Sunday, June 16, 2024
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’48 घंटे में मिले हर बूथ का डेटा’: चुनाव आयोग ने ठुकराई माँग, कहा – चुनाव प्रक्रिया में नहीं डाल सकते रुकावट

कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले पर कोई भी अंतरिम राहत नहीं दे सकता और उसने इस याचिका को 2019 की याचिका के साथ लिस्ट करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई लोकसभा चुनावों के बाद होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (24 मई, 2024) को मतदान के 48 घंटों के भीतर वोटों की कुल वोटों की संख्या की माँग करने वाली याचिका पर चुनाव आयोग को कोई भी आदेश जारी करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह लोकसभा चुनावों के बीच प्रक्रिया में रुकावट नहीं डाल सकता। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गर्मियों की छुट्टी के बाद करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और सतीश चन्द्र शर्मा की अवकाश बेंच ने कहा, “मैं आपको बता दूँ, इस अर्जी पर चुनाव के बाद सुनवाई होगी। चुनाव के बीच में बिलकुल नहीं। हम इस प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सकते। हम भी जिम्मेदार नागरिक हैं। इस याचिका पर मुख्य याचिका के साथ सुनवाई होगी। प्रशासन में थोड़ा विश्वास रखें।”

कोर्ट ने इसी विषय पर 2019 में लगाई गई याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि आखिर दोबारा से चुनावों के बीच अंतरिम राहत के लिए दूसरी याचिका क्यों लगाई गई है। कोर्ट ने कहा, “2019 की याचिका का हिस्सा ‘बी’ और 2024 की अंतरिम याचिका का हिस्सा ‘ए’ देखें, इसे एक साथ रखें।” सुप्रीम कोर्ट ने दोनों याचिकाओं से समान होने को लेकर यह बात कही।

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा, “सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले आपके सामने हैं, और कहते है कि आप ऐसा नहीं कर सकते। 1985 के एक फैसले में कहा गया है कि यह (मतदान के वोटों की संख्या) कुछ ही बहुत असाधारण मामलों में किया जा सकता है लेकिन बहुत ही असाधारण मामलों में। आपने 16 मार्च से पहले यह याचिका क्यों नहीं लगाई?”

कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले पर कोई भी अंतरिम राहत नहीं दे सकता और उसने इस याचिका को 2019 की याचिका के साथ लिस्ट करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई लोकसभा चुनावों के बाद होगी।

गौरतलब है कि ADR नाम के एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा कर माँग की थी कि चुनाव आयोग वोटिंग के 48 घंटे के भीतर हर बूथ पर डाले गए वोटों की कुल संख्या वेबसाइट पर जारी करे। इस मामले पहले हुई सुनवाई में चुनाव आयोग ने कहा था कि वह वोटों की संख्या देने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है।

चुनाव आयोग ने इन संस्थाओं पर यह भी आरोप लगाया था कि यह चुनाव के बीच उसकी विश्वसनीयता खत्म करने के लिए नए नए आरोप लगा रही हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि यह सब शक के आधार पर किया जा रहा है। आयोग ने कहा कि इसकी वजह से कम वोटिंग हो रही है।

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अर्पित त्रिपाठी
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