जब छाछ फूँक कर पीने की आदत पड़ जाती है तो क्या होता है – केरल में राहुल गाँधी का कार्यक्रम इसकी मिसाल है। पुडुचेरी में दूध के जले राहुल गाँधी को मलप्पुरम में इंडिपेंडेंट ट्रांसलेटर की मदद लेनी पड़ी क्योंकि कॉन्ग्रेस नेताओं की हरकतें अब उनको समझ में आने लगी हैं। ऐसा लगता है वी नारायणसामी का ट्रांसलेशन सुनने के बाद राहुल गाँधी को पहली बार लगा है कि कॉन्ग्रेस नेता कैसे अपने स्वार्थ के लिए उनकी आँखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं।
असल में कॉन्ग्रेस नेता तो झूठ और सच के फेर में भी नहीं फँसते – वे तो वही बोलते हैं जो राहुल गाँधी को पसंद होता है। कॉन्ग्रेस में राहुल गाँधी की चौकड़ी के बाहर बचे खुचे नेता तो यही मान कर चलते होंगे जब उनको अपने ‘निजी चमचों’ से फुर्सत मिलेगी तभी तो मुखातिब होंगे – और मन से मुखातिब तो उनके करीबियों को तभी समझ में आता है जब वो कुछ अलग करने के बाद नजर मिलते ही आँख भी मार देते हैं।
विधानसभा चुनाव के लिए केरल के लोगों की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए राहुल गाँधी ने ‘अमेठी’ के लोगों को लेकर जो कुछ भी कहा है, उनकी संसदीय प्रतिद्वंद्वी स्मृति ईरानी ने उसके लिए कॉन्ग्रेस नेता को ‘एहसान फरामोश’ करार दिया है – लेकिन ऐसा नहीं लगता। अगर राहुल गाँधी ऐसे होते तो कॉन्ग्रेस का ये हाल न हुआ होता – हो सकता है कॉन्ग्रेस में अपने पसंदीदा चौकड़ी के नेताओं से घिरे हुए जिन चीजों की आदत बन चुकी हो, केरल के मतदाताओं से उसी अंदाज में जुड़ने की कोशिश कर रहे हों – क्योंकि चापलूसी की लत ही ऐसी होती है।
एहसान फरामोश!
— Smriti Z Irani (@smritiirani) February 23, 2021
इनके बारे में तो दुनिया कहती है –
थोथा चना बाजे घना। https://t.co/3jsNYn6IPq
अमेठी से ऐसी भी क्या नाराजगी
उत्तर भारतीयों की राजनीतिक समझ और मुद्दों को लेकर राहुल गाँधी की टिप्पणी आने के महज 24 घंटे पहले ही स्मृति ईरानी ने अमेठी में अपने जमीन की रजिस्ट्री का कागज शेयर किया था और बताया कि जल्द ही वो अपने संसदीय क्षेत्र में अपना मकान बनवाने जा रही हैं। उन्होंने ये भी बताया कि गृह प्रवेश के मौके पर सबको बुलाएँगी। स्मृति ईरानी ने घर बनवाने के लिए 15 हजार वर्ग मीटर जमीन खरीदी है और उसे अपना चुनावी वादा पूरा करना बता रही हैं।
अमेठी पहुँच कर जमीन का कागज लेने के बाद स्मृति ईरानी ने ये खुशखबरी शेयर की। जाहिर है निशाने पर तो राहुल गाँधी होने ही थे। नाम नहीं लेने से क्या होता है। स्मृति ईरानी ने कहा, “अमेठी की जनता के मन में हमेशा ये सवाल रहा कि क्या उनका सांसद यहाँ मकान बनाकर रहेगा? 2019 के चुनाव में मैंने क्षेत्र के लोगों से वादा किया था कि मैं अमेठी में अपना मकान बनाऊँगी और जनता के सारे काम यही से होंगे। उसी वादे को पूरा करने के लिए मैंने आज मकान की जमीन की रजिस्ट्री कराई है।”
राहुल गाँधी को स्मृति ईरानी का ये दाँव चुनावी हार के जख्मों को कुरेदने जैसा लगा होगा। 2019 के आम चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गाँधी को करीब 55 हजार वोटों से हरा दिया था। स्मृति ईरानी 2014 में भी अमेठी से चुनाव लड़ी थीं, लेकिन राहुल गाँधी से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। आम चुनाव में राहुल गाँधी अमेठी के साथ साथ वायनाड से भी मैदान में थे और फिलहाल केरल के संसदीय सीट से भी लोक सभा सांसद हैं। केरल में भी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं और राहुल गाँधी फिलहाल चुनावी दौरे पर ही हैं।
केरल के लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश में राहुल गाँधी बोल पड़े, “पहले 15 साल तक मैं उत्तर से सांसद था। मुझे एक अलग तरह की राजनीति की आदत हो गई थी। मेरे लिए केरल आना बहुत नया था – क्योंकि मुझे अचानक लगा कि यहाँ के लोग मुद्दों को लेकर दिलचस्पी रखते हैं और सिर्फ सतही तौर पर नहीं बल्कि विस्तार से समझते हैं।”
ऐसी टिप्पणी तो नहीं, लेकिन राहुल गाँधी ने वायनाड से चुनाव जीतने के बाद भी केरल के लोगों की आत्मीयता की तारीफ की थी। राहुल गाँधी की वो तारीफ भी अमेठी के लोगों से शिकायत जैसी ही समझ में आ रही थी, लेकिन चूँकि राहुल गाँधी ने अभी की तरह खुल कर कुछ नहीं कहा था इसलिए ऐसे किसी ने रिएक्ट भी नहीं किया।
उत्तर भारत के लोगों को लेकर राहुल गाँधी की टिप्पणी बीजेपी ने घेर लिया है। स्मृति ईरानी का रिएक्शन तो स्वाभाविक है, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, विदेश मंत्री एस जयशंकर और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कॉन्ग्रेस नेता पर जोरदार हमला बोला है। एस जयशंकर ने बताया है कि कैसे दक्षिण के रहने वाले होकर वो पढ़े-लिखे और पले-बढ़े उत्तर में और सब कुछ उनको बराबर लगता है। जेपी नड्डा ने जहाँ राहुल गाँधी पर बँटवारे की राजनीति करने का आरोप लगाया है वहीं योगी आदित्यनाथ ने अपने तरीके से नसीहत दे डाली है।
2019 के नतीजे आने के बाद राहुल गाँधी सीधे वायनाड गए थे और बोले कि ऐसा लगता है जैसे मैं बचपन से यहाँ का हूँ – स्वाभाविक भी था। पहली बार उनको गोद में लेने वाली नर्स भी तो केरल से ही थी। कुछ ही दिन बाद जब राहुल गाँधी कोझिकोड गए तो राजम्मा से मुलाकात भी की।
पहले तो लगा कि राहुल गाँधी भी अपनी दादी इंदिरा गाँधी की तरह अमेठी से वैसे ही तौबा कर लेंगे जैसे वो रायबरेली से की थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इंदिरा गाँधी 1977 में राज नारायण से अपनी सीट रायबरेली से हार गईं तो दक्षिण का रुख कर लिया था। 1980 में वो आंध्र प्रदेश की मेडक (अब तेलंगाना में) लोक सभा सीट से संसद पहुँची, लेकिन रायबरेली से उनकी नाराजगी ताउम्र कायम रही।
देर से ही सही, लेकिन राहुल गाँधी अमेठी गए जरूर लेकिन काफी अनमने अंदाज में लोगों से बात की। राहुल गाँधी ने अमेठी के लोगों को बात बात पर एहसास कराया कि वो बहुत बड़ी गलती कर चुके हैं और वो हमेशा ही उनसे नाराज रह सकते हैं। राहुल गाँधी ने कहा कि वो उनके प्रतिनिधि नहीं रहे, इसलिए अब खुद उनको अपनी लड़ाई लड़नी होगी, लेकिन अगर वे उनकी किसी तरह की कोई मदद चाहते हैं तो महज एक फोन कॉल दूर समझें।
एक तरीके से राहुल गाँधी ने अमेठी के लोगों को संकेत दे दिया कि वो स्मृति ईरानी के खिलाफ नहीं बोलेंगे, क्योंकि वो तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलते हैं और स्मृति ईरानी उनके मुकाबले बराबरी में नहीं आतीं। अमेठी के लोगों का ये सवाल हो सकता था कि मोदी से भी वो क्यों लड़ते हैं, वो कोई पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते नहीं – वो तो सिर्फ वायनाड से सांसद हैं। कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष जब थे तब थे।
अमेठी के लोगों से राहुल गाँधी की नाराजगी स्वाभाविक है। जिन लोगों पर वो आँख मूँद कर भरोसा करते थे, उनको लगता है उन लोगों ने उनको धोखा दिया है। हालाँकि, वो भूल जाते हैं कि अमेठी के लोगों को लगने लगा होगा कि राहुल गाँधी ही उनकी तरफ से आँखें मूँद लिए हैं और फिर उन लोगों ने एक बार आईना दिखाने का फैसला कर लिया।
राजनीति विरोधी होने के नाते स्मृति ईरानी भले जो भी कहें, लेकिन राहुल गाँधी अगर एहसान फरामोश होते तो क्या कॉन्ग्रेस का ये हाल हुआ होता। कॉन्ग्रेस के इस हाल में पहुँचने के पीछे क्या राहुल गाँधी की अपनों के प्रति भलमनसाहत का हाथ नहीं है।
अगर राहुल गाँधी एहसान फरामोश होते तो अशोक गहलोत और कमलनाथ कितना भी दबाव बनाते वो उनके बेटों को टिकट देकर कॉन्ग्रेस की बर्बादी का रास्ता साफ नहीं करते। वो तो उनकी बातें सुनते हैं और तारीफ भरी बातें अच्छी लगती हैं – तभी तो अशोक गहलोत प्रिय हैं और सचिन पायलट निकम्मा और नकारा हो जाते हैं – पीठ में छुरा भोंकने वाले बन जाते हैं। निश्चित तौर पर ये सब तो इसलिए होता होगा क्योंकि अशोक गहलोत के एहसान सचिन पायलट के मुकाबले ज्यादा होंगे!
कॉन्ग्रेस ने हालाँकि राहुल के बयान का बचाव करते हुए कहा कि वह मुद्दों की राजनीति की बात कर रहे हैं। लेकिन कॉन्ग्रेस के लिए उत्तर भारत के लोगों को यह समझाना बहुत मुश्किल होने वाला है कि क्या वह उत्तर भारतीयों की समझ पर सवाल खड़े कर रहे हैं या फिर वह यह मानते हैं कि इससे पहले उत्तर भारत में कॉन्ग्रेस को मिला समर्थन भी किसी बदलाव के लिए या मुद्दों के लिए नहीं था।
कुछ दिन पहले केरल में पंचायत व स्थानीय निकास चुनावों में कॉन्ग्रेस का पस्त हाल भी क्या इसीलिए था कि वहाँ के लोग मुद्दों की बात करते हैं। यह नतीजे तब आए जबकि वहाँ की वामपंथी सरकार पर भ्रष्टाचार के कई मामले थे। केरल से लोकसभा में बड़ी जीत हासिल करने वाली कॉन्ग्रेस की यह दशा क्यों हुई क्या इसे राहुल नहीं समझ पाए। बात इतनी ही नहीं है। राहुल के नए बयान ने जहाँ यह स्पष्ट कर दिया कि अमेठी पर परिवार का पारंपरिक दावा खत्म हो गया है वहीं दूसरी पारंपरिक सीट रायबरेली में भी काँटे बिछा सकता है।
गौरतलब है कि अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड में राहुल गाँधी छात्राओं से संवाद कर रहे थे। तभी राहुल गाँधी ने छात्राओं से पूछा कि क्या अपनी इच्छा से किसी को उनके भाषण के मलयालम में अनुवाद में दिलचस्पी होगी, “मैं जो कह रहा हूँ- क्या यहाँ मौजूद कोई स्टूडेंट उसका अनुवाद करना चाहेगा?”
ये सुनते ही एक स्कूली छात्रा स्टेज पर चढ़ गई और राहुल गाँधी के भाषण का मलयालम में अनुवाद करने लगी। भाषण खत्म हुआ तो राहुल गाँधी ने उसे धन्यवाद तो दिया ही, चॉकलेट भी दिया। वो छात्रा भी बेहद खुश थी और बोली कि उसने कभी सोचा न था कि उसे कभी ऐसा मौका मिलेगा। छात्रा तो खुश थी लेकिन राहुल गाँधी के साथ मौजूद नेता काफी हैरान थे। अब तक उन नेताओं में से ही कोई न कोई राहुल गाँधी के भाषणों का अनुवाद करता रहा।
समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि राहुल गाँधी ने ऐसा क्यों किया? केरल से पहले पुडुचेरी में जब सत्ता को लेकर उठापटक चल रही थी तभी राहुल गाँधी दौरे पर गए थे। उसी दौरान राहुल गाँधी से मिलने एक बुजुर्ग महिला पहुँची थी। राहुल गाँधी के हाल चाल पूछने पर उसने अपनी पीड़ा बताई, लेकिन भाषाई बाधा आड़े आ गई और निवर्तमान मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने मौके का फायदा उठाने में जरा भी देर नहीं की।
महिला ने शिकायत की थी कि तूफान के दौरान मुख्यमंत्री उन लोगों से मिलने तक नहीं पहुँचे, लेकिन वी. नारायणसामी ने राहुल गाँधी को इसका उलटा समझा दिया। वी. नारायणसामी ने राहुल गाँधी को समझाया कि महिला बता रही है कि तूफान के दौरान वो उन लोगों से मिलने गए और राहत के सामान भी भिजवाए।
अब अगर राहुल गाँधी पुडुचेरी के वाकये से सबक लेते हैं और आगे भी ये समझने की कोशिश करते हैं कि उनके करीबी नेता वी नारायणसामी की ही तरह झूठ तो नहीं बोल रहे हैं, तो कॉन्ग्रेस का काफी हद तक कल्याण हो सकता है, लेकिन अगर गुस्से में अमेठी के लोगों जैसा सलूक करते हैं और अपनी टिप्पणी को चुनावी जुमला नहीं साबित करते हैं तो लेने के देने पड़ने ही हैं।