हाल में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की लाइब्रेरी के कई विडियो सामने आए हैं। ये विडियो 15 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के दौरान के बताए जा रहे हैं। एक विडियो के आधार पर दिल्ली पुलिस पर निर्दोष छात्रों को पीटने का आरोप लगाया गया था। लेकिन बाद में आए विडियोज से पता चल गया कि पुलिस ने उन दंगाइयों को चिह्नित कर कार्रवाई की थी जो भागते हुए लाइब्रेरी में घुस आए थे और पढ़ने का ड्रामा कर रहे थे। एक विडियो में एक लंबे बाल वाले छात्र के हाथ में पत्थर भी दिखा था। बाद में इसकी पहचान जामिया के पीएचडी छात्र अशरफ भट के तौर पर हुई। विडियो वायरल होने के बाद उसने सोशल मीडिया पर प्रोफाइल डिलीट/डीएक्टिवेट कर दिए। सूत्रों के अनुसार अपनी बाल और दाढ़ी भी कटवा ली।
इसके बाद प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘ऑल्टन्यूज़’ ने दावा किया कि विडियो में दिख रहे छात्र के हाथ में पत्थर नहीं, वॉलेट है। हालाँकि, अगर ऐसा होता तो अशरफ भागता नहीं और अपनी पहचान नहीं छिपाता। फिर भी, इस नए विडियो को देखिए, जिससे स्पष्ट पता चल रहा है कि उसके हाथ में पत्थर ही था। किस एंगल से लग रहा है कि ये पर्स है? झोंटा वाले दंगाई छात्र ने जो हाथ में ले रखा है, साफ़ दिख रहा है वो पत्थर है। अन्य छात्रों के हाथ में भी पत्थर दिख रहे हैं।
Here is clear vedio
— Dev Azad (@DevKuma43943937) February 18, 2020
Jamia Students carrying STONES
Long hair also has stones, which alt news said he was carrying wallet#FakeItLikeAltNews @sambitswaraj @M_Lekhi @AMIT_GUJJU @GappistanRadio @KapilMishra_IND @MODIfiedVikas @rishibagree @indiantweeter @ippatel @amitmalviya pic.twitter.com/Xm3i4iHp7m
जामिया मिल्लिया इस्लामिया लाइब्रेरी में पत्थर लेकर घुस रहे दंगाई छात्रों को बचाने के लिए ‘ऑल्टन्यूज़’ ने एक तरह से जंग का ऐलान कर दिया है। फैक्ट-चेकिंग का दावा कर के लोगों को बरगलाने में सतत व्यस्त रहने वाले प्रोपेगेंडा पोर्टल ने पत्थरबाजों का बचाव करने की कसम खा रखी है। तभी तो झूठा साबित होने के बावजूद उसने अभी तक अपनी वो ख़बर नहीं हटाई है, जिसमें दावा किया गया था कि लाइब्रेरी में दंगाई पत्थर नहीं बल्कि पर्स लेकर घुस रहे थे। पत्थर को पर्स बता कर उपद्रवियों, दंगाइयों और पत्थरबाजों को वाइटवॉश करने में लगा ‘ऑल्टन्यूज़’ दिल्ली पुलिस को बदनाम करने में मशगूल है।
हालाँकि, प्रोपेगेंडा पोर्टल के दोनों संस्थापक प्रतीक सिन्हा और ज़ुबैर यूँ तो सोशल मीडिया पर लड़ाई-झगड़े में लगे रहते हैं, लेकिन पोल खुलने के बाद से उन्होंने इस सम्बन्ध में लोगों को जवाब देना बंद कर दिया है। दोनों संस्थापक दुनिया-जहान की बातें कर रहे हैं लेकिन अब तक वो अपने लेख का बचाव करने में विफल रहे हैं। ‘ऑल्टन्यूज़’ की निर्लज्जता का आलम देखिए कि पत्थर को पर्स बताने वाले लेख को उसने अभी तक वेबसाइट की मुख्य खबर के रूप में लगा रखा है (ख़बर लिखे जाने तक)।
ऊपर संलग्न किए गए विडियो को फिर से देखिए। कल को ‘ऑल्टन्यूज़’ कह सकता है कि वो कोई इच्छाधारी वस्तु है, जो समय-समय पर रूप बदल लेता है। या फिर ये तक कहा जा सकता है कि वो संघी पर्स था, जो कैमरे को देखते ही पत्थर बन गया। वो उतना ही ‘कैमरा कॉन्शियस’ है, जितने कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। वैसे, आजकल मीडिया जिस स्तर पर खेल रहा है, ये सब भी होने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
सोशल मीडिया पर लोगों ने ‘ऑल्टन्यूज़’ की इस कला के कई और नमूने पेश किए, जिसमें वो दंगाइयों को बचाने के लिए सारी हदें पार कर देता है। व्यंगात्मक अंदाज़ में मज़े लेते हुए लोगों ने कहा कि ‘ऑल्टन्यूज़’ तो आतंकी ओसामा बिन लादेन को भी साईंभक्त साबित कर देता और कहता कि एक उँगली दिखा कर वो कह रहा है- ‘सबका मालिक एक।‘ कुछ ने फोटोशॉप के माध्यम से पत्थरबाजों को क्रिकेट के मैदान में फिट कर दिया और कहा कि ‘ऑल्टन्यूज़’ के मुताबिक पत्थरबाज दंगाई नहीं, बल्कि गेंदबाज हैं जो बॉलिंग कर रहे हैं।
निष्कर्ष ये है कि अगर आतंकियों को बचाने के लिए ऐसे प्रोपेगंडा पोर्टल्स को ये भी कहना पड़े कि सूर्य पश्चिम से उगता है, तो वो कहेंगे।