Thursday, April 25, 2024
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ना BJP हिंदुत्व से भटकी, ना ही हिन्दू नाराज़ हैं… ऐसा होता तो नहीं हारते CT रवि जैसे नेता, हिजाब-मुस्लिम आरक्षण-ईदगाह मैदान सब पर रहा कड़ा स्टैंड

2022 के मध्य में ही जिस तरह से बेंगलुरु में स्थित ईदगाह मैदान को लेकर विवाद हुआ था, तब भी कर्नाटक की भाजपा सरकार ने सही स्टैंड लिया था। गणेश चतुर्थी के आयोजन की अनुमति दी गई।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम जारी हो गए हैं। 224 सदस्यीय विधानसभा में कॉन्ग्रेस के जहाँ 135 विधायक होंगे, वहीं भाजपा को 66 सीटों से संतोष करना पड़ा। JDS तो मात्र 19 सीटों पर सिमट गई। कॉन्ग्रेस पार्टी का वोट शेयर 42.9% रहा, जबकि भाजपा 36% वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। जेडीएस 13.3% वोट शेयर ही पा सकी। इस तरह, भाजपा का वोट शेयर लगभग बरकरार रहा जबकि JDS को जितना नुकसान हुआ, कॉन्ग्रेस को लगभग उतना ही फायदा हुआ।

हार-जीत हर राजनीतिक दल के लिए चलता रहता है। लेकिन, भाजपा की हर हार पर आजकल काफी विश्लेषण किया जाता है और इसे मोदी लहर का अंत मान लिया जाता है। याद रखने की ज़रूरत है कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कॉन्ग्रेस पार्टी ने कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में सरकार बनाई थी। फिर 2019 में क्या हुआ, वो बताने की ज़रूरत नहीं है। इसी तरह, ताज़ा हार का भी खूब पोस्टमॉर्टम हो रहा है।

सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव के बाद से ही एक अच्छी बात ये रही है कि एक आम आदमी भी अपनी बात को हजारों-लाखों लोगों तक पहुँचा सकता है। लेकिन, इसका एक नुकसान ये भी है कि किसी ऐसे नैरेटिव को भी फैलाया जा सकता है, जो ग्राउंड पर वास्तविकता न हो। भाजपा की ताज़ा हार का कारण लोग ये बता रहे हैं कि पार्टी हिंदुत्व से भटक गई है। दूसरा, ये कहा जा रहा है कि हिन्दू नाराज़ हैं और भाजपा ने उनके साथ धोखा किया है, इसीलिए हिन्दुओं ने उसे वोट नहीं दिया।

यहाँ हम चुनावी परिणामों का विश्लेषण कर के जानते हैं कि क्या सच में ऐसा हुआ? भाजपा के एक नेता हैं CT रवि, कर्नाटक में हिंदुत्व के पोस्टर बॉय के रूप में जाने जाते हैं। सोशल मीडिया से लेकर जमीन तक उनकी सक्रियता को देखा जा सकता है, खासकर हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर। वो भाजपा के नेशनल सेक्रेटरी भी हैं। बाबा बदन गिरि की पहाड़ी का नाम सुना है आपने? यहाँ एक मजार भी है, हिन्दू धर्म में दत्तात्रेय के अवतार की मान्यता भी यहीं है।

इसे दक्षिण का अयोध्या भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ नियंत्रण के लिए हिन्दुओं और मुस्लिमों में बड़ा संघर्ष हुआ। इस दौरान CT रवि ने बढ़-चढ़ कर हिन्दू युवाओं का नेतृत्व किया था। चिकमंगलूर में दत्ता जयंती के दिन एक अलग ही माहौल रहता है, लाखों हिन्दू इस पहाड़ी पर दर्शन के लिए पहुँचते हैं। ये मामला 70 के दशक से ही अदालत में चल रहा है। दिसंबर 2022 में यहाँ 21 वर्षों बाद हिन्दू रीति-रिवाज से पूजा-पाठ संपन्न हुआ।

मुस्लिम इसे दरगाह कहते हैं, जबकि हिन्दू पीठ मानते हैं। पिछले साल हुए आयोजन में यहाँ सीटी रवि भी शामिल हुए थे। कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के बाद दत्ता जयंती मनाने का कार्यक्रम संपन्न हुआ था। चिकमंगलुरु की सीट से CT रवि को कॉन्ग्रेस उम्मीदवार ने 5926 वोटों से हरा दिया। अब आप कहिए, अगर भाजपा की हार का कारण हिन्दुओं की नाराज़गी होती तो क्या एक फायरब्रांड नेता को इस तरह हार का सामना करना पड़ता?

अब चलते हैं गुलबर्गा नॉर्थ सीट पर। क्या आपको पता है कि जब स्कूल-कॉलेजों में बुर्का और हिजाब के पक्ष में उपद्रव खड़ा किया गया तब भाजपा का क्या रुख रहा था? पार्टी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि शैक्षणिक संस्थानों में समान यूनिफॉर्म ही चलेगा और बुर्का-हिजाब की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय में भी राज्य सरकार ने अपने इस स्टैंड का बचाव किया। हिजाब आंदोलन के पक्ष में कॉन्ग्रेस की विधायक कनीज़ फातिमा खुल कर खड़ी थीं।

इस सीट पर भाजपा के चद्रकांत पाटिल को 2712 वोटों से हार का सामना करना पड़ा और कनीज़ फातिमा जीत गईं। इसका अर्थ है कि कॉन्ग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मुस्लिमों की गोलबंदी हुई होगी। लेकिन, उनके विरोधी उम्मीदवार के पक्ष में हिन्दुओं की गोलबंदी उस तरीके से नहीं हो पाई। अगर कर्नाटक के हिन्दुओं में भाजपा के प्रति नाराज़गी होगी तो इसका अर्थ ये नहीं है कि वो CAA आंदोलन का वहाँ चेहरा रहीं कनीज़ फातिमा को जिता देंगे।

भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे से अगर भटकी होती तो क्या उसने मुस्लिम आरक्षण हटाया होता? ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ – इस नारे का अर्थ ये नहीं है कि मुस्लिमों को प्राथमिकता दी जाए, बल्कि विकास योजनाओं और देश को आगे बढ़ाने में सबका भला हो, सबका योगदान हो। मुस्लिम आरक्षण को न सिर्फ भाजपा ने डंके की चोट पर हटाया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट में इस पर कड़ा स्टैंड भी लिया।

चलिए, थोड़ा और पीछे चलते हैं कर्नाटक में ही। 2022 के मध्य में ही जिस तरह से बेंगलुरु में स्थित ईदगाह मैदान को लेकर विवाद हुआ था, तब भी कर्नाटक की भाजपा सरकार ने सही स्टैंड लिया था। गणेश चतुर्थी के आयोजन की अनुमति दी गई। मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट पहुँचा और उसने इस फैसले को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने फिर इस फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले ही वहाँ भगवान गणेश की प्रतिमा की स्थापना भी हो गई थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने आयोजन पर रोक लगा दी।

कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर मुखर रहे वहाँ के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश भी हार गए। अगर मुद्दा हिन्दुओं की नाराजगी का ही होता, तो वो नहीं हारते। इसका अर्थ है कि अन्य फ़ैक्टरों ने इस चुनाव में काम किया, जिस पर विश्लेषण हो ही रहे हैं। उन्हें त्रिपुर से कॉन्ग्रेस प्रत्याशी ने हरा दिया। उन्होंने सरकार में रहने के दौरान स्पष्ट किया था कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब की अनुमति नहीं दी जा सकती।

कर्नाटक सरकार में रहने के दौरान भी भाजपा ने कभी हिंदुत्व के मुद्दे पर कभी समझौता नहीं किया। जुलाई 2020 में कर्नाटक सरकार ने टीपू सुल्तान पर आधारित कक्षा 7 के पाठ्यक्रम से एक चैप्टर को हटा दिया। 2022 में भी इस संबंध में निर्णय लिया गया। सरकार द्वारा गठित पैनल ने टीपू सुल्तान का महिमामंडन किए बिना उसके बारे में पढ़ाए जाने की वकालत की। इसीलिए, ये आरोप गलत है कि भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे से भटक गई।

अक्सर जोश-जोश में ये कह दिया जाता है कि भाजपा अब ‘बजरंग दल’ जैसे संगठनों से खुद को अलग दिखाती रही है। लेकिन, जब कॉन्ग्रेस ने ‘बजरंग दल’ की तुलना आतंकी संगठन PFI से करते हुए अपने घोषणापत्र में इसे प्रतिबंधित करने का वादा किया, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी भाजपा ने इसके विरोध में दिन-रात एक कर दिया। ‘बजरंग दल’ के समर्थन मे आवाज़ उठाई गई। इसका साफ़ सन्देश है कि हिन्दू हित की बात करने वाले हर तत्व के साथ भाजपा खड़ी है।

एक और अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण उदाहरण। फिल्म ‘The Kerala Story’ ने कमाई के मामले में 125 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार कर लिया है। हिन्दू महिलाओं को फँसाने, उनके धर्मांतरण, तस्करी और ISIS का सेक्स स्लेव बनाने की घटनाओं का पर्दाफाश करती इस फिल्म की स्क्रीनिंग में खुद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पहुँचे। पीएम मोदी ने इस फिल्म का समर्थन किया। क्या कोई दल जो हिन्दुओं से खुद को अलग दिखाना चाहे, कभी ऐसा करेगा?

जब BJYM नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या हुई तो उसके बाद कुछ दिनों तक ज़रूर भाजपा के खिलाफ गुस्सा देखने को मिला था। लेकिन, राज्य सरकार ने सुनिश्चित किया कि आरोपितों की धर-पकड़ की जाए। साथ ही दिवंगत नेता के परिवार वालों के लिए एक अच्छा घर भी पार्टी फंड से बना कर उन्हें दिया गया। घर के पूजन कार्यक्रम में कई बड़े नेता पहुँचे। इससे कार्यकर्ताओं में सन्देश गया कि पार्टी उनके साथ है, उनके परिवार के साथ है।

भाजपा की हार के कई कारण हो सकते हैं। येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा कर कम लोकप्रिय बसवराज बोम्मई को लाया गया, कुछ इसे कारण बता रहे। कुछ कह रहे लिंगायत वोट पार्टी को थोक में नहीं मिला। मुस्लिमों का ध्रुवीकरण एक कारण है ही। भ्रष्टाचार के आरोपों का ठीक से जवाब न दे पाना एक कारण बताया जा रहा। एंटी-इंकंबेंसी से लेकर कॉन्ग्रेस द्वारा चुनाव प्रचार को ‘सुपर लोकल’ रखने को भी कारण बताया जा रहा। मीडिया से लेकर पार्टी तक, हर जगह इसका मंथन चलता रहेगा।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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