रवीश कुमार को भले ही NDTV से निकले 8 महीने हो गए हों, लेकिन उन्होंने अब YouTube को प्रोपेगंडा का नया अड्डा बना लिया है, जहाँ वो लाखों तक तक भ्रामक सूचनाएँ न सिर्फ पहुँचा रहे हैं, बल्कि उन्हें लेकर एक एजेंडे के तहत टिप्पणियाँ कर के लोगों को भड़का भी रहे हैं। अब उन्होंने मुज़फरनगर में वायरल हुए एक स्कूल के वीडियो को लेकर इसी तरह का कुछ किया है। उन्होंने जम्मू कश्मीर में ‘जय श्री राम’ कहने पर मुस्लिम शिक्षक द्वारा हिन्दू बच्चे को पीटे जाने पर भी चर्चा की, लेकिन सारा दोष बच्चे पर ही मढ़ दिया।
रवीश कुमार कहते हैं कि ‘लोगों ने इस घटना की निंदा की है’, लेकिन उनसे सवाल होना चाहिए कि किसने की है? क्या मोहम्मद ज़ुबैर ने इस घटना की निंदा की है, जिसने मुज़फ्फरनगर वाले वीडियो को लेकर दिन-रात एक कर दिया था? उस वीडियो पर तुरंत बयान जारी करने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बयान दिया है? क्या उस शिक्षक के विरुद्ध ट्विटर ट्रेंड चलाया गया, जैसा तृप्ता त्यागी के खिलाफ किया गया था। क्या अजीत अंजुम, विनोद कापड़ी और पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसों ने एक के बाद एक ट्वीट किए, जैसा उन्होंने मुज़फ्फरनगर की घटना को लेकर किया था?
इसीलिए, ‘लोगों’ ने निंदा की, लेकिन उन ‘लोगों’ में रवीश कुमार के गिरोह के साथी नहीं आते। रवीश कुमार जम्मू कश्मीर के कठुआ स्थित स्कूल की घटना को लेकर कहते हैं कि ‘अगर’ धर्म के आधार पर पीटा गया है तो सज़ा उस प्रावधान के अंतर्गत भी मिलनी चाहिए। ध्यान दीजिए, तृप्ता त्यागी पर सुप्रीम कोर्ट बन कर फैसले पर फैसले सुनाने वाले ये गिरोह ‘जय श्री राम’ को लेकर एक मुस्लिम शिक्षक द्वारा छात्र को पीटे जाने पर अगर-मगर लगा कर ऐसे बात करता है जैसे कुछ पता ही नहीं हो।
कठुआ की घटना पर ‘ज़्यादा जानकारी नहीं’: रवीश कुमार
इस घटना में सिर्फ शिक्षक फारूक अहमद ही शामिल नहीं है, बल्कि स्कूल के प्रिंसिपल मोहम्मद हाफिज ने भी उसका साथ दिया है। दोनों को निलंबित कर दिया गया है। इस घटना में न सिर्फ छात्र को घसीटा गया, बल्कि उसकी जम कर पिटाई की गई। मुज़फ्फरनगर वाली घटना में तो बच्चों ने बच्चे को मारा था, यहाँ 2 वयस्क शिक्षकों ने मिल कर इस घटना को अंजाम दिया है। क्या ‘जय श्री राम’ लिखने पर मुस्लिम शिक्षकों द्वारा पिटाई किए जाने के बाद भी कोई शक बचता है, क्या इसे मजहबी घृणा के आधार पर अंजाम नहीं दिया गया, फिर रवीश कुमार अगर-मगर क्यों लगा रहे?
रवीश कुमार कह रहे हैं कि इस घटना के संबंध में और ज़्यादा जानकारी नहीं है, न ही वो जुटा सकते हैं। और ज़्यादा कितनी जानकारी चाहिए? क्या सिर्फ उसे ही सूचना या जानकारी का तमगा मिलेगा, जो मोहम्मद ज़ुबैर निकाल कर लाया हो? मोहम्मद ज़ुबैर के एक ट्वीट के बाद, भले ही वो फेक ही क्यों न हो, रवीश जैसों के लिए ‘और जानकारी’ की कोई ज़रूरत ही नहीं बचती, जबकि ‘जय श्री राम’ कहने पर हिन्दू बच्चे को मुस्लिम शिक्षकों द्वारा पीटे जाने पर रवीश ‘और जानकारी’ की तलाश में हैं, तब तक रहेंगे जब तक दोनों शिक्षकों को निर्दोष न साबित कर सकें।
और तो छोड़िए, रवीश कुमार को इस बात से भी दिक्कत है कि हिन्दुओं ने अपने समाज के बच्चे को मजहबी घृणा के तहत पीट-पीट कर अस्पताल पहुँचा देने की घटना के खिलाफ प्रदर्शन क्यों किया। उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं है कि जिस स्कूल का प्रधानाध्यापक हिन्दू धर्म के प्रति ऐसी घृणा रखता हो, एक और शिक्षक यही भावना रखता हो, इन्होंने कितने बच्चों को अपना शिकार बनाया होगा। कश्मीर में ऐसे कितने शिक्षक होंगे। हिन्दू बच्चों को इनसे कितना खतरा होगा। लेकिन नहीं, रवीश कुमार को खतरा उनसे है जो बच्चों के साथ क्रूरता का विरोध कर रहे।
जबकि देखा जा सकता है कि प्रदर्शनकारियों में कई छात्र भी शामिल हैं। इसके बाद रवीश कुमार अपने प्रमुख एजेंडे की तरफ आ जाते हैं – ‘जय श्रीराम’ को अपराध साबित करने की तरफ। उनका सवाल है कि बच्चे ने स्कूल के बोर्ड पर ‘जय श्री राम’ क्यों लिखा। इसका सीधा जवाब होना चाहिए – हिन्दू है, बच्चा है, लिख दिया। लेकिन, रवीश कुमार जैसों के भेजे में ये नहीं घुसेगा। आज भी आप कई हिन्दू बच्चों की कापियाँ खँगालेंगे तो पाएँगे कि वो पहले पन्ने पर ‘जय माँ सरस्वती’ लिखते हैं।
इसीलिए रवीश कुमार जी, बच्चे द्वारा ‘जय श्री राम’ लिखना अपराध नहीं है बल्कि इस पर परिवार को गर्व होना चाहिए क्योंकि वो भारत की संस्कृति को समझता है। उसे अपने हिन्दू होने का एहसास है, वो जानता है कि भगवान श्रीराम इस देश के आराध्य हैं। उस बच्चे को पता है कि वो हिन्दू है और वो इसे छिपाना नहीं चाहता – इससे बड़ी गर्व की बात क्या होगी उसके परिवार के लिए? लेकिन अफ़सोस, 2 मुस्लिम शिक्षकों को उसका हिन्दू होना रास नहीं आया और उसे अस्पताल पहुँचा दिया। इसी तरह, रवीश कुमार को भी उस बच्चे के हिन्दू होने से दिक्कत है।
‘जय श्री राम’ से दिक्कत, एक समूह के लिए तो राष्ट्रगीत भी हराम
भारत के विद्यालयों में दशकों से सरस्वती पूजा मनाई जा रही है। ‘भारत माता की जय’ भी देश के सम्मान में बोला जाता है। जो ‘वन्दे मातरम्’ हमारा राष्ट्रगीत है, मुस्लिम नेता और मौलवी कहते हैं कि ऐसा बोलना इस्लाम में हराम है क्योंकि हम अल्लाह के सिवा किसी के सामने सर नहीं झुकाते। क्या अब भारत देश में ‘जय श्री राम’, ‘जय माँ सरस्वती’, ‘भारत माता की जय’ या ‘वन्दे मातरम्’ लिखा अपराध है? बच्चे को बोर्ड पर तरह-तरह की तस्वीरें बनाते हैं, शिक्षक के न रहने पर मस्ती करते हैं, शिक्षकों का भी मजाक बनाते हैं – यही तो बच्चों का बचपना है।
उस बेचारे बच्चे को नहीं पता है कि ‘जय श्री राम’ कुछ लोगों की नज़र में अपराध है। रवीश कुमार कह रहे हैं कि ये राजनीति से आया है। धर्मग्रंथ पढ़ना तो छोड़ दीजिए, शायद उन्होंने रामानंद सागर की ‘रामायण’ भी नहीं देखी है, जिसमें हनुमान जी ‘जय श्री राम’ का नारा लगाते हैं। यहाँ ‘श्री’ का अर्थ माता सीता से है, वहीं ‘राम’ अयोध्या के राजा, ‘जय’ का अर्थ विजय से है। यानी, हम इस वाक्य के द्वारा भगवान श्रीराम और माँ सीता का वंदन करते हैं। इसमें क्या कोई गाली है, क्या ये नारा लगा कर किसी की हत्या की गई है?
कौन सा नारा लगा कर हत्याएँ की गई हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। फ्रांस में 2016 में 84 वर्ष के एक वृद्ध पादरी का गला रेत डाला गया ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्ला कर। इसके अगले साल फ्रांस में ही एक व्यक्ति ने चाकू से गोद कर 2 महिलाओं को मार डाला और ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्लाने लगा। फ़्रांस के पेरिस में 2018 में एक व्यक्ति ने ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्ला कर एक को मार डाला। इस साल जर्मनी में यही लगा लगा कर 2 लोगों को गोद दिया गया। इसी साल इजरायल में एक महिला बंदूक लेकर ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्लाती हुई दौड़ पड़ी।
बड़ी बात ये है कि रवीश कुमार या उनके गिरोह के लोगों ने कभी इस नारे को आपत्तिजनक नहीं बताया, जबकि ‘जय श्री राम’ उन्हें आपत्तिजनक लगता है, राजनीतिक लगता है। वो तृप्ता त्यागी की तुलना मजहबी घृणा से सने उन शिक्षकों से की जिन्होंने बच्चे को पीट-पीट कर बच्चे को अस्पताल पहुँचा दिया। जाँच हो जाने तक रवीश लोगों को इंतजार करने की सलाह दे रहे हैं। क्या उनके गिरोह ने तृप्ता त्यागी वाले मामले में कम से कम यूपी पुलिस के बयान तक इंतजार करने की सलाह दी? नहीं, उस समय तो सब उछल कर लग पड़े इस मामले पर।
मुज़फ्फरनगर पर रवीश कुमार ने फैलाया झूठ
अब आपको बताते हैं कि मुज़फ्फरनगर में हुआ क्या था, फिर रवीश कुमार के प्रोपेगंडा को भी जानेंगे। खुब्बापुर गाँव में ‘नेहा पब्लिक स्कूल’ चलाने वाली तृप्ता त्यागी ने बच्चों से एक बच्चे को पीटने के लिए कहा, क्योंकि उसने होमवर्क नहीं पूरा किया था। इस दौरान उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाएँ बच्चों को लेकर मौके चली जाती हैं, जिनसे बच्चे बिगड़ जाते हैं। बच्चे को पीटने के लिए किसने कहा? बच्चे के ही बड़े चचेरे भाई ने, जिसने ये वीडियो भी बनाया था। असल में वही अपने भाई की शिकायत लेकर परिवार की तरफ से आया था।
तृप्ता त्यागी बुजुर्ग और दिव्यांग महिला हैं, ऐसे में उन्होंने बच्चे को खुद सज़ा न देकर अन्य बच्चों को ऐसा करने के लिए कहा। बच्चे के परिवार ने इसमें कोई सांप्रदायिक एंगल होने से इनकार किया है। पुलिस ने जाँच में कुछ भी सांप्रदायिक नहीं पाया। गाँव के मुस्लिमों ने भी कहा कि तृप्ता त्यागी में उन्होंने कभी भेदभाव वाली भावना नहीं देखी, कई उनसे पढ़े हुए हैं बचपन में और आज अपने बच्चों को उनसे पढ़ा रहे। सब कह रहे कम्युनल नहीं है, लेकिन रवीश कुमार चीख-चीख कर साबित करना चाह रहे हैं कि सब झूठे हैं, उन्होंने कैमरे के सामने होकर कह दिया कि हिन्दू-मुस्लिम है तो है।
रवीश कुमार को मोहम्मद ज़ुबैर से कोई दिक्कत नहीं है, जिसने कानून का उल्लंघन कर के मासूम बच्चों की पहचान सार्वजनिक की। उनका कहना है कि ‘बच्चे की पिता को समझाने की कोशिश की गई’। समझाने की नहीं तो क्या भड़काने की कोशिश की जाएगी? रवीश कुमार ने इसके बाद एक एनिमेशन के जरिए अपना प्रोपेगंडा फैलाया। उनका कहना है कि वीडियो ‘भयावह’ था और ‘देखने वालों का दिमाग सुन्न हो गया’। आजकल ये चलन हो गया है जहाँ साधारण घटनाओं को ISIS द्वारा सिर कलम करने के स्तर का बताया जाए।
रवीश कुमार को इससे भी दिक्कत है कि बच्चे का परिवार आखिर तृप्ता त्यागी के खिलाफ एक्शन न लिए जाने की माँग क्यों कर रहा है। आखिर क्यों मामला शांति से निपट गया। गिरोह को तो चैन तब आता है, जब दंगे होते हैं और उन दंगों की आग में वो अपनी रोटियाँ सेंकते हैं। इस बार वो मौका नहीं मिला, क्योंकि पूरा मामला ही झूठा निकला। अगर दंगे होते, तो उसके बाद मुस्लिम भीड़ को सही साबित करने का उपक्रम चलता। वैसे ही, जैसा नूँह की घटना को लेकर किया जा रहा है जहाँ हिन्दुओं की शोभा यात्रा पर हमले हुए।
तृप्ता त्यागी का मामले में स्पष्ट हो गया है कि कोई हिन्दू-मुस्लिम वाली बात नहीं है, इसके बावजूद रवीश कुमार इसका उलटा साबित करने में लगे हुए हैं। रवीश कुमार जबरन आरोप लगाते हैं कि मुस्लिम बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है, और उन्हें ‘आतंकवादी’ कहा जा रहा है। रवीश कुमार को ऑपइंडिया की ये रिपोर्ट पढ़नी चाहिए, जिसमें जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवाने की कई ऐसी घटनाओं का जिक्र है जिन्हें फर्जी पाया गया। अब रवीश गिरोह ने बच्चों का इस्तेमाल अपने एजेंडे के लिए करना शुरू कर दिया है।
Instead of condemning, brutual thrashing of a hindu kid by teacher Farooq and principal in kathua, J&K, Ravish questions Kid's intentions, and mental condition for writing Jai Shri Ram on Board. pic.twitter.com/132Fg682ew
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) August 29, 2023
रवीश कुमार ने इस वीडियो में मोहम्मद ज़ुबैर का झूठा बयान भी चलाया है, जिसमें उसने कहा है कि उसके अलावा किसी के खिलाफ FIR नहीं हुई है। जबकि मुज़फ्फरनगर वाले मामले के सामने आते ही पुलिस ने मंसूरपुर थाने में FIR दर्ज की थी। वैसे रवीश ने भले कश्मीर की घटना का जिक्र कर दिया, इस दौरान वो मध्य प्रदेश की एक घटना का जिक्र करना भूल गए, जहाँ छतरपुर में केवल कड़ा पहनने पर हिन्दू बच्चे को मुस्लिम शिक्षक ने पीटा। ऐसी घटनाएँ एक ट्रेंड बन चुकी हैं, जिसकी तुलना मुज़फ्फरनगर के मामले से नहीं हो सकती।
इसीलिए नहीं हो सकती, क्योंकि जहाँ मुज़फ्फरनगर वाला मामला सांप्रदायिक नहीं है और वहाँ शिक्षिका को लेकर मुस्लिम समाज के लोग ही अच्छी बातें कह रहे हैं, वहीं कठुआ और छतरपुर जैसी कई घटनाएँ सामने आ चुकी हैं जहाँ तिलक या हिन्दू प्रतीकों के लिए बच्चों को पीटा गया। रवीश कुमार कठुआ की तरह इन मामलों में भी महीन बचे को ही दोषी न ठहरा दें। आज ‘जय श्री राम’ से दिक्कत है, कल को वो ये कहने लगें तो कोई आश्चर्य नहीं कि बच्चे को तिलक लगाना सिखाने वाले माता-पिता ही अपराधी हैं।