लोकतंत्र के त्यौहार का आखिरी चरण यानी, काउंटिंग और नतीजे आने में 24 घंटे से भी कम समय बाकी है। यदि एग्जिट पोल की मानें तो कॉन्ग्रेस मुक्त भारत जैसे नारे देने वाले नरेंद्र मोदी इस लक्ष्य में लगभग सफल होते दिख रहे हैं। लेकिन, देश को कॉन्ग्रेस मुक्त करने में जो भूमिका खुद कॉन्ग्रेस ने निभाई है, उसका मूल्य भाजपा शायद ही कभी अदा कर पाएगी।
हालात ये हैं कि आज के समय में इस देश में विपक्ष का योगदान मात्र मजाक परोसने तक सीमित हो चुका है। साधारण शब्दों में कहें तो विपक्ष यानी, कॉन्ग्रेस यानी भरपूर हास्य और मनोरंजन का पर्याय बन कर रह गई है।
अगर हम याद करें तो एक ओर जहाँ भाजपा लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सिर्फ और सिर्फ जनता के मुद्दों को प्रमुख मानती रही वहीं, दूसरी ओर विपक्ष अपनी सारी ऊर्जा मोदी घृणा में व्यर्थ करती नजर आई। आखिरकार नतीजा ये निकला कि मोदी एक महामानव के रूप में स्थापित हो गए और विपक्ष मात्र एक ट्रोल और हास्य का विषय बनकर सिमटता ही चला गया।
यूट्यूब पर अपने व्यूअर्स की संख्या पर स्खलित हो रहे निष्पक्ष पत्रकारों के मुखिया से लेकर विपक्ष के मुखिया अगर इतने नालायक, निकम्मे, निठल्ले और एक नंबर के लपड़झंडू साबित हो रहे हैं तो इसके पीछे मात्र उनकी दिन-रात की मेहनत ही है। दिन-रात संस्थाओं को कोसना, सुई से लेकर सब्बल तक में मोदी और अम्बानी करना, मोदी की विदेश यात्राओं से लेकर उनके सोशल मीडिया एकाउंट्स की ताक-झाँक करना, इन चार-पाँच सालों में इन सबके पास इतना वक़्त ही कहाँ बचता था कि वो वास्तविक मुद्दों को तलाश पाते।
मोदी सरकार के दौरान असहिष्णुता से लेकर फर्जी बेरोजगारी का नैरेटिव तैयार करने में, पहले कॉन्ग्रेस और आखिर में महागठबंधन की गोदी में जाकर बैठे ट्रोलाचार्य रवीश कुमार से लेकर नाकाम कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गाँधी तक, सबका लक्ष्य नरेंद्र मोदी ही नजर आए। विधानसभा चुनावों में जब-जब कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी की जीत हुई, तब-तब लोकतंत्र की जीत बताई गई। निष्पक्ष पत्रकार रवीश कुमार का वश चलता तो 3 राज्यों, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा की हार पर अपने प्राइम टाइम शो के दौरान ही मारे ख़ुशी के दर्शकों को 2-4 बंदरगुलाटी मार कर दिखा देते। ज्यूँ-त्यूँ, बड़ी मुश्किलों से वो खुद को निष्पक्ष दिखा पाए।
यही हाल मीडिया और विपक्ष का तब था जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की प्रत्याशित जीत हुई। रवीश कुमार का अपनी कुटिल और धूर्त मुस्कान के साथ पहला सवाल अपने प्राइम टाइम में यही था, “क्या ये नरेंद्र मोदी की हार है? क्या मोदी अपनी हार स्वीकार करने के लिए आएँगे?”
ये कुछ उदाहरण तब के हैं, जब भाजपा या ये कहें कि मोदी सरकार के दौरान भाजपा की हार हुई। इसी बीच यदा-कदा, जब भाजपा ने विधानसभा चुनाव और उपचुनाव जीते, तब तुरंत मीडिया चैनल्स से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों के बीच शोक सभाएँ और विलाप देखने को मिले।
ग़दर : एक EVM कथा
हक़ीक़त यही है कि भाजपा की जीत के बाद विपक्ष ने अपनी हार कभी स्वीकार नहीं की। जनादेश से मिली हुई हार को स्वीकार ना करते हुए विपक्ष हमेशा EVM की गड़बड़ियों और आसमानी मुद्दों को जिम्मेदार ठहरा कर जनता के जनादेश का तिरस्कार ही करता नजर आया। मोदी सरकार की नीतियों से लाभ ले रहे लोग जब मतदान करने जा रहे थे, उस वक़्त कॉन्ग्रेस सस्ते कॉमेडियंस को तलाशकर मोदी पर भद्दे, घटिया और निम्नस्तरीय चुटकुलों द्वारा जनता का मन जीतने का प्रयास करते नजर आए। सत्तापरस्त कॉन्ग्रेस की छटपटाहट और व्याकुलता मात्र इन 5 सालों में ही बेनक़ाब होकर बाहर आई है।
कॉन्ग्रेस जनादेश को EVM से छेड़छाड़ बताकर लगातार जनादेश का अपमान करती नजर आई। विपक्ष ने मोदी सरकार की छवि ख़राब करने के लिए डिक्शनरी के उन पन्नों के मुहावरों को भुनाने का प्रयास किया, जिन पर कॉन्ग्रेस के राज्य में दीमक लग चुके थे। नतीजा ये रहा कि नालायक विपक्ष द्वारा तैयार किए गए फासिस्ट, भक्त, दलित पर अत्याचार, अल्पसंख्यकों में डर का माहौल, EVM हैक, बिकी हुई मीडिया, कट्टर हिन्दू जैसे नैरेटिव नरेंद्र मोदी की छवि ख़राब करने के बजाए उन्हें महामानव बनाते चले गए। इससे यही साबित हुआ कि जनता समझ चुकी है कि कॉन्ग्रेस मुद्दों की कमी से जूझ रही है और ये नैरेटिव ही उसके पास होने वाली दुर्गति से बचने का एकमात्र तरीका बाकी रह गया है।
इस निठल्ले विपक्ष की ही मेहरबानी है कि एग्जिट पोल के बाद सबसे ज्यादा व्यंग्य और हास्य ही लोगों को पसंद आ रहे हैं और उन्हीं व्यंग्य के माध्यम से की जाने वाली भविष्यवाणियाँ सच साबित होती जा रही हैं। यह दुर्भाग्य है कि विपक्ष द्वारा असहिष्णुता, सेक्युलर, लोकतंत्र, सुप्रीम कोर्ट आदि नामों को मजाक का एक जरिया बनाकर रख दिया है। कॉन्सपिरेसी थ्योरी एक्टिविस्ट्स की मानें तो राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जो भाजपा की हार थी, वो हार भी अब भाजपा की साजिश साबित की जाने लगी है। इन सभी उदाहरणों को इकठ्ठा करते हुए आप सोचिए कि मोदी को आखिर इतना ताकतववार अगर विपक्ष ने नहीं तो फिर किसने बनाया है?
विपक्ष के अनुसार मोदी जब और जो चाहें वैसा कर सकते हैं। मेरा मानना है कि “मोदी है तो मुमकिन है” जैसे चुनावी नारे भी भाजपा को चुपके से कॉन्ग्रेस ने ही उपलब्ध कराए हैं। विपक्ष को जब इतना विश्वास मोदी में है ही तो शायद यह सही समय है जब उन्हें नरेंद्र मोदी के सामने घुटने टेक कर आत्मसमर्पण कर देना चाहिए। साथ ही, यह कहना चाहिए कि प्रभु हम भी आपकी शरण में हैं आप ही सर्वशक्तिमान हैं… और टंटा ही ख़तम!