Monday, September 23, 2024
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चाइल्ड पोर्न रखना, देखना, भेजना सब अपराध, सुप्रीम कोर्ट ने ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द के इस्तेमाल से भी रोका: जानिए क्यों आया यह फैसला, क्या हैं इसके मायने

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि 'चाइल्ड पोर्न' शब्द को देश भर के कोर्ट ना उपयोग करें। कोर्ट ने कहा कि पोर्न शब्द दो वयस्कों के बीच सहमति से बने सम्बन्धों की वीडियो को दर्शाता है। बच्चों के विषय में यह नहीं कहा जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों से संबंधित यौन सामग्री (चाइल्ड पोर्न) को रखना या उसे कहीं भेजना अपराध माना है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय देते हुए मद्रास हाई कोर्ट का वह निर्णय पलटा है जिसमें बच्चों से जुड़ी यौन सामग्री रखना अपराध नहीं माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ ही इस प्रकार की सामग्री के नामकरण को लेकर भी कुछ आदेश दिए हैं।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार (23 सितम्बर, 2024) को यह निर्णय सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने फोन या अन्य किसी डिजिटल उपकरण में चाइल्ड पोर्न को रखना, उसको नष्ट ना करना या उसके बारे में एजेंसियों को सूचित ना करना अपराध की श्रेणी में आएगा।

रखना, भेजना और बेचना सब अपराध

कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्न रखना या उसे डिलीट ना करना अपराध तब माना जाएगा जब इसे रखने वाले की मंशा इसे आगे प्रसारित करने की हो। कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति की मंशा उस समय के हालात तय करेंगे। यह POCSO एक्ट की धारा 15(1) के तहत अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने POCSO के तहत अपराध मानने को लेकर दो और धाराओं के नियम तय किए।

इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि अपने डिवाइस पर चाइल्ड पोर्न रखने के साथ उसे लोगों में बाँटना, कहीं भेजना या फिर ऐसे ही काम में मदद करना भी अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने इसे POCSO की धारा 15(2) के तहत अपराध माना है। यहाँ तक कि इस तरह की सामग्री को किसी को दिखाना भी अपराध के तहत आएगा।

कोर्ट ने कहा कि ऐसी सामग्री पैसा कमाने या किसी तरह के लाभ लेने के लिए रखना भी अपराध माना जाएगा। यदि यह आरोप सिद्ध होता है तो इसमें इस बात की जरूरत नहीं होगी कि इससे कोई लाभ हुआ या नहीं। कोर्ट ने इसे POCSO की धारा 15(3) के तहत अपराध माना है।

इंटरनेट पर देखना भी जुर्म

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी के डिवाइस पर इस तरह का चाइल्ड पोर्न रखा ना गया हो लेकिन अगर इसे कोई इंटरनेट पर देखता है तो यह भी अपराध है। कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर ऐसी सामग्री देखना, इसे आगे भेजना और इसको बाँटना अपराध कहा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर देखना भी इसे अपने डिजिटल डिवाइस पर रखने के बराबर माना जाएगा। कोर्ट ने इसे POCSO की धारा 15 के तहत अपराध बताया है।

‘चाइल्ड पोर्न’ शब्द पर आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘चाइल्ड पोर्न’ शब्द को देश भर के कोर्ट ना उपयोग करें। कोर्ट ने कहा कि पोर्न शब्द दो वयस्कों के बीच सहमति से बने सम्बन्धों की वीडियो को दर्शाता है। बच्चों के विषय में यह नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्न शब्द का उपयोग बच्चों के पीड़ित होने का प्रभाव कम करता है।

कोर्ट ने कह़ा, “लोगों को इस तथ्य के प्रति भी सचेत रहना चाहिए कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी’ शब्द एक ग़लत नाम है जो अपराध की गंभीरता को बताने में विफल है। यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि पारंपरिक रूप से ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी’ कहे जाने वाले प्रत्येक मामले में वास्तव में एक बच्चे का दुराचार शामिल होता है। ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी’ शब्द के उपयोग से अपराध को महत्वहीन किया जा सकता है, क्योंकि पोर्नोग्राफ़ी तो अक्सर वयस्कों के बीच सहमति से किया गया कार्य माना जाता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्न की जगह चाइल्ड सेक्सुअल एक्स्प्लोईटेटिव एंड अब्युजिव मैटेरिअल (CSEAM) शब्द उपयोग करने का आदेश दिया है। देश भर के कोर्टों को यह शब्द अपने निर्णयों को आदेश में करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ” CSEAM शब्द सही रूप से बच्चे के शोषण और दुर्व्यवहार पर जोर देता है। यह ऐसे कृत्य की आपराधिक प्रकृति पर गंभीर और मजबूत प्रतिक्रिया की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।”

मद्रास हाई कोर्ट का पलटा निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने ‘चाइल्ड पोर्न’ या बच्चों से जुड़ी पोर्न सामग्री पर दिए इस निर्णय में मद्रास हाई कोर्ट के हालिया निर्णय को पलट दिया है। मद्रास हाई कोर्ट ने जनवरी, 2024 में दिए गए निर्णय में कहा था किचाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करना और इसे प्राइवेट में देखना POCSO और IT के तहत अपराध नहीं है।

यह मामला 28 साल के व्यक्ति से जुड़ा था, उसके ऊपर चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करने और इसे देखने पर POCSO और IT एक्ट पुलिस ने लगाया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपित ने प्राइवेट में ये सब किया, बिना किसी पर कोई प्रभाव डाले हुए। जज ने कहा कि यदि वो कंटेंट बाँटने लगता, तब इन एक्ट्स के तहत उस पर धाराएँ लगाई जा सकती हैं।

कोर्ट ने इस व्यक्ति के खिलाफ इन दोनों धाराओं में दर्ज किया गया मामला भी रद्द कर दिया था। मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि पोर्न देखना वर्तमान समय में शराब-सिगरेट पीने जैसी बीमारी बन चुकी है जिसे सामाजिक तौर सही किए जाने की जरूरत है।

मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले के NGO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। NGO ने माँग की थी कि मद्रास हाई कोर्ट का यह फैसला पलट दिया जाए। इस मामले में हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस कृत्य को अपराध माना और मद्रास हाई कोर्ट का निर्णय पलट दिया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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