डेटा- यह एक ऐसी चीज है जिसका इस्तेमाल आजकल सच को समझाने के लिए कम और लोगों को बरगलाने में ज्यादा हो रहा है। आँकड़ों से खेल कर कल को यह भी साबित किया जा सकता है कि जलियाँवाला बाग़ में अंग्रेजों ने नरसंहार नहीं किया था बल्कि दीपावली के पटाखे फोड़े थे। आँकड़ों का प्रयोग कर के एक बार फिर से बरगलाने की कोशिश की गई है। डेलीओ में राणा सफ़वी द्वारा लिखे गए एक लेख में मुग़लों को महान साबित करने की कोशिश की गई है और इसके लिए कुछेक आँकड़ों के इस्तेमाल किए गए हैं। यहाँ हम उन आँकड़ों की पोल तो खोलेंगे ही, साथ ही यह भी बताएँगे कि इस खोखले नैरेटिव के पीछे कैसी साज़िश है? इस बहती जमुनी में स्वरा भाष्कर ने भी हाथ धोए और कहा कि मुग़लों ने भारत को धनवान बनाया।
सबसे पहले लेख की बात करते हैं। राणा सफ़वी ‘भारतीय मुग़ल’ पुस्तक के लेखक हरबंस मुखिया के हवाले से लिखती हैं कि मुग़लों को आक्रांता नहीं कहा जा सकता। उन्होंने लोगों के ‘इतिहास ज्ञान’ पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि हर आक्रमण को भारत में ब्रिटिश की तरह ही समझा गया। उन्होंने दावा किया है कि मुग़ल भले ही आक्रांता बन कर आए लेकिन वे यहाँ भारतियों की तरह रहे। साथ ही मुग़ल राजाओं द्वारा राजपूत स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने और शादी करने को भी मुग़लों की ‘भारतीयता’ से जोड़ा गया है। मुग़लों ने राजपूतों को सेना में ऊँचे पद दिए।
The problem, when semi-literate byproducts of affirmative action like Rana Safvi, start writing about history is, they expose themselves to be the frauds we know them to be. Mughals made us “rich” ??? https://t.co/OmDyB7WfpZ pic.twitter.com/QRb6nqPMOc
— Abhijit Iyer-Mitra (@Iyervval) July 13, 2019
इसके अलावा सबसे अजीब बात यह है कि 1857 के विद्रोह को भी मुग़लों की ही देन बताने की कोशिश की गई है। यहाँ लोगों के इतिहास ज्ञान पर सवाल खड़ा करने वाली राणा सफ़वी को ख़ुद इतिहास सीखने की ज़रूरत है। शायद राणा सफ़वी ने अकबर और जोधा की शादी को लेकर ऐसा लिखा है। मुग़ल राजाओं में किसी भारतीय से शादी करने वाला अकबर पहला बादशाह था और उसका बेटा जहाँगीर जोधा की कोख से ही पैदा हुआ। लेकिन, जोधा-अकबर के तथाकथित रोमांस को लेकर धारणा बनाते समय यह बात हमेशा छिपा दी जाती है कि यह पूरी तरह से एक राजनीतिक शादी थी।
जोधा के पिता आमेर के राजा भारमल अकबर के साले शरीफुद्दीन मिर्जा से परेशान थे। इसके बाद आमेर ने एक संधि के तहत अपने राज्य को मुग़लों को समर्पित कर दिया और अकबर-जोधा की शादी भी इसी का परिणाम थी। जोधा को शादी के बाद मरियम-उज़-ज़मानी नाम से जाना गया। यहाँ राणा सफ़वी इसी तरह की राजनीतिक शादियों को मुग़लों की तथाकथित भारतीयता से जोड़ रही हैं। अकबर ने और भी कई शादियाँ की, और इसके बाद भी मुग़ल राजाओं और राजपूत स्त्रियों की शादियाँ हुई लेकिन वे सभी राजनीतिक कारणों से हुईं। यह मुग़लों की और राजपूतों दोनों की ही मज़बूरी थी। मुग़ल लगातार शक्तिशाली होते जा रहे थे और कई राज्य उनसे सीधे उलझना नहीं चाहते थे। इसी तरह मुग़ल भी लड़ाइयों से बचते हुए अपनी सीमाएँ बढ़ाते जा रहे थे।
अब आते हैं 1857 के विद्रोह पर। चूँकि उस समय तक मुग़ल राज्य शक्तिहीन हो चुका था और बहादुर शाह जफ़र की कुछ ख़ास ताक़त बची नहीं थी। मराठों ने मुग़लों को पस्त कर रखा था और अंग्रेजों ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। हाँ, दिल्ली में अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर की सेना ज़रूर अंग्रेजों से लोहा ले रही थी लेकिन जब 14 सितम्बर को अंग्रेज लाल किले पर पहुँचे, तब तक भयभीत बादशाह अपने पुरखे हुमायूँ के मक़बरे में जाकर छिप चुका था। झाँसी से लेकर आरा और ग्वालियर तक विद्रोह हुए और बहादुर शाह कहीं भी दृश्य में नहीं था। राणा सफ़वी ने यह भी गलत लिखा है कि 1857 की लड़ाई में बहादुर शाह ज़फर को ‘हिंदुस्तान का बादशाह’ मान कर पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया था- यह केवल गंगा-जमुना दोआब के क्षत्रपों का निर्णय था, जबकि आज़ादी की वह लड़ाई चटगाँव के कम्पनी सिपाहियों और आरा में कुँअर सिंह से लेकर काठियावाड़ तक धधक रही थी, और यह लोग अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे थे, मुगलों की गुलामी करने के लिए नहीं।
बहादुर शाह ज़फर को जब अपनी गद्दी जाने का डर सताने लगा, तब जाकर वो सक्रिय भी हुआ- वरना तो सालों तक तो उसने कभी दरबार तक लगाने की भी कोशिश नहीं की थी। इसके बाद लेखिका लिखती हैं कि 16वीं से लेकर 18वीं शताब्दी तक मुग़ल विश्व सबसे अमीर साम्राज्य था। क्या यह समृद्धि मुग़ल अफ़ग़ानिस्तान और अरब से लेकर आए थे? क्या मुग़लों ने अरब से धन लाया, जिससे भारत समृद्ध हुआ? उनके पूर्वज तो उलटा भारत को लूट कर गए थे- बल्कि मुग़ल तो हमेशा से अपने आप को लुटेरे, हत्यारे और बलात्कारी तैमूर का वंशज कहलाने में फख्र महसूस करते थे, ऐसा उनके समय के दस्तावेजों से भी पता चलता है। शासन भले ही मुग़लों का था लेकिन समृद्धि हिंदुस्तान में पहले से ही थी, जो इस्लामी शासनकाल में समय के साथ कम ही होती गई।
Indians were THE Richest (not among richest) before Mughal Regime pic.twitter.com/sK99pcsZTH
— Rishi Bagree ?? (@rishibagree) July 14, 2019
राणा सफ़वी एक फ्रेंच पर्यटक के हवाले से लिखती हैं कि विश्व के कोने-कोने से सोना-चाँदी भारत में आते थे। क्या यह नया था? दक्षिण भारत और रोम के बीच व्यापक व्यापार को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत इस मामले में हज़ारों वर्ष पूर्व से ही अग्रणी था। रोम से व्यापारी भारतीय मसालों व सुन्दर जानवरों के लिए आते थे और बदले में सोने के सिक्के देते थे- और ऐसा मैं नहीं कह रहा, चाचा नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में लिखा है। ऐसे कई रोमन सिक्के आज भी मौजूद हैं, जिसमें रोम के सम्राट अगस्टस के चित्र हैं। अतः भारत में दुनिया के कोने-कोने से सोने-चाँदी का आना कोई नई बात नहीं थी। बल्कि, रोमन साम्राज्य के समय हिंदुस्तान इतना सोना खींच रहा था कि भारत से व्यापार जारी रखने के लिए उन्हें अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ गया।
आगे भारत की जीडीपी की बात की गई है लेकिन उससे पहले एक और झूठा नैरेटिव यह गढ़ने का प्रयास किया गया है कि हिन्दू अमीर होते थे और सारे धन उन्हीं के पास था। यह एक तर्क के रूप में बेहद बेतुका है। यह ऐसा ही है जैसे कोई यह तर्क दे कि रोम में सारा धन रोमन लोगों के पास था। यह ऐसा ही है जैसे कोई इतिहासकार यह सवाल करे कि मंगोलिया में सारी संपत्ति मंगोलों के पास ही क्यों थी? हिन्दू और इससे निकले बौद्ध, जैन व सिख सम्प्रदाय के लोग भारत के मूल निवासी हैं- ऐसे में आज से 500 वर्ष पहले की बात करते हुए यह पूछना बेमानी ही है कि भारत की संपत्ति इन लोगों के अधिकार में क्यों थी। अब आते हैं जीडीपी वाली बात पर। लेखिका ने ‘अंगस मैडिसन’ के हवाले से दर्शाया है कि भारत की जीडीपी सन 1600 से लेकर 1870 तक बढ़ती रही। इसके लिए एक तालिका पेश की गई है। लेकिन, इसमें एक लोच है।
इस तालिका में दिखया गया है कि सन 1600 में भारत की जीडीपी $74,250 मिलियन थी, जो सन 1700 में $90,450 मिलियन हो गई और अंततः 1870 में $134,882 मिलियन हो गई। अगर इन आँकड़ों की बात करें तो पहली नज़र में भारत की जीडीपी बढ़ती दिख रही है। लेकिन, क्या आपको पता है कि ब्रिटिश राज आने के बाद 1913 में भारत की जीडीपी इसी आँकड़े के हिसाब से $204,221 मिलियन डॉलर हो गई थी? राणा सफ़वी से बस एक सवाल, इसका क्रेडिट किसे दिया जाएग- मुग़लों को या फिर ब्रिटिश को? जहाँ सन 1600 में भारत की जीडीपी विश्व का 22.4% थी, सन 1820 में यह घट कर 16.1% हो गई।
इससे साफ़ पता चलता है कि भारत जिस तरह पहले विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा था, मुग़लों के समय अगर कुछ काल को छोड़ दिया जाए तो उस प्रतिस्पर्धा में भारत लगातार पिछड़ते चला गया। हाँ, शेरशाह सूरी द्वारा अपनाए गए कुछ वित्तीय नियम-क़ानून को जारी रख कर मुग़लों ने अर्थव्यवस्था में सुधार ज़रूर किए लेकिन बाद में मंदिरों के विध्वंस, सामूहिक हत्याकांड, बलात्कार और व्यापक लूटपाट की वजह से भारत समृद्धि और अमीरी के मामले में पीछे छूट गया। नीचे दिए गए इस ग्राफ को देखिए, जो ‘अंगस मैडिसन’ के आँकड़ों पर ही आधारित है। इसमें आप साफ़-साफ़ देख सकते हैं कैसे जब यूरोप और अमेरिका अपना दबदबा बढ़ा रहा था, भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक रेस में लगातार पिछड़ती जा रही थी। मुगलों के ‘मेहरबानी काल’ में ही चीन ने हमें पछाड़ा, और उससे पहले मुग़लों के मज़हबी बिरादरों दिल्ली सल्तनत के आक्रमण और शासन काल में भी कभी दुनिया की चोटी पर रही हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत आप देख सकते हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था का विश्व में इतना दबदबा था कि यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और मौर्य एवं गुप्त काल से यह दबदबा बरकरार रहा। आख़िर क्या कारण है कि ‘अच्छे इस्लामिक आक्रांता’ और ‘बुरे इस्लामिक आक्रांता’ कौन थे, इस पर बहस कर इसकी कोशिश की जा रही है कि हिंदुस्तानी मुग़लों के शुक्रगुज़ार बनें? अगर हमारे घर में कोई घुस आए और हमारी संपत्ति पर ऐश करते हुए हमें घर का नौकर बना दे, क्या इसे हमारी समृद्धि के रूप में गिना जाएगा? क्या मेरे घर में घुस आने वाले डाकू की हम पूजा करें क्योंकि उसने मेरे धन को लूट कर अपने घर ले जाने की बजाए मेरे घर में बैठ कर ही अय्याशी की? नहीं, मुग़ल और ब्रिटिश को अलग कर के नहीं देखा जा सकता। केवल उनके द्वारा की गई हिंसा का स्तरों को मापा जा सकता है, उसकी तुलना की जा सकती है।
इस लेख की सबसे अजीब बात यह है कि दारा शिकोह द्वारा लिखी गई पुस्तक का तो जिक्र मुग़लों की महानता दिखाने के लिए किया गया है लेकिन ख़ुद शिकोह का क्या हुआ, इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है। ज़ंजीर में बँधे शिकोह को मैले हाथी पर बिठा कर दिल्ली की सैकड़ों पर घुमाया गया था। पर्यटक ‘निक्कोलाओ मनुक्की’ लिखते हैं कि जब औरंगजेब के आदेश पर दारा शिकोह का कटा हुआ सिर उसके सम्मुख लाया गया तो उसने उस पर तलवार से तीन वार किया और उस सिर को कुचल डाला। इसके बाद सैनिकों को आदेश दिया गया कि जेल में बंद शिकोह (और औरंगज़ेब) के बूढ़े बाप शाहजहाँ को यह सिर तब पेश किया जाए, जब वह भोजन करने बैठे। मुग़लों के भारत में धर्मनिरपेक्षता की सज़ा यही थी।
Emperor Aurangzeb receiving Dara Shikoh’s head. Date unknown..
— Indian Art (@IndiaArtHistory) September 9, 2018
The mughal throne was never about the eldest/first born son.
The mughal throne was always about the Son who had the Military might.. #MughalHistory pic.twitter.com/ZIRnqYJwoI
Mughals made India rich.. #history #fact https://t.co/DAfwm14MLn
— Swara Bhasker (@ReallySwara) July 13, 2019
आज एक बार फिर से यह याद दिलाना ज़रूरी है कि भारत में मुग़लों द्वारा किए गए जिन कार्यों को अच्छा गिनाने की कोशिश की जा रही है, वह सब राजनीतिक रूप से ख़ुद को मजबूत करने के लिए किए गए थे। मुग़ल ख़ुद यहीं के होकर रह गए क्योंकि उन्हें यहाँ अय्याशी और राज करना था। उन्होंने दिल्ली-आगरा की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहाँ राजधानी स्थापित की और बाकी के इस्लामिक आक्रांताओं की तरह ही मंदिरों को ध्वस्त किया, बलात्कार किए, जबरन मतांतरण को बढ़ावा दिया, हिन्दुओं पर जज़िया लगाया गया और इस्लाम कबूल न करने पर नृशंस यातनाएँ दी गईं। भारत की अर्थव्यवस्था के सच से अधिक झूठ में पगे हुए आँकड़े पेश कर देने से मारकाट मचा कर सत्ता हथियाने वाले मुग़ल महान नहीं हो जाएँगे। हमारे घर में आकर, हमें ही मार कर, हमारी संपत्ति पर अय्याशी करने वाले को महान कैसे कह दें?