दिल्ली के शाहीन बाग़ में एक नारा लगता है- जिन्ना वाली आज़ादी। जिन्ना वो शख्स था, जिसने देश को दो हिस्सों में बाँटने के लिए मुहिम चलाई और ख़ुद कहीं का न रहा। मोहम्मद अली जिन्ना ने मजहब के आधार पर पाकिस्तान तो ले लिया, लेकिन उसी पाकिस्तान में ‘क़ायदे आज़म’ एक भिखारी से भी बदतर मौत मरा। वो सितम्बर 11, 1948 का दिन था, पाकिस्तान के जन्म के एक साल बाद का समय। क्वेटा से एक प्लेन पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी कराची पहुँचा। उस फ्लाइट में एक टीबी का मरीज पड़ा हुआ था। वही मोहम्मद अली जिन्ना था, जिसे अपने ही बनाए मुल्क़ में किसी नेता ने पूछा तक नहीं।
उसे डॉक्टरों ने क्वेटा की पहाड़ियों में भेजा था, ताकि वहाँ के मौसम से स्मोकिंग के आदी रहे जिन्ना को टीबी से कुछ राहत मिले। जब वहाँ भी उसकी बीमारी ठीक नहीं हुई तो उसे कराची भेज दिया गया। अबकी डॉक्टरों को लगा कि समुद्र किनारे हवाओं में नमी होने के कारण उसकी हालत ठीक हो जाए। इस बारे में एयर मार्शल असगर ख़ान की बातें गौर करने लायक है। जब वो एक बार अपनी पत्नी के साथ सड़क पार कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक ख़राब एम्बुलेंस में जिन्ना का मृत शरीर पड़ा हुआ है और उसकी बहन फातिमा भी बैठी हुई है।
उन दोनों ने जिन्ना के बहन की मदद करनी चाही लेकिन ब्रिटिश सिक्योरिटी वालों के कारण ऐसा नहीं कर पाए। यहाँ तक कि मरने के बाद जिन्ना को वापस ले जाने के लिए एक बैकअप एम्बुलेंस की व्यवस्था भी नहीं की गई। वो भी उस पाकिस्तान में, जिसकी नींव उसने ही रखी थी। बाद में एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी ने आकर जिन्ना के मृत शरीर को दूसरे एम्बुलेंस में शिफ्ट किया। यहाँ भारत में जो लोग ‘जिन्ना वाली आज़ादी’ जैसे नारे लगाते हैं और एएमयू में जिन्ना की तस्वीर लगाने की वकालत करते हैं, क्या उन्हें पता भी है कि जिन्ना के पाकिस्तान में जिन्ना की मौत गुमनामी में हुई थी।
इन वामपंथी उपद्रवियों को ये पता नहीं है कि जब पाकिस्तान अपने मुल्क़ के ‘क़ायदे आज़म’ को ही उचित सम्मान नहीं दे पाया। अगर जिन्ना के पाकिस्तान में ‘जिन्ना वाली आज़ादी’ होती तो जिन्ना का परिवार भारत में आकर न रहता। जिन्ना की बेटी दीना वाडिया की शादी मुंबई के एक पारसी खानदान में हुई। जिन्ना की एकमात्र संतान ने अपनी बाकी ज़िंदगी भारत में गुजारी और उनका पूरा परिवार भी आज भारत में ही व्यापार कर रहा है। दीना के पोते नेस वाडिया का कारोबार मुंबई से लेकर ब्रिटेन तक फैला हुआ है और आईपीएल टीम ‘किंग्स इलेवन पंजाब’ में भी उनका मालिकाना हिस्सा है।
Shocking! Indian Muslims in Delhi chant slogans praising Pakistan founder MA Jinnah, the man responsible for amputation of India by inflaming anti-Hindu hatred. The Delhi crowd demanded:
— Tarek Fatah (@TarekFatah) January 10, 2020
“Jinnah wali Azadi”
(We want freedom; Jinnah’s way)pic.twitter.com/TCjn8hyLZS
वाडिया परिवार मूलतः सूरत का है, जो कारोबार के सिलसिले में मुंबई में ही जा बसा। टेक्सटाइल, शिपिंग, आभूषण और कई अन्य कारोबार में धाक रखने वाले वाडिया परिवार के लोग राजनीति और प्रशासन से भी जुड़े हुए हैं। दीना जिन्ना के बेटे नुस्ली वाडिया ने अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया। नेस वाडिया उनके ही बेटे हैं। इस तरह से जिन्ना, नुस्ली के नाना हुए। वाडिया परिवार सदियों से गुजरात और महाराष्ट्र में एक प्रभावशाली उद्योगपति खानदान रहा है। सत्रहवीं शताब्दी से ही उनके व्यापार लगातार फलते-फूलते रहे हैं।
ऐसे में इस सवाल का उठना जायज है कि अगर जिन्ना के पाकिस्तान में सच में आज़ादी रहती तो क्या उनका परिवार वहाँ जाकर अपने कारोबार नहीं चलाता? अगर जिन्ना के पाकिस्तान में ‘जिन्ना वाली आज़ादी’ होती तो क्या उनकी बहन की वहाँ संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होती। फातिमा जिन्ना ने 1965 में तानाशाह जनरल अयूब ख़ान के ख़िलाफ़ चुनावी ताल ठोकी थी। फातिमा की मौत के बाद परिवार ने जाँच की लाख माँग की, पाकिस्तान सरकार ने सब ठुकरा दिया। जिन्ना के पाकिस्तान में तो उनकी बहन ‘मदर-ई-मिल्लत’ को ही इंसाफ नहीं मिला, आज़ादी ख़ाक मिलेगी।
जिस व्यक्ति ने ‘डायरेक्ट एक्शन’ की बात कर के इस देश को दो हिस्सों में बाँट दिया, उस व्यक्ति का नाम लेकर आज़ादी की माँग करने वालों को समझना चाहिए कि अगर उन्हें ऐसी ‘आज़ादी’ मिल गई तो वो उससे अच्छा भारत के किसी क़ैदख़ाने में ज़िंदगी बिताना ज़्यादा सुरक्षित महसूस करेंगे। आप सोचिए, किसी महिला के पिता एक पूरे के पूरे मुल्क़ के ‘बाबा-ए-क़ौम’ अर्थात राष्ट्रपिता कहे जाते हैं, संस्थापक हैं, फिर भी वो महिला या उसका परिवार पाकिस्तान नहीं जाता। क्यों?
PTs: Tell Jinnah wali Azadi morons that the only child of Jinnah, his daughter, rejected Pakistan and chose India and settled down in Mumbai & married a Parsi. Her son and grand sons also live in Mumbai as industrialists.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) January 11, 2020
ऐसा इसीलिए, क्योंकि उन्हें पाकिस्तान जाने का अंजाम पता है। बँटवारे के बाद जहाँ एक तरफ़ जिन्ना ये कहते रहे कि पाकिस्तान में सभी मजहब के लोगों का स्वागत है, वहाँ से लाखों हिन्दुओं व सिखों को भगा दिया गया। महिलाओं के साथ बलात्कार हुए, लोगों की हत्या की गई और कत्लेआम मचाया गया। वहीं भारत में विभिन्न शिविरों में घूम-घूम कर जवाहरलाल नेहरू और मौलाना आज़ाद मुस्लिमों को समझाते रहे कि उन्हें देश नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि भारत में उनके पास वही सारे अधिकार होंगे, जो किसी अन्य धर्म के लोगों के पास होंगे।
जहाँ ‘हिन्दुओं से आज़ादी’ के नारे लगते हों, वहाँ ‘जिन्ना से आज़ादी’ वाली बात तो छोटी सी ही है। जिनलोगों को सच में जिन्ना वाली आज़ादी चाहिए, वो दिखावा न करें और एक बार जिन्ना के बनाए पाकिस्तान में जाकर देखें। वो जिन्ना की बहन के बारे में पढ़ें। उनकी बेटी के बारे में पढ़ें। जिन्ना की बेटी के परिवार के बारे में पढ़ें। इतिहास पढ़ें, वर्तमान देखें। यूएन की रिपोर्ट पढ़ें, जिसमें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में बताया गया है। उन्हें पता चल जाएगा कि ‘जिन्ना वाली आज़ादी’ का क्या परिणाम निकलता है?