AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने एक ट्वीट किया है। इस ट्वीट में उन्होंने मुस्लिमों को कुछ सलाह दी है। जाहिर है कि उनकी पार्टी के नाम में ही ‘मुसलमीन’ है, अतएव वो कैसी राजनीति करते हैं- ये सभी को पता है। असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि बाबरी मस्जिद अयोध्या में 400 वर्षों तक खड़ा रहा और ‘हमारे (मुस्लिमों के) पूर्वजों’ ने न सिर्फ वहाँ पर नमाज पढ़ी और साथ इफ्तार तोड़ा, बल्कि मौत के बाद भी वो वहीं दफ़न हुए। बाबरी मस्जिद का राग अलापने वाले ओवैसी बताएँगे कि राम मंदिर को जिन आतंकियों ने तोड़ा, वो किनके पूर्वज थे?
उन्होंने मुस्लिमों से कहा कि इस ‘अन्याय’ को कभी मत भूलो। साथ ही दावा किया कि दिसंबर 22-23, 1949 को बाबरी मस्जिद को ‘अपवित्र’ कर उस पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया गया और अगले 42 वर्षों तक ये जारी रहा। उन्होंने दावा किया कि दिसंबर 6, 1992 को पूरी दुनिया के सामने इसे ध्वस्त कर दिया गया और ऐसा करने वालों को 1 दिन की भी सज़ा नहीं मिली। ओवैसी ने 1949 और 1992 तो याद दिलाया, लेकिन 1528 से पहले के इतिहास को खुद भूल गए।
इस ट्वीट के रिप्लाई में लोगों ने उनसे पूछा कि जब कुछ साल मुस्लिमों के वहाँ नमाज पढ़ने से वो मुस्लिमों का स्थल हो गया तो जिस मंदिर को तोड़ कर ये मस्जिद बनाई गई थी, क्या वहाँ हिन्दू प्रार्थना नहीं करते होंगे? हिन्दुओं की आस्था उस राम मंदिर में नहीं रही होगी, जिनके अयोध्या से लेकर लंका तक का सफर पूरे भारतवर्ष की एकता का परिचायक है? राम का इतिहास किसी 1528, 1949 या 1992 का मोहताज तो नहीं? ये तो आपके क्रंदन का हिस्सा है।
इसी तरह कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) ने विवादित ढाँचे की स्मृति में एक पोस्टर साझा किया। इस पोस्टर में लिखा है, “एक दिन बाबरी का उदय ज़रूर होगा” और “हम इसे भूल नहीं सकते हैं।” इस पोस्टर को पीएफ़आई के तमाम समर्थक साझा कर रहे हैं और इसके साथ ही #BabriYaadRahegi हैशटैग का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। इसके अलावा तमाम कट्टरपंथी इस्लामी भी इस तरह के नफ़रत भरे ट्वीट कर रहे हैं।
6 दिसम्बर को कुछ लोग सप्रेम ऐसे वाकये लिखते हैं जैसे कि देश और समाज उसी समय से शुरू हुआ जब से बाबरी में मूर्तियाँ रखवा दी गईं। बड़े ही भोलेपन के साथ इस घटना को ‘आतंकी’ तक लिख दिया जाता है। उतनी ही मासूमियत के साथ ये कह दिया जाता है कि ये सबसे बड़ी घटना थी और सबके केन्द्र में ‘दक्षिणपंथी विचारधारा’ को रख दिया जाता है। हाँ, है दक्षिणपंथी विचारधारा, और तुम्हारे कामपंथी, आतंकी, दोगले वामपंथ से ज़्यादा समय तक रहेगा।
बाबरी मस्जिद में किसी ने मूर्तियाँ रखी तो इतिहास और भूगोल गिन रहे हो, अयोध्या में राम जन्मभूमि पर कोई पूरी मस्जिद रख गया, उसका क्या? तुम्हें आतंक की याद हिन्दुओं द्वारा मूर्ति रखते हुए ही आती है? 6 दिसम्बर अगर भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन है, तो फिर जिस-जिस दिन मंदिर तोड़े गए, बस्तियों में आग लगी, बलात्कार हुए, नरसंहार हुए, और उनके आकाओं ने उन जगहों पर न सिर्फ मस्जिद उठा दिए, बल्कि उनके नाम बदल डाले, उनकी पहचान छीनकर एक विदेशी बुर्क़े से ढक दिया, उन दिनों को कौन सा रंग दोगे?
On the night of December 22-23 1949, our #BabriMasjid was desecrated & illegally occupied for 42 years
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) December 6, 2020
On this date in 1992, our masjid was demolished before the whole world. The men responsible for this did not see even a day’s punishment
Never forget this injustice [2]
शर्म करो बे चिरकुटों के सरगना! थोड़ी तो शर्म कर लोग अगर बची हो तो। तुम चाहे जितना पिनपिना लो, जितनी खुजली मचा लो, अगर बाबरी विध्वंस आतंकी घटना थी, तो ऐसी तमाम आतंकी घटनाओं के समक्ष मैं इस्लामी आतंक की हर तारीख़ को रखकर तोलूँगा। क्योंकि तुम्हारी समझ में अगर भारतीय समाज की शुरुआत पचास के दशक से होती है, तो तुम्हें ये बताना ज़रूरी है कि देश इस्लामी बलात्कारियों, लुटेरे अंग्रेज़ों और दोगले वामपंथियों से पहले भी था, और आगे भी रहेगा।
तुम बस छटपटाओ, बिलबिलाओ, कुथते रहो। तुम्हारी हर फ़र्ज़ी डिजिटल आउटरीच और नक़ाब के पीछे का सच प्रेस क्लब की शामों और निजी ज़िंदगी में आइने के सामने निकलकर आ ही जाता है। तुम्हारे जैसे नमकहरामों और आतंकियों के हिमायतियों की रेंगती, रीढ़हीन ज़िंदगियों पर राह चलते थूकना चाहिए लोगों को। जिनके लिए इतिहास ही बाबरी मस्जिद के निर्माण के साथ शुरू होता है, वो क्या जानते नहीं कि सनातन और हिन्दुओं का गौरवशाली इतिहास कई हजार वर्ष पुराना है?
लोगों का कहना है कि असलियत तो ये है कि असदुद्दीन ओवैसी या अन्य कट्टरपंथी मुस्लिम ‘ गजवा-ए-हिन्द’ के ख्वाब से बाहर नहीं निकल पाए हैं और शायद इसीलिए जब वो कई सालों से न्यायालय के फैसले को मानने की बातें कर रहे थे, अब उनका सुप्रीम कोर्ट पर भी भरोसा नहीं रहा। अब जब सुप्रीम कोर्ट में चीजें स्पष्ट हो गई हैं और वहाँ राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो चुका है, संविधान को मानने वाले कुछ लोगों की शरीयत वाली मानसिकता जा ही नहीं रही।
याद दिलाने को तो लोग असदुद्दीन ओवैसी को ये भी याद दिला रहे हैं कि जब उनके मजहब का कोई अस्तित्व ही नहीं था, तब अयोध्या में राम मंदिर हुआ करता था। जिस मंदिर को अवैध तरीके से तोड़ा गया, वहाँ आज संवैधानिक तरीके से मंदिर बन रही है तो दिक्कत क्यों? असदुद्दीन ओवैसी अपने बच्चों को ये नहीं याद दिलाएँगे कि अयोध्या, मथुरा और काशी अखंड भारत की आध्यात्मिक राजधानियों की तरह थे, हजारों वर्षों तक।
They attacked the “Civilisational Nerve Centre’s” : Namely Its Temples
— The Spirited Bong (@Soum17785045) December 6, 2020
Ayodhya, Kasi, Mathura long defined t “Native Civilisation”
Which t Invaders destroyed & erected “Structures of Slavery & Shame”
Which stood strong for over 400 years & reminded the natives of its slavery
क्या वो अपने बच्चों को याद नहीं दिलाएँगे कि सूर्यवंशी राजा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जहाँ राज किया था, आज भी उनमें आस्था रखने वाले राष्ट्र के लिए वो जगह उनकी भक्ति का सबसे बड़ा केंद्र है। क्या वो अपने बच्चों को ये नहीं याद दिलाएँगे कि एक स्वाभिमानी राष्ट्र की अपनी संरचनाओं को तोड़ कर गुलामी की याद दिलाने वाले ढाँचे बना दिए थे? और इन सब में कितनों का खून बहा, इसका तो अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है।
अपने बच्चों को तथाकथित अन्याय की याद दिलाने का दावा करने वाले लोग अपने पूर्वजों की करतूतों के बारे में अपनी अगली जनरेशन को बताएँगे भी या नहीं? या फिर वही वामपंथी इतिहासकारों के माध्यम से पढ़ाया जाता रहेगा कि अकबर महान था और अयोध्या बाबरी की वजह से ही पूरी दुनिया में विख्यात था? मुग़ल कहाँ से आए थे? बाबर का जन्म कहाँ हुआ था? तैमूर और चंगेज खान के वंशजों के बारे में अपने बच्चों को नहीं बताएँगे?
हिन्दुओं को अपने बच्चों को बताना चाहिए कि किस तरह ‘चोरी, ऊपर से सीनाजोरी’ के कहावत को चरितार्थ करते हुए इस देश में कुछ लोगों ने जहाँ हजारों मंदिरों का ध्वंस करने वालों का गुणगान भी किया और जब हिन्दुओं ने अपने खिलाफ हुए अन्याय को याद करते हुए बार-बार बलिदान देकर एक मामले में न्याय प्राप्त किया, तो उलटा उन्हें ही असहिष्णु कहा गया। अभी तो हजारों मंदिर हैं, जिनके ऊपर विदेशी ढाँचे बना दिए गए हैं। अभी तो न्याय की उम्मीद जगी है, पूरा न्याय तो बाकी है।