ऐसा प्रतीत हो रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ाव को एक बार फिर ‘गुनाह’ बनाने का दुष्चक्र शुरू हो चुका है। नेहरू और गाँधी जो दमन नहीं कर पाए उसे करने की कोशिश अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार कर रही है। अजमेर में जिला प्रशासन ने सरकारी कर्मचारियों से घोषणा-पत्र के जरिए यह बताने को कहा है कि वे संघ की किस शाखा में जाते हैं।
एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर कैलाश चंद्र शर्मा ने सर्कुलर जारी किया है। कर्मचारियों से उनकी निजी जानकारी और वे संघ की किस शाखा से जुड़े हैं, यह पूछा गया है। टाइम्स नाउ ने सूत्रों के हवाले से बताया है की यह आदेश सभी जिलों को ऊपर से दिया गया है। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि गंगापुर सिटी (सवाईमाधोपुर) के विधायक रामकेश मीणा ने विधानसभा में इस साल सवाल पूछ कर इसकी जानकारी माँगी थी। उन्होंने न केवल संघ की शाखाओं और उनमें जाने वाले सरकारी कर्मचारियों के बारे में पूछा था, बल्कि उनके सवाल का हिस्सा यह भी था कि सरकार आरएसएस का हिस्सा बने सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बारे में क्या विचार रखती है।
उत्तरी अजमेर से भाजपा के विधायक और पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार में शिक्षा मंत्री रहे वासुदेव देवनानी ने गहलोत सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए इसे राज्य में कर्मचारियों के बीच अघोषित आपातकाल लाने की कोशिश करार दिया है। उन्होंने पूछा कि जब किसी सामाजिक संस्था में शामिल होने पर कोई रोक नहीं है, तो फिर सरकार ऐसा स्व घोषणा-पत्र सरकार क्यों माँग रही है। गौरतलब है कि आरएसएस एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है। आज़ादी के दो दशक पहले हुई स्थापना से लेकर आज तक यही इसका स्वरूप और स्वभाव है।
यहाँ यह याद दिलाया जाना ज़रूरी है कि कॉन्ग्रेस भले ही संघ को ‘नाज़ी’ बताती है, लेकिन उसकी राज्य सरकार का यह कदम खुद खालिस फासीवाद है। इटली और जर्मनी, दोनों ही देशों में फासीवादी शासकों मुसोलिनी और हिटलर के उदय के समय ऐसे ही कदम उठाए गए थे। कम्युनिस्टों, समलैंगिकों, यहूदियों समेत ‘अवांछित’ समूह के संगठनों से ताल्लुक रखने वाले लोगों को चिह्नित किया गया था, जिसके बाद पहले उनके संगठन अवैध घोषित किए गए, फिर उन्हें ही ‘अवैध’ घोषित कर हत्याकाण्ड शुरू कर दिया गया।