Monday, November 18, 2024
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15 साल में मुस्लिम लड़कियों के निकाह पर सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला: हाईकोर्ट ने इस्लामी लॉ का हवाला देकर बताया था सही, बाल आयोग ने जताई आपत्ति

बाल आयोग की तरफ से भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कहा कि 18 से कम उम्र में लड़कियों की शादी की जा रही है। उन्होंने पूछा, "क्या पर्सनल बोर्ड की आड़ लेकर गैर कानूनी काम किया जा सकता है? पॉक्सो कानून को देखते हुए नाबालिग की शादी को कानूनन सही कैसे ठहराया जा सकता है?"

मुस्लिम लड़की का निकाह कम-से-कम कितने साल पर हो, इस पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। पिछले दिनों कई राज्यों की हाईकाेर्ट ने अपने फैसलों में कहा था कि 15 साल या उससे उम्र की मुस्लिम लड़कियाँ निकाह के योग्य होती है। इनमें से एक, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी है, जिसे सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2022 में पंजाब सरकार को नोटिस दिया था।

दरअसल, जून 2022 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि 18 साल से कम उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र है। अदालत ने निकाहके लिए इस्लामी कानून का हवाला दिया था। यह केस एक मुस्लिम लड़की द्वारा अपने प्रेमी से शादी करने से संबंधित था।

अगस्त 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट ने मुस्लिम लड़कियों के निकाह की उम्र को लेकर टिप्पणी की थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि इस्लामी कानून के अनुसार, लड़की अगर 18 साल से कम भी है तो भी उसे अधिकार है कि वो अपने अम्मी-अब्बू की मर्जी के बगौर निकाह कर ले।

इसी तरह सितंबर 2022 में एक मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत लड़की की यौन परिपक्वता अथवा अपनी इच्छा से शादी की आयु 15 साल की तय की गई है। ऐसे में बाल विवाह कानून के तहत ऐसी शादी पर रोक नहीं लगाई जा सकती। 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की ने अपनी इच्छा से शादी की है तो इसे गैरकानूनी नहीं ठहराया जा सकता।

दिसंबर 2022 में 17 साल की एक मुस्लिम लड़की द्वारा 33 साल के हिंदू लड़के से विवाह करने के एक अन्य मामले में भी पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने यही तर्क दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम लड़की की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा संचालित होती है। सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला की किताब ‘प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ’ के अनुच्छेद 195 में कहा गया है कि एक लड़का और लड़की 15 साल की आयु में यौवन हासिल कर लेता है, जो शादी के लिए योग्य मानी जाती है।

ऐसे ही एक मामले में दिसंबर 2022 में झारखंड हाईकोर्ट ने कहा था, “एक मुस्लिम लड़की का विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है। सर दिनशाह फरदूनजी मुल्ला की पुस्तक ‘प्रिंसिपल्स ऑफ मुस्लिम लॉ’ के अनुच्छेद 195 के अनुसार, विपरीत पक्ष संख्या 2 (लड़की) लगभग 15 वर्ष की आयु में अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह के अनुबंध में प्रवेश करने के योग्य है।”

इस दौरान कोर्ट ने यूनुस खान बनाम हरियाणा राज्य व अन्य, 2014 (3) आरसीआर (क्रिमिनल) 518 का संदर्भ दिया था। इसमें कहा गया है कि मुस्लिम लड़की का विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है। इसके बाद कोर्ट ने आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक हाईकोर्ट के इस फैसले को मिसाल के तौर पर लेने पर भी राेक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे जुड़े सभी मामलों को टैग किया जाएगा और उन्हें तीन हफ्तों के बाद सूचीबद्ध किया जाएगा।

बाल आयोग (NCPCR) ने अपनी याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट का फैसला बाल विवाह की अनुमति देने वाला है। यह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन करता है। याचिका में कहा गया है कि बाल विवाह अधिनियम के प्रावधान सभी धर्मों पर लागू होते हैं।

इतना ही नहीं, बाल आयोग ने यह भी कहा कि पॉक्सो कानून के तहत किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए कम से कम 18 साल की उम्र निर्धारित की गई है। ऐसे में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला पॉक्सो एक्ट के खि‍लाफ है।

बाल आयोग की तरफ से भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कहा कि 18 से कम उम्र में लड़कियों की शादी की जा रही है। उन्होंने पूछा, “क्या पर्सनल बोर्ड की आड़ लेकर गैर कानूनी काम किया जा सकता है? पॉक्सो कानून को देखते हुए नाबालिग की शादी को कानूनन सही कैसे ठहराया जा सकता है?”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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