Friday, November 22, 2024
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बंगाल की इंच-इंच जमीन मुस्लिमों की… स्वतंत्र भारत में सुरसा की तरह बढ़ रहा ‘मजहबी जमींदार’: इस्लामी मुल्कों में वक्फ बोर्ड का नामलेवा नहीं, यहाँ बढ़ती ही जा रही प्रॉपर्टी

आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि वक्फ का कॉन्सेप्ट इस्लामी देशों तक में नहीं है। फिर वो चाहे तुर्की, लिबिया, सीरिया या इराक हो। लेकिन भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते आज हालात ऐसे हैं कि इन्हें देश में तीसरा सबसे बड़ा जमींदार बताया जा रहा है।

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक बंगाली मौलाना की वीडिया वायरल हुई थी। इस वीडियो में मौलाना दावा करता दिखाई दे रहा था कि बंगाल में इंच-इंच जमीन मुस्लिमों की है। वीडियो में सुनाई पड़ रहा था कि मौलाना कहता है- कलकत्ता हाईकोर्ट-मुस्लिमों की जमीन पर है, मुख्यमंत्री कार्यालय मुस्लिमों की जमीन पर है, कोलकाता एयरपोर्ट मुस्लिमों की जमीन पर है और ईडन गार्डन स्टेडियम तक मुस्लिमों की जमीन पर है।

मौलाना की इस छोटी सी वीडियो में कितनी सच्चाई है ये तो नहीं पता, लेकिन ये हकीकत जरूर है कि देश में वक्फ बोर्ड मजहबी जमींदार बनकर उभरा हुआ है। इन्होंने अपने हिस्से इतनी जमीन दिखाई हुई है कि सिर्फ देश में रेल और सेना के लोग ही इनके ऊपर आते हैं। आप खबरें उठाकर देख लीजिए आपको कभी वक्फ वाले मंदिर की संपत्ति पर अपना कब्जा बताते हुए मिलेंगे तो कभी कहेंगे पूरा का पूरा गाँव वक्फ की जमीन पर बसा है।

इनकी कोई सीमा नहीं है कि ये कहाँ तक वक्फ जमीन का दावा कर दें। वैसे असल में वक्फ की जमीन का कॉन्सेप्ट ये था कि जो कोई मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति को अल्लाह के नाम पर दान करना चाहेगा वो वक्फ के हिस्से आ जाएगी। अब इसी क्रम में ये वक्फ बोर्ड वाले अल्लाह के नाम पर इकट्ठा कितनी जमीन पर अपना दावा ठोंक दें इसकी कोई सीमा है ही नहीं।

30 साल पहले वक्फ ने किया था कब्जा, फ्रॉड उजागर

हालिया खबर आज सामने आई है जिसमें बताया गया है कि कैसे दशकों पहले सहारनपुर की नगर निगम की तीन हेक्टेयर जमीन पर वक्फ द्वारा फर्जीवाड़ा किया गया था। इस खुलासे के बाद कमिश्नर ने डीएम को पत्र लिखकर 1994 के आदेश को निरस्त कर भूमि को पहले की तरह अभिलेखित करने के आदेश जारी किए। ये आदेश पूरी पड़ताल के बाद दिए गए। बताया जा रहा है कि उक्त भूमि 1874 से नगर पालिका परिषद की थी लेकिन वर्ष 1994 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सचिनव ने इस जमीन को वक्फ की जमीन में दर्ज करने के आदेश दे दिए थे। इसके बाद अन्य अधिकारियों ने इसका अनुपालन किया। साथ ही पूर्व में जिस पालिका के पास ये जमीन थी उन्हें अपना पक्ष रखने का कोई मौका भी नहीं मिला। इस तरह 3 हेक्टेयर की सरकारी जमीन को वक्फ अपने नाम कर गया। अब जब इस मामले में जाँच हुई है तो मंडलायुक्त ने जिलाधिकारी को निर्देश दिए कि ये जमीन वक्फ की नहीं है इसे सहारनपुर नगर निगम के नाम पूर्व की भाँति अभिलेखों में दर्ज करवाया जाए।

ये सिर्फ कोई हालिया खबर नहीं है। 2022 में खबर आई थी कि वक्फ बोर्ड ने तमिलनाडु में हिंदुओं के गाँव पर कब्जा किया है जिसमें 1500 पुराना मंदिर भी बना हुआ। इसके अलावा हाल में जामा मस्जिद के पास बने सरकारी पार्कों को लेकर भी शिकायत आई थी कि उसे मस्जिद अपने काम में लेने लगा है, कोशिश करने पर भी वो उस जगह को नहीं छोड़ते। इससे पूर्व 2021 में बाराबंकी के कतुरीकला में वक्फ के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ था जहाँ पता चला था कि जमीनें धोखाधड़ी से वक्फ के नाम की गई हैं।

क्या है वक्फ बोर्ड और एक्ट

गौरतलब है कि वक्फ की धोखेधड़ियों की खबरें आने से मीडिया में सवाल अक्सर उठता ही रहता है कि इस तरह कैसे कोई बोर्ड आम लोगों की संपत्ति पर कब्जा कर लेता है और अगर कर लेता है, या उसे अपने अंतर्गत दर्ज करा लेता है तो क्यों वो वापस नहीं हो सकती? इसके अलावा सवाल ये भी उठते हैं कि आखिर लोकतांत्रिक देश में ऐसा बोर्ड क्यों बनाया गया कि एक मजहब के नाम पर प्रॉपर्टी इकट्ठा की जाए… तो इन सारे सवालों का जवाब नेहरू काल से मिलता है।

दरअसल, भारत में ‘वक्फ एक्ट’ की शुरुआत 1954 में नेहरू सरकार में हुई थी। इसके बाद 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया बना दिया गया। इसका काम केंद्रीय निकाय वक्फ अधिनियम, 1954 की धारा 9 (1) के प्रावधानों के तहत स्थापित विभिन्न राज्य वक्फ बोर्डों के तहत काम की देखरेख करने का था। साल 1995 में एक्ट में कुछ संशोधन हुए और इसे और मजबूती मिली। इन संशोधनों के बाद प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में वक्फ बोर्डों के गठन की अनुमति दी गई, जिसमें कुछ ऐसे बदलाव भी हुए जिनपर अक्सर विवाद होता रहता है।

बता दें कि आज के समय में देश में एक सेंट्रल वक्फ काउंसिल और 32 स्टेट बोर्ड है। हर राज्य के अलग-अलग वक्फ बोर्ड होते हैं। इस बोर्ड का काम हर जकात में मिली संपत्ति की देखरेख करना होता है। वक्फ जकात में आई सारी संपत्ति को अल्लाह की संपत्ति मानता है और इससे जुड़ ेहर कानूनी काम खुद संभालता है। चाहे इसे खरीदना हो या लीज पर देना। इसके अलावा एक बार अगर कोई संपत्ति इस बोर्ड के अधीन आ जाती है तो व्यक्ति उसे वापस नहीं ले सकती चाहे वो पहले उसी की क्यों न रही हो। वहीं वक्फ उसका जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल कर सकता है।

वक्फ बोर्ड के खिलाफ खड़े वकील अश्विनी उपाध्याय

हाल में इस पर सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी ट्वीट किया था। उन्होंने मौलाना वाली वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए वक्त के मामले को उठाया था। साथ ही राहुल गाँधी के परिवार पर निशाना साधा था। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा था, “परनाना ( जवाहरलाल नेहरू) ने वक्फ एक्ट बनाया दादी (इंदिरा गाँधी) ने वक्फ एक्ट को मजबूत किया पिता (राजीव गाँधी) ने वक्फ एक्ट को और मजबूत किया 1995 में पुराना कानून वापस और नया कानून 2013 में वक्फ बोर्ड को असीमित शक्ति दिया कॉन्ग्रेस ने भारत को बर्बाद करने के लिए 50 घटिया कानून बनाए हैं।”

उन्होंने तो इस वक्फ बोर्ड को असंवैधानिक करार देने के लिए याचिका भी डाली थी लेकिन उसे कोर्ट ने यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं हुए। इस मामले में अश्विनी उपाध्याय साफ कहा था, “वक्फ के नाम से भारतीय संविधान में एक शब्द नहीं है। सरकार ने 1995 में वक्फ एक्ट बनाया और इसे मुस्लिमों का नाम कर दिया…।  वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियाँ दे दी गईं। उन्हें ये अधिकार दे दिया गया है कि उनके सब धार्मिक संपत्तियों से जुड़े मामले ट्रिब्यूनल कोर्ट में जाएँगे। वो सवाल करते हैं कि देश में इतनी ट्रिब्यूनल कोर्ट नहीं है ऐसे में अगर वक्फ जाकर किसी की संपत्ति पर दावा ठोंकता है तो लोगों को दर-दर भटकना पड़ता है तब सुनवाई होती है जबकि बाकी धर्मों के मामले आराम से सिविल कोर्ट में सुन लिए जाते हैं।” 

वक्फ बन रहा तीसरा सबसे बड़ा जमींदार

यहाँ आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि वक्फ का कॉन्सेप्ट इस्लामी देशों तक में नहीं है। फिर वो चाहे तुर्की, लिबिया, सीरिया या इराक हो। लेकिन भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते आज हालात ऐसे हैं कि इन्हें देश में तीसरा सबसे बड़ा जमींदार बताया जा रहा है। इनके पास अकूत संपत्ति है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार वक्फ बोर्ड के पास पूरे देश भर में 8,65,646 संपत्तियाँ पंजीकृत हैं। इनमें से 80 हजार से ज्यादा संपत्ति वक्फ के पास केवल बंगाल में हैं। इसके बाद पंजाब में वक्फ बोर्ड के पास 70,994, तमिलनाडु में 65,945 और कर्नाटक में 61,195 संपत्तियाँ हैं। देश के अन्य राज्यों में भी इस संस्थान के पास बड़ी संख्या में संपत्तियाँ हैं।

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