पाने के चलते दे रहा था।
इनके अलावा मुकदमे के समय आने वाले फैसले को मान लेने की बात करने वाले मुस्लिम पक्ष से भी जमीयत ने तो याचिका डाली ही, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इशारे पर भी 4 लोगों ने निजी क्षमता में याचिका दायर की थी।
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