प्रदेश के हर अस्पताल में प्रत्येक दिन 3-4 मौतें होती हैं। यह कोई नई बात नहीं है। इस साल पिछले 6 सालों के मुकाबले सबसे कम मौतें हुई हैं। मेरे पास इसके आँकड़े हैं। इस साल केवल 900 मौतें हुई हैं। एक भी बच्चे की मौत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इससे पहले तक़रीबन 1400 और 1500 मौतें भी हुई हैं। 900 भी क्यों हुई हैं, वह भी नहीं होनी चाहिए। मैंने जाँच कराई है। एक्शन भी लिया है। अपनी सरकार के पिछले टर्म में भी मैंने अस्पतालों के ऑपरेशन थिएटर को लंबे अंतराल के बाद अपग्रेड कराया था।
ये बयान है उस व्यक्ति था, जिस पर देश के सबसे बड़े राज्य का दारोमदार है। अशोक गहलोत कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, जो तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं। अब तक वो 11 साल इस कुर्सी पर बीता चुके हैं। और उनके पास अपने पिछले (2008-13) या उससे भी पिछले (1998-03) कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाने के नाम पर यही है कि उन्होंने ऑपरेशन थिएटरों को अपग्रेड कराया है। अशोक गहलोत के लिए 900 बच्चों की जान जाना कोई ‘नई बात’ नहीं है। इसके पीछे उनका तर्क ये है कि पहले इससे भी ज़्यादा मौतें हुई हैं।
अगर इससे पहले भी ज़्यादा मौतें हुई हैं तो क्या इसके लिए अशोक गहलोत ज़िम्मेदार नहीं है, जो इससे पहले मुख्यमंत्री के रूप में 2 बार अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं? राज्य में बसपा विधायक दल को 2 बार पूरा का पूरा तोड़ देने वाले गहलोत राजनीति में सिद्धहस्त माने जाते हैं लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में उनका ये बयान बताता है कि वो एक प्रशासक के रूप में विफल रहे हैं। ये वही गहलोत हैं, जो बिहार के मुजफ्फरपुर में इंसेफ्लाइटिस से बच्चों की मौत पर दुःख जता रहे थे। दुःख जताना अच्छी बात है लेकिन किसी घटना से न सीखना और उस पर राजनीति करना सही नहीं है। आज यही गहलोत दूसरों पर अफवाह फैलाने का आरोप मढ़ रहे हैं।
कुछ लोगों द्वारा जान-बूझ कर mischievously मीडिया में जो चलाया जा रहा है, वह निंदनीय है। जबकि निरोगी राजस्थान को लेकर हमारी सरकार ने प्रदेश में स्कीम शुरू की हुई है, यह तो हमारा thrust area है, स्वास्थ्य के क्षेत्र में राजस्थान सिरमौर बने उसके लिए हम लगे हुए हैं।
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) December 28, 2019
दरअसल, मामला राजस्थान के कोटा में 1 महीने में 77 बच्चों की मौत का है। शुक्रवार (दिसंबर 27, 2019) तक सिर्फ़ एक सप्ताह में 12 बच्चों की जानें जा चुकी थीं। जेके लोन हॉस्पिटल ने बताया है कि इस साल बच्चों की मौत का आँकड़ा 940 है। अस्पताल प्रशासन कह रहा है कि ये असामान्य घटना है जबकि राज्य के मुख्यमंत्री कहते हैं कि नई बात नहीं है। जब मामला हाथ से बाहर हो गया, तब राज्य के गृह सचिव को वस्तुस्थिति का जायजा लेने भेजा गया। कोटा के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी राज्य सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता से कार्य करने की सलाह दी है।
मुख्यमंत्री का बयान संवेदनहीन है क्योंकि राजस्थान के गृह सचिव वैभव गालरिया ने प्रारंभिक जाँच में पाया है कि हॉस्पिटल के सिस्टम में, इंफ्रास्ट्रक्चर में काफ़ी गड़बड़ियाँ हैं। हॉस्पिटल के नवजात शिशु वाले आईसीयू में ऑक्सीजन सप्लाई सही नहीं है। संक्रमण से बचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है और ज़रूरी दवाओं का अभाव है। साफ़ ज़ाहिर होता है कि मुख्यमंत्री अपनी सरकार की विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं। अफ़सोस ये कि मुजफ्फरपुर की तरह (जहाँ सत्ताधीशों से ज़्यादा डॉक्टरों से सवाल-जवाब किया गया) यहाँ सवाल पूछने के लिए मीडिया का आभाव है।
2017 में यूपी में भी कुछ ऐसा हुआ था। तब राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा था कि हर साल अगस्त में बच्चों के मरने की संख्या बढ़ जाती है। इसे रोकने का जिम्मा किसके पास होता है? सरकार के पास। अगर सिर्फ आँकड़ों की ही बात की जाए तो भाजपा नेता और गहलोत, दोनों के बयान सच हैं, लेकिन संवेदनशीलता की कसौटी पर ये बयान निष्ठुर और संवेदनहीन ही कहे जाएँगे। ऐसा नहीं है कि उन बच्चों का मरना जरूरी है, बल्कि सरकारों का काम है मृत्यु दर घटाना।
‘बच्चों की मौत तो होती रहती है, इसमें कोई नई बात नहीं है।’
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) December 28, 2019
प्रदेश के मुखिया का यह बयान सुनकर मन बहुत आहत हुआ।
ये कथन उन माँओं के ज़ख़्मों पर नमक है जिनकी कोख #Kota जेके लोन अस्पताल में सरकारी लापरवाही के कारण सूनी हुई।#Rajasthan
सारी बात यह है कि मीडिया के लिए हमेशा की तरह मुद्दा ‘बच्चों की मौत’ की जगह, ‘भाजपा सरकार में बच्चों की मौत’ और ‘भाजपा नेता का संवेदनहीन बयान’ है। इसी सेलेक्टिव आउटरेज का कारण है कि जब एक राज्य में ऐसी घटना होती है तो दूसरा राज्य उससे सीखने की चेष्टा नहीं करता बल्कि सोचता है कि जब ‘होगा तो देखा जाएगा’।
मेनस्ट्रीम मीडिया और कथित संवेदनशील बुद्धिजीवी तथा लिबरल गिरोह जो किसी माँ के हाथ में बच्चे की नाक में लगी ऑक्सीजन पाइप वाली तस्वीर दिखा कर संवेदना दिखा रहा था, आज वो चुप हैं क्योंकि कॉन्ग्रेस के सरकार में बच्चों का इस संख्या में मरना जायज है। इस देश के मीडिया की दुर्गति यही है कि जब तक ‘भाजपा’ वाला धनिया का पत्ता न छिड़का गया हो, इन्हें न तो दलित की मौत पर कुछ कहना है, न बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं की मृत्यु पर इन्हें वो ज़ायक़ा मिल पाता है।
कुल मिला कर ये लोग भाजपा सरकारों में नकारात्मक खबरों के लिए प्रार्थना करते हैं, जबकि गैर-भाजपा सरकार में बंगाल जले, मध्य प्रदेश में लोन माफी या बेरोजगारी भत्ता न मिले, राजस्थान में बच्चे मरें, नौकरियों पर सवाल हों, ये बस चुप रहते हैं। जिस तरह मुजफ्फरपुर और गोरखपुर में बच्चों की मौत को लेकर मीडिया रिपोर्टिंग हुई, उसी तरह कोटा मामले में भी होनी चाहिए। चाहे वो योगी सरकार हो, नीतीश सरकार हो या गहलोत की, इतनी बड़ी संख्या में अगर बच्चों की मौत को मीडिया भाजपा और गैर-भाजपा के चश्मे से देखता है तो यह एक भयावह ट्रेंड है।
कोटा में 77 मासूमों की मौत पर भी राजस्थान की कांग्रेस सरकार के किसी भी प्रतिनिधि का संज्ञान ना लेना सरकार की संवेदनहीनता व्यक्त करता है। @ashokgehlot51 जी आप अपनी दिल्ली की हाजिरी से वक्त निकाल कर राजस्थान पर भी ध्यान दें ताकि प्रदेश में व्याप्त अव्यवस्थाओं मे थोड़ा सुधार आए। pic.twitter.com/YM0knHEzSm
— Satish Poonia (@SatishPooniaBJP) December 28, 2019
जहाँ तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बात है, उनका ट्विटर हैंडल चेक करने पर आपको उत्तर प्रदेश में सीएए के ख़िलाफ़ आगजनी और हिंसा करने वालों की बातें दिखेंगी। उनके बचाव में योगी की आलोचना है। योगी को क्या करना चाहिए था, ऐसे कुछ सलाह हैं। प्रियंका गाँधी के साथ यूपी में दुर्वव्यवहार किए जाने का आरोप है। उस पर तो पूरा का पूरा बयान है, वीडियो के माध्यम से। बच्चों की मौत के बीच गहलोत झारखण्ड भी पहुँचे, जहाँ उन्होंने हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया। बच्चों की मौत को लेकर भी उनके बयान हैं ट्विटर हैंडल पर, जरा गौर कीजिए:
“हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में राजस्थान को सिरमौर बनाने के लिए लगे हुए हैं”
RSS की किस शाखा में जाते हो? राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार ने कर्मचारियों से पूछा
सर्वे रिपोर्ट: मोदी-राज में एक साल में 10% घटी रिश्वतखोरी, बिहार-राजस्थान टॉप पर