सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (15 मार्च 2024) को चुनावी बांड मामले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से चुनावी बॉन्ड की संख्या का खुलासा न करने पर प्रतिक्रिया माँगी। इसके साथ इससे संबंधित सारे विवरण क्यों नहीं सामने लाए गए, इसको लेकर भी पूछा है। कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड की संख्या से पहचान करने में मदद मिलेगी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पाँच सदस्यीय पीठ ने इस पर सुनवाई की। पीठ ने कहा कि एसबीआई ने 11 मार्च 2024 के कोर्ट के आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं किया है। इस आदेश में कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड से संंबंधित सभी विवरणों का खुलासा करने के लिए बैंक को कहा था।
कोर्ट ने कहा, “संविधान पीठ के फैसले ने स्पष्ट किया कि चुनावी बॉन्ड के सभी विवरण खरीद की तारीख, खरीदार का नाम, मूल्यवर्ग सहित उपलब्ध कराए जाएँगे। एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड संख्या (अल्फा न्यूमेरिक नंबर) का खुलासा नहीं किया है। हम रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि वह एसबीआई को सोमवार को पेश होने के लिए नोटिस जारी करे।”
इस पीठ ने फरवरी 2024 में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था। पीठ ने कहा था कि एसबीआई 12 अप्रैल 2019 से लेकर अभी तक का चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पैसे हासिल करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण भारत के चुनाव आयोग को सौंपे। यह काम 6 मार्च तक किया जाना था, लेकिन एसबीआई ने समय सीमा बढ़ाने की माँग की।
एसबीआई ने कहा कि पूरे डेटा को निकालने के लिए उसे जून 2024 तक का समय दिया जाए। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई के अनुरोध को खारिज करते हुए कहा कि 11 मार्च 2024 खरीदे गए प्रत्येक चुनावी बॉन्ड का विवरण भारतीय निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। साथ ही इस पूरे डिटेल को आयोग की वेबसाइट पर भी दिखना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एसबीआई से कहा था कि चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले का नाम, चुनावी बॉन्ड की कीमत और उसका नकदीकरण करने की तारीख से लेकर राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक बॉन्ड का विवरण उपलब्ध कराए। आखिरकार एसबीआई ने 12 मार्च 2024 को चुनाव आयोग को यह विवरण भेजा और 14 मार्च को चुनाव आयोग ने इसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया।
इसके बाद चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अनुरोध किया कि मुख्य मामले की सुनवाई के दौरान पीठ को सीलबंद लिफाफे/बक्से में सौंपे गए चुनावी बॉन्ड के दस्तावेज उसे वापस कर दिए जाएँ। आयोग का कहना था कि उसके पास इसकी कोई अन्य प्रति नहीं है। आयोग ने कहा कि कोर्ट द्वारा लौटाए जाने के बाद वह उन दस्तावेजों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर सकता है।
चुनाव आयोग की इस माँग को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने स्वीकार कर लिया और यह सुनिश्चित किया कि न्यायालय द्वारा स्कैन और डिजिटलीकरण के बाद मूल प्रतियाँ चुनाव आयोग को वापस कर दी जाएँ। 17 मार्च को या उससे पहले वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।
दरअसल, चुनावी बॉन्ड को वित्त अधिनियम 2017 के माध्यम से पेश किया गया था। इसके कारण तीन अन्य क़ानूनों – भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, आयकर अधिनियम और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में कम से कम पाँच संशोधन किए गए थे। इन संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर की गईं।
इन याचिकाओं में कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड ने राजनीतिक दलों के लिए असीमित एवं अनियंत्रित फंडिंग के दरवाजे खोल दिए हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई शुरू की और लगभग सात साल बाद केंद्र सरकार के इस रुख को खारिज कर दिया कि चुनावी बॉन्ड वाली यह योजना पारदर्शी थी।