बीते दिनों हमने सोशल मीडिया पर देखा कि कैसे जी न्यूज (zee news) में कोरोना संक्रमण की सूचना ने लिबरलों को ऑकसीजन देने का काम किया। हमने देखा कि किस तरह से जी न्यूज के कर्मचारियों के संक्रमित होने की सूचना पाते ही वामपंथी गिरोह ने इस खबर को प्रमुखता से अपनी टाइमलाइन पर ब्रेकिंग न्यूज की तरह चलाया। संस्थान के लिए ‘छी’ न्यूज जैसे शब्द इस्तेमाल कर वहाँ काम कर रहे सभी कर्मचारियों का मखौल उड़ाया।
वामपंथियों की टाइमलाइन पर zee news में संक्रमितों लोगों की संख्या गिनने की उत्सुकता इतनी देखने को मिली, जैसे कोई पुरानी मुराद ने अपना असर दिखाया हो। नैतिकता का पाठ पढ़ाते-पढ़ाते पूरा गिरोह जी न्यूज और सुधीर चौधरी को घेरने लगा। तबलीगी जमात की करतूतों पर सवाल उठाने के कारण संस्थान के कर्मचारियों की स्थिति को मरकज के जमातियों से भी तौला गया।
न्यूजलॉन्ड्री तो इतना उत्साहित हुआ कि अपना एजेंडा चलाने के लिए जी न्यूज की अंदरुनी सच्चाई के नाम पर सुधीर चौधरी के ख़िलाफ़ पूरा एक आर्टिकल लिख डाला। उनके ख़िलाफ़ घृणा की उलटी कर डाली और अंत में इस बात को भी जोड़ दिया कि वो वास्तिविक स्थिति को जानने के लिए सुधीर चौधरी से बात करने की कोशिश कर रहे हैं, पर उनका फोन स्विच ऑफ हैं। इसलिए जब भी उनसे या संस्थान के एचआर से बात होगी वो आर्टिकल को अपडेट कर देंगे।
अब आखिर ये शुभ काम कब होगा? किसी को नहीं पता और ये बात भी कोई नहीं जानता कि यदि सुधीर चौधरी या जी न्यूज का एचआर उनके लेख (एजेंडे) से उलट जवाब में कोई बात कह देंगे तो क्या आर्टिकल की पूरी भाषा दोबारा बदली जाएगी या फिर बदले हुए नाम वाले कर्मचारियों को सत्यापित करवाया जाएगा जिनकी आड़ में न्यूज़लॉन्ड्री ने ये आरोप लगाए हैं?
खैर! सोशल मीडिया पर इस समय इस आर्टिकल को खूब शेयर किया जा रहा है और वामपंथी भी अपनी अद्भुत लेखन शैली से पाठकों पर प्रभाव छोड़ने के लिए zee news के नाम पर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। मगर, इन बुद्धिजीवियों की बातों में एक चीज जो हर जगह सबसे सामान्य देखने को मिल रही है। वो ये कि ये लोग जी न्यूज में पाए गए कोरोना संक्रमितों के लिए या तो बहुत खुश हैं या फिर तबलीगी जमातियों के बराबर में रखकर उनसे संवेदना व्यक्त कर रहे हैं और सुधीर चौधरी को भाईचारे का मतलब समझा रहे है।
किंतु विचार करने वाली बात ये है कि भ्रामक शब्दों के जाल में फँसकर क्या वाकई तबलीगी जमातियों की ‘हरकत’ को zee news के कर्मचारियों की ‘स्थिति’ के साथ तौला जा सकता है? क्या वाकई कोरोना योद्धाओं को कोरोना बम कहकर बुलाया जा सकता है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं।
दरअसल, 15 मई के बाद से शुरू हुई ये तुलना केवल उस कुँठा की उपज है, जिसमें गिरोह सदस्य के लोग पिछले महीने से ही झुलस रहे थे और बहुत चाहने के बाद भी जमातियों की करतूत को जस्टिफाई नहीं कर पा रहे थे। मगर, आज जब एक ऐसा मीडिया संस्थान महामारी की चपेट में आया, जिसने जमातियों के ख़िलाफ़ खुलकर रिपोर्टिंग की, तो इन लोगों को संवेदनाओं के नाम पर खेलने का मौका मिल गया।
इन बिंदुओं पर गौर करिए और खुद फैसला करिए कि तबलीगी जमात के सदस्यों के गुनाह को आखिर कोई बिना एजेंडा के कैसे जी न्यूज के कर्मचारियों से जोड़ सकता है…
- जी न्यूज एक मीडिया संस्थान है और ये बात सब जानते हैं कि कोरोना संकट में मीडियाकर्मियों को ‘कोरोना योद्धाओं’ की श्रेणी में रखा गया है। उन्हें अपना काम रोकने से मनाही नहीं है। ऐसे समय में जब हर सेक्टर वर्क फ्रॉम करने के लिए बाध्य है, उस समय पत्रकारिता जगत से जुड़े लोगों को पूरा अधिकार है कि वह अपने दर्शकों को, पाठकों को यथास्थिति से अवगत कराने के लिए प्रयासरत रहें।
लेकिन, निजामुद्दीन स्थित मरकज- एक मजहबी स्थल है, जहाँ कोरोना के हालात जानने के बाद भी लोगों को मजहब के नाम पर जबरन रोका गया और अल्लाह का हवाला देकर समझाया गया कि मरना है तो यही मरो, इससे बढ़िया जगह कोई और होगी क्या?
- जी न्यूज में कोरोना संक्रमण का पहला केस आने के बाद फौरन संस्थान की ओर से स्टेटमेंट जारी की गई और सारे हालातों से दर्शकों को अवगत कराया गया।
लेकिन मरकज में संक्रमण फैलने के बाद हालातों को छिपाने की पूरी कोशिश हुई। बात यहाँ तक बिगड़ गई कि जब प्रशासन खुद संक्रमण के बारे में पता करने इलाके में पहुँची तो स्थानीय लोगों ने एंबुलेंस को भगा दिया।
- जी न्यूज में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने के बाद सुधीर चौधरी खुद सामने आए। उन्होंने संस्थान में बिगड़े हालातों को स्वीकारा, उन्होंने कहा कि हो सकता है जिस तरह की परिस्थिति बन गई है, उसमें स्वयं भी कोरोना संक्रमित हो जाएँ।
लेकिन, मरकज के मामले में अपने कुकर्मों की पोल खुलते ही मौलाना साद फरार हो गया और आज भी दिल्ली पुलिस को उसे ढूँढने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है, जगह-जगह छापे मारने पड़ रहे हैं, बार-बार ये कहना पड़ रहा है कि वह कोरोना चेक टेस्ट करवाकर सामने आए।
- न्यूजलॉन्ड्री के आर्टिकल के हिसाब से संस्थान में कई कर्मचारी हैं जिन्होंने अपने बूते कोरोना का टेस्ट कराया। हालाँकि, एजेंडा चलाने के लिए उन्होंने इस बात को कैसे प्रेषित किया, ये दूसरा विषय है। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि कर्मचारियों ने स्थिति को समझते हुए, सतर्कता बरतते हुए अपना बीड़ा खुद उठाया।
मरकज से निकाले गए लोगों के कारनामों को याद करिए। जब प्रशासन ने जमातियों को अस्पताल में भर्ती करवाया, उन्होंने प्रशासन की नाक में दम कर डाला।
- जी न्यूज के कर्मचारियों की स्थिति को मरकज के जमातियों से तौलने से पहले उन घटनाओं को भी याद रखने की जरूरत है, जब अस्पताल में भर्ती होने के बाद जमाती नर्सों के सामने नंगे घूमते दिखाई दिए। पैंट उतारकर अश्लील हरकतें की। क्वारंटाइन सेंटर में गंदगी फैलाई। मौका देखकर डॉक्टरों पर हमला करने से भी नहीं चूके।
क्या 15 मई के बाद से हम में से किसी ने भी तबलीगियों की तरह जी न्यूज के कर्मचारियों को ये उत्पात मचाते देखा। या फिर सुधीर चौधरी को इस मामले पर कुछ कहने से बचते देखा?
These are difficult times. 28 of my colleagues at @ZeeNews have tested positive for COVID-19. Thankfully all of them are fine,mostly asymptomatic. I wish them a speedy recovery and salute their courage & professionalism. Sharing the official statement with you. pic.twitter.com/50yW2auj0Y
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) May 18, 2020
ये बात बिलकुल सच है कि कोरोना महामारी का ये समय वो काल है जब हर किसी को अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना है। मगर, उसी बीच इस बात को भी ध्यान रखना है कि हमारे कारण किसी अन्य को नुकसान न पहुँचे। जी न्यूज के प्रत्येक कर्मचारी ने इस बात को अपने बूते सार्थक किया। साथ ही प्रोफेशन के लिए प्रतिबद्धता और अपने काम के प्रति लगन का उदहारण पेश किया।
Team @ZeeNews is on the frontline, while social media stone pelters spread rumours. Those who are infected had the option of sitting at home & sharing memes.They came to work because they’re committed professionals.If you can’t show them respect,don’t expose your spiteful selves!
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) May 18, 2020
इसलिए, उनका इस संकट की चपेट में आना केवल बने-बनाए हालातों का परिणाम है या ये कहें एक दुर्घटना है। किंतु मरकज के कारण जो पूरे देश कोरोना तेजी से फैला, वह समुदाय विशेष के बीच फैली धूर्तता व कट्टरपंथ का नमूना है।
BREAKING NEWS for those who are tweeting #ZeeNewsSealKaro !Our office, newsroom and studios were sealed on Friday itself by the very efficient NOIDA authorities. Read the official statement carefully. And stop spreading lies. The world has enough to deal with already. pic.twitter.com/6T3koDlFU9
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) May 18, 2020
यहाँ बता दें, सोशल मीडिया पर इस समय जी न्यूज को मरकज से जोड़ने के लिए उसको ‘जी मरकज’ जैसे शब्दों की उलाहना भी दी जा रही है, जिसपर सुधीर चौधरी ने खुद सफाई दी है कि उनका ऑफिस नोएडा प्रशासन द्वारा पिछले फ्राइडे को ही सील किया जा चुका है और जिन्हें यकीन नहीं है वे खुद आधिकारिक बयान को पढ़ लें और झूठ के कारोबार को विराम दें।
आखिर में सिर्फ़ ये बात याद रखने वाली है कि अपवाद हर जगह पर होते हैं। मरकज में भी थे। जी न्यूज में भी रहे होंगे। किंतु, अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाहन करते हुए कौन दो व्यक्ति, कौन से दो संस्थान, समाज के भले के लिए कैसा बर्ताव कर रहे हैं, बस यही बिंदु उन्हें समांतर रखते हुए तुलना के योग्य बनाता है। वरना अगर दो अलग-अलग प्रवृति की किन्हीं चीजों को बराबर रखा जाता है, उनपर एक साथ बात की जाती है, तो उसे समानता नहीं बल्कि अंतर कहते हैं। जैसे जी न्यूज और तबलीगी जमातियों को लेकर ऊपर हमने बिंदुवार बताया है।
हम ये बात मानते हैं कि मरकज में बहुत से जमाती रहे होंगे जिन्हें कोरोना का मालूम पड़ते ही वह वहाँ से भागने को विचलित हो उठे। लेकिन सच ये भी है कि अधिकांश जमाती छुप-छुपकर अपने घर लौटे व बात खुलने पर सामने नहीं आए। इस क्रम में पढ़े लिखे डॉक्टर से लेकर विदेश से आए लोग भी शामिल थे। तो बताइए, कैसे मरकज की स्थिति एक ऐसे मीडिया संस्थान से जोड़ने के लायक है, जहाँ कर्मचारी केवल अपने प्रोफेशन के साथ इसलिए ईमानदारी से लगे हुए थे, क्योंकि प्रशासन ने उन्हें इसकी इजाजत दी थी।