तेलंगाना हाई कोर्ट ने 10 साल से लंबित दो जूनियर सिविल जजों के खिलाफ SC-ST Act में दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। दोनों जूनियर जजों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 3(1)(x) के आरोप लगाए गए थे। आरोप में कहा गया था कि न्यायिक अकादमी में रहने के दौरान उनका झगड़ा हुआ था और इस दौरान जातिसूचक गाली दिए गए थे।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति जे श्रीनिवास राव की पीठ ने कहा कि यह मामला दोनों आरोपितों द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के जवाब में दायर किया गया जवाबी हमला प्रतीत होता है। दरअसल, दोनों आरोपित याचिकाकर्ता जजों को साल 2013 में आंध्र प्रदेश न्यायिक सेवा के तहत जूनियर सिविल जज के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्हें बेंगलुरु में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था।
वहाँ छात्रावास के कमरे में कुछ घटनाएँ हुईं, जिसके कारण याचिकाकर्ताओं ने न्यायिक अकादमी के निदेशक को पूरा विवरण देते हुए एक लिखित रिपोर्ट दी। इसके बाद उस शिकायत को हाई कोर्ट को भेज दिया गया। विभागीय जाँच के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत हैदराबाद हाई कोर्ट ने साल 2015 में प्रतिवादी को सेवा से हटाने का फैसला दिया।
इसके बाद, याचिकाकर्ताओं को पता चला कि प्रतिवादी ने उनके खिलाफ SC-ST ACT में एफआईआर दर्ज कराई है। हाई कोर्ट ने पाया कि निष्कासन का आदेश जारी होने के बाद ही प्रतिवादी ने एफआईआर दर्ज कराई थी। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि दो साल की देरी के बाद दर्ज की गई एफआईआर, याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत के खिलाफ प्रतिशोध प्रतीत होती है।