लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पास होने के साथ ही लिबरल गिरोह में खलबली मच गई। इस गिरोह ने बिल के खिलाफ जनता को बरगलाने के लिए कई बेतुके और कुतर्क दिए। वामपंथी गिरोह ने अपने आधारहीन और बेतुके तर्क में दावा किया कि यह बिल भारत के संविधान के खिलाफ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ के खिलाफ है। साथ ही उन लोगों ने इसे ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ बिल भी करार दिया। इनमें से कई तर्क ऐसे हैं, जिसे गिरोह द्वारा बार-बार दोहराया गया।
मीडिया गिरोह से जुड़े कुछ लोगों ने और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर विधेयक का विरोध करने वाले वामपंथी तबके ने सोशल मीडिया पर लोगों में खूब भ्रम फैलाने की कोशिश की। अलग-अलग तर्क देकर इसके ख़िलाफ़ लोगों को बरगलाया गया। इसमें द प्रिंट के फाउंडर और वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता का नाम भी शामिल रहा। हालाँकि वो अपने समुदाय द्वारा बार-बार दोहराए जा रहे इस तर्क से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने कुछ नया करने का सोचा और वो एक नए तर्क के साथ जनता को बरगलाने के लिए सामने आए। मगर इस तर्क से उन्होंने एक बार फिर से अपनी नासमझी और बेवकूफी का परिचय दे दिया।
ThePrint’s #50WordEdit on CAB: pic.twitter.com/2r7MiSuKQf
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) December 10, 2019
द प्रिंट के शेखर गुप्ता ने CAB को लेकर ’50 WordEdit’ नाम से एक ट्वीट किया। ’50 WordEdit’ कुछ नहीं, बस अपनी बात को 50 शब्दों में समेटेने का द प्रिंट वालों का एक ‘नायाब’ आइडिया है। 50 शब्द में पत्रकारिता के ये तथाकथित झंडाबरदार कह कर निकल लेंगे, आप उसके आगे-पीछे सोचते रहिए। इसी ’50 WordEdit’ में इन्होंने दावा किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक वह नहीं है, जिसके लिए भाजपा को वोट दिया गया था। उन्होंने लिखा कि इस बिल के माध्यम से मोदी सरकार बिना मतलब के बँटवारे की बात को लाने की कोशिश कर रही है। जबकि भारत 1947 के बाद से काफी आगे बढ़ चुका है। बीजेपी इस बिल को लाकर 2019 में विचारों का दिवालियापन दिखा रही है। उन्होंने आगे कहा कि भले ही यह बिल संसद से पारित हो जाए, लेकिन यह वह नहीं है जिसके लिए बीजेपी को वोट दिया गया था।
यानी कि शेखर गुप्ता का कहना है कि बीजेपी को नागरिकता संशोधन विधेयक के लिए वोट नहीं किया गया था। शेखर का यह भी कहना है कि जनता इस विधेयक को कानून बनाने के लिए मोदी सरकार को सत्ता में लेकर नहीं आई थी। मगर बेहद अफसोस की बाद है कि शेखर गुप्ता खुद तो सच्चाई से अनजान हैं ही, साथ ही देश की जनता के भीतर भी भ्रम पैदा कर रहे हैं। उनकी बातें सच्चाई से कोसों दूर हैं। यह उनके जैसे वरिष्ठ पत्रकार के लिए अच्छी स्थिति नहीं है। खैर, अब वो पत्रकार रहे भी नहीं शायद!
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि भाजपा पड़ोसी देशों से धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्तियों को उत्पीड़न से बचाने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही पार्टी पूर्वोत्तर की स्थानीय संस्कृति एवं रीति रिवाज का संरक्षण करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसमें यह भी कहा गया था कि पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के चलते आए हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को लोगों को CAB के तहत भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
गृह मंत्री अमित शाह ने भी नागरिकता संशोधन विधेयक को ऐतिहासिक करार देते हुए सोमवार को कहा कि यह भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है तथा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में देश के 130 करोड़ लोगों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाकर इसकी मंजूरी दी है।
2019 के घोषणापत्र में बीजेपी ने साफ तौर पर नागरिकता संशोधन विधेयक को कानून बनाने की बात कही थी और जनता ने भी 300 से अधिक सांसदों को लोकसभा भेजकर यह साबित कर दिया था कि वह भी इस कानून के पक्ष में है और चाहती है कि कानून बने। तभी उसने भारी मतों से मोदी सरकार को वापस से सत्ता दिया। शेखर गुप्ता, अगर आप लोकतंत्र मानते हैं और लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं तो आपको जनता के फैसले को समझना और स्वीकार करना चाहिए। एक बात और, जनता मूर्ख नहीं है, जिसे आप बरगला रहे हैं। उन्होंने सोच-समझकर वोट दिया है और मोदी सरकार जनता के उसी भरोसे और अपने वादे को पूरा कर रही है।
हालाँकि शेखर गुप्ता इससे पहले भी मोदी सरकार के खिलाफ झूठ बोल चुके हैं। बता दें कि मोदी सरकार की ऐतिहासिक जीत से पहले देश में मौजूद समुदाय विशेष के पत्रकार अपने लेखों के जरिए इस बात को साबित करने में जुटे थे कि मोदी सरकार की हर नीति, योजना और प्रयास आम लोगों के ख़िलाफ़ है। लेकिन जब प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार सत्ता में वापस लौटी तो शेखर गुप्ता ने एक चर्चा ‘How India Voted’ में स्वीकारा कि चुनाव से पहले पत्रकारों ने मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सफलता को नजरअंदाज किया था।
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