राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने प्रयागराज कुंभ में आयोजित धर्म संसद में सबरीमाला मुद्दे को लेकर केरल सरकार पर निशाना साधा। संघ प्रमुख ने कहा कि सबरीमाला मंदिर कोई सार्वजनिक जगह नहीं है बल्कि एक सम्प्रदाय विशेष का स्थल है। उन्होंने केरल की वामपंथी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि हिन्दुओं के सम्मान एवं भावनाओं को आहत करते हुए श्रीलंका से महिलाओं को लाकर सबरीमाला मंदिर में घुसाया गया। सरसंघचालक ने कहा:
“कोर्ट ने कहा महिला अगर प्रवेश चाहती है तो करने देना चाहिए। अगर किसी को रोका जाता है तो उसको सुरक्षा देकर जहाँ से अब दर्शन करते हैं वहाँ से ले जाना चाहिए। लेकिन कोई जाना नहीं चाह रहा है इसलिए श्रीलंका से लाकर इनको पिछले दरवाजे से घुसाया जा रहा है।”
हिन्दू महिलाएँ जानतीं हैं परम्पराओं का सम्मान करना
भागवत का यह बयान विचारणीय है। संघ प्रमुख ने वही बात कही है, जिस से हर एक हिन्दू और भारतीय परम्पराओं का सम्मान करने वाला व्यक्ति सहमत होगा। उन्होंने कहा कि हिन्दू महिलाएँ सबरीमाला मंदिर में नहीं जाना चाहती। उनका यह बयान निश्चित ही रेहाना फातिमा और मैरी स्वीटी जैसी महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश करने के परिपेक्ष्य में है। संघ प्रमुख की सोच यह है कि हिन्दू महिलाएँ अपने ही पूर्वजों द्वारा सदियों पहले बनाए गए परम्पराओं का सम्मान करना जानती है, और उसे तोड़ना नहीं चाहती।
अक्टूबर 2018 में 46 वर्षीय मैरी स्वीटी ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास किया था लेकिन श्रद्धालुओं के विरोध के कारन उन्हें वापस लौटना पड़ा था। ईसाई संप्रदाय से आने वाली मैरी स्वीटी के एक हिन्दू मंदिर में जबरन प्रवेश को लेकर सवाल भी खड़े किए गए थे। इसी तरह, उसी महीने रेहाना फ़ातिमा ने भी मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी। मैरी ने तो यहाँ तक कहा था कि उनके अंदर कोई दैवीय शक्ति है जो उन्हें सबरीमाला की तरफ खींच रही है।
संघ प्रमुख का यह कहना कि हिन्दू महिलाएँ सबरीमाला के नियम-क़ानून का पालन करना चाहती है, इन्ही ख़बरों के परिपेक्ष्य में हो सकता है। अन्य सम्प्रदायों की महिलाओं का अचानक से एक हिन्दू मंदिर के प्रति प्रेम जग जाना उनके इस बयान के पृष्ठभूमि को दर्शाता है। इसी तरह एक 46 वर्षीय श्रीलंकन महिला ने भी सबरीमाला में प्रवेश किया था। संघ प्रमुख ने इसी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि श्रीलंका से महिलाओं को लाकर मंदिर में घुसाया जा रहा है।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा के निर्णय से अलग नहीं है संघ प्रमुख का बयान
संघ प्रमुख का बयान इस मुद्दे को लेकर जस्टिस इंदु मल्होत्रा के असहमति वाले निर्णय से मिलता-जुलता है। आपको याद होगा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय पीठ ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाज़त दे दी थी। 4-1 के बहुमत वाले निर्णय में जस्टिस इंदु मल्होत्रा एकमात्र सदस्य थीं, जिन्होंने बहुमत के ख़िलाफ़ निर्णय (Dissenting Voice) दिया था। ग़ौरतलब है कि वह उस पीठ की एकमात्र महिला सदस्य भी थीं। उन्होंने कहा था:
“देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाये रखने के लिये गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएँ खत्म की जाएँ। भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ समानता के अधिकार का टकराव हो रहा है। इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है। इसका अन्य धार्मिक स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।”
अगर मोहन भागवत के बयानों की जस्टिस इंदु मल्होत्रा के बहुमत के विपरीत दिए गए निर्णय से तुलना करें तो पता चलता है कि दोनों के बयान काफ़ी मिलते-जुलते हैं। जस्टिस मल्होत्रा का कहना था कि इसका प्रभाव अन्य धार्मिक स्थलों पर भी पड़ेगा। उनका यह डर बेवज़ह नहीं था। कुछ दिनों पहले ही प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे नंदकुमार ने भी इसी प्रकार का डर जताते हुए कहा था कि अगर इस साजिश को सीमा से परे ले जाया गया तो देश के अन्य मंदिर और उनकी पूजा प्रणाली भी इस से अछूते नहीं रहेंगे।
वामपंथी ताक़तों पर प्रहार
संघ प्रमुख ने वामपंथी ताक़तों पर करारा प्रहार करते हुए JNU प्रकरण व ऐसे अन्य घटनाओं की तरफ भी इशारा किया। उन्होंने कहा:
“भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह बोलने वाले साथ मिलकर हमारे समाज में महिला-पुरुष में भेदभाव की बात लोगों के दिमाग में फैलने का काम कर रहे हैं। यह कपट है। राजनीतिक विवाद के कारण समाज को तोड़कर वोटों की कटाई करने वाले लोग ऐसा कर रहे हैं।”
ज्ञात हो कि केरल में वामपंथी पार्टी CPI (M) की ही सरकार है। केरल की लगभग सभी विपक्षी पार्टियाँ श्रद्धालुओं के साथ कड़ी नज़र आ रही हैं। कॉन्ग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर भले ही अदालत के निर्णय का स्वागत किया हो लेकिन पार्टी की राज्य ईकाई शुरुआत से ही केरल सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा रही है। राहुल गाँधी का बयान इस मामले में भी बदलता ही रहा है और हाल के बयानों में उन्होंने श्रद्धालुओं का समर्थन भी किया था। भाजपा की बात करें तो, पार्टी और उसके तमाम बड़े नेता एकमत से श्रद्धालुओं की वकालत करते रहे हैं।
संघ प्रमुख के बयान से उनका सन्देश साफ़ झलकता है। उनके बयान का सीधा अर्थ यह है कि राजनीति और वोटों के खेल के लिए हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। उनका मामना है कि ऐसे सदियों पुराने परंपरा पर किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पहले जान-भावनाओं का ख़्याल रखा जाना चाहिए।
यह पूरे भारत की लड़ाई है
केरल के श्रद्धालुओं को मोहन भागवत ने यह सन्देश भी देने की कोशिश की है कि उनकी इस लड़ाई में पूरा देश उनके साथ है, वो अलग-थलग नहीं हैं। भगवान अयप्पा को पूरे भारत द्वारा पूजे जाने की बात कह कर उन्होंने केरल के लोगों को ढाढस बंधाया है कि उनकी लड़ाई राष्ट्रीय स्तर की है, एक ही मंदिर, राज्य या सम्प्रदाय तक सीमित नहीं है। संघ प्रमुख का कि ‘सम्पूर्ण भारत के नागरिकों को वस्तुस्थिति से अवगत कराया जाएगा’, यह दिखता है कि संघ इस मामले में कमर कस चुका है।
संघ प्रमुख की सोच यह है कि अभी भी भारत के अधिकतर हिस्सों में ऐसे लोग हैं, जो सबरीमाला को केवल एक राज्य या मंदिर की समस्या समझते हैं। उनका कहना है कि हिन्दू सगठनों ने पूरे देश को इस से अवगत कराने की बात कह इस मुद्दे को पूरी तरह राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की तैयारी का संकेत दिया है। सार यह है कि अयप्पा किसी पंथ विशेष के देवता नहीं हैं, सम्पूर्ण हिन्दू समाज के हैं। सबरीमाला मंदिर समस्या सिर्फ एक मंदिर की नहीं है, अन्य धार्मिक स्थलों पर भी इसके परिणाम होंगे। और अंत में, यह मुट्ठी भर श्रद्धालुओं की लड़ाई नहीं है, पूरे देश के हिन्दुओं की है।