Sunday, December 22, 2024
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हे कॉन्ग्रेस के लेमनचूसों! स्मृति ईरानी ने जो कहा उसे ‘राहुल गाँधी का फैन’ होना नहीं कहते, इसे हिंदुओं को बाँटने की राजनीति करने वालों को ‘भिगो भिगो कर मारना’ कहते हैं

स्मृति ईरानी की एक क्लिप के सहारे दरबारी यह बताने में जुटे हैं कि वह राहुल गाँधी की फैन हो गई हैं। हालाँकि, 'दृष्टिदोष' रखने वाले दरबारी यह नहीं समझ पा रहे कि जिसे वह राहुल गाँधी की उपलब्धि मान रहे हैं, असल में वह उनकी विभाजनकारी राजनीति को नंगा करने जैसा है।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री और अमेठी की पूर्व सांसद स्मृति ईरानी ने पत्रकार सुशांत सिन्हा के साथ एक बातचीत में राहुल गाँधी के जाति पर शोर मचाने के कारण का खुलासा किया है। उन्होंने राहुल गाँधी की राजनीति में बदलाव के मायने भी बताए हैं। इस बातचीत में ईरानी ने 2024 में उनको अमेठी में मिली हार, मोदी सरकार 3.0 और राजनीति के बाक़ी पहलुओं को लेकर भी अपनी राय रखी है। इस बातचीत की एक क्लिप के सहारे राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस के दरबारी माहौल बनाने में जुट गए हैं।

स्मृति ईरानी की एक क्लिप के सहारे दरबारी यह बताने में जुटे हैं कि वह राहुल गाँधी की फैन हो गई हैं। हालाँकि, दृष्टिदोष रखने वाले दरबारी यह नहीं समझ पा रहे कि जिसे वह राहुल गाँधी की उपलब्धि मान रहे हैं, असल में वह उनकी विभाजनकारी राजनीति को नंगा करने जैसा है। स्मृति ईरानी ने स्पष्ट तरीके से बताया है कि बीते कुछ सालों में राहुल गाँधी की राजनीति में मंदिरों में मत्था टेकने की जगह जातिगत आरक्षण की बात ने क्यों ले ली है।

स्मृति ईरानी ने बताई जाति की राजनीति की असलियत

स्मृति ईरानी ने कहा कि राहुल गाँधी की राजनीति कुछ साल पहले तक मंदिरों में जाने की थी। हालाँकि, इससे उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा था, उलटे उनका मजाक उड़ रहा था। ईरानी ने कहा कि उनके मंदिर जाने से ना ही राहुल गाँधी की लोकप्रियता बढ़ रही थी और ना ही उन्हें उतनी कवरेज मिल रही थी। ईरानी ने बताया कि उनकी मंदिरों की राजनीति फेल होने के बाद ही पूरी रणनीति जाति पर आकर रुक गई है। राहुल गाँधी जाति को इसलिए बार बार अपनी बातचीत में ला रहे हैं क्योंकि यही उनके लिए कवरेज पाने का एक तरीका है।

स्मृति ईरानी ने यह भी कहा कि राहुल गाँधी के लिए जाति कोई पुराना मुद्दा नहीं बल्कि रणनीतिक मुद्दा है। उन्होंने इसका इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक बढ़त लेने के लिए किया है। स्मृति ईरानी ने यह भी बताया कि राहुल गाँधी की राजनीति में पहले जाति का नाम नहीं था और अब यह आ गया है। ईरानी ने उनके मिस इंडिया वाले बयान का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि राहुल गाँधी मिस इंडिया में दलित या ओबीसी की बात इसलिए कर रहे हैं क्योकि उससे हेडलाइन बनती है। स्मृति ईरानी की यह बातें आप नीचे लगे लिंक पर 55 मिनट से 60 मिनट के बीच सुन सकते हैं।

अकारण नहीं है राहुल का ‘जाति राग’

राहुल गाँधी का लगातार जाति-जाति करना और वित्त मंत्रालय की हलवा सेरेमनी में दलित ओबीसी ढूँढना कोई अकारण नहीं है, ना ही वह जातिगत जनगणना की बात अकारण कर रहे हैं। दरअसल, इसके पीछे उनको अपनी उस रणनीति में मिली शिकस्त का नतीजा है, जिसे मीडिया ने ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का नाम दिया है। दरअसल, कुछ साल पहले तक राहुल गाँधी की सोमनाथ जैसे मंदिरों से तस्वीरें आती थीं। उन्हें कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता ‘दत्तात्रेय ब्राम्हण’ बताते थे। उनकी जनेव वाली फोटो लहराई जाती थीं।

यह सब करने का कोई फायदा जब कॉन्ग्रेस को नहीं मिला और लोगों ने इस कथित हिंदुत्व को सिरे से नकार दिया तो हिन्दू समाज को बाँटने वाली राजनीति सहारा लिया। हालाँकि, यह उनका ओरिजिनल आईडिया नहीं है। इसे सबसे पहले समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उठाया था लेकिन उसे शिकस्त मिली थी। राहुल गाँधी को इस मुद्दे को उठा कर लगता है कि वह अधिक वोट हासिल करने में सफल होंगे। उनका यह सोचना भी ऐसे ही नहीं है।

दरअसल, कॉन्ग्रेस मानती है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी यानी मुस्लिम उनकी राजनीतिक जागीर हैं। यह सोच लगातार चलती आई है कि कॉन्ग्रेस और भाजपा के सीधे मुकाबले में मुस्लिम वोटर कॉन्ग्रेस को ही चुनेगा। हालाँकि, 100% मुस्लिम वोट पाकर भी देश में बहुमत पाना संभव नहीं है। ऐसे में राहुल गाँधी की नई रणनीति जातिगत जनगणना का शोर मचा कर हिन्दू समाज को अलग अलग करना है। वह उस समाज को तोड़ कर दलित, OBC और अन्य वर्गों में बाँटना चाहते हैं जिसे हिंदुत्व एक साथ रखने की कोशिश करता है।

कॉन्ग्रेस सिद्ध होती रही है पिछड़ा विरोधी

राहुल गाँधी का जतिजत जनगणना की बात करना और पिछड़ों के अधिकार के लिए शोर मचाना इसलिए भी हास्यासपद है क्योंकि उन्हीं की पार्टी के माथे पर इस समाज को पीछे रखने का कलंक है। पिछले 1-2 वर्षों से जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाने वाले राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी ने 1990 के दशक में पिछड़ों को आरक्षण देने के मुद्दे इसे बुद्धुओं से जोड़ दिया था। इसी कॉन्ग्रेस ने एक दशक से अधिक समय तक मंडल आयोग की रिपोर्ट को भी नहीं छुआ।

हाथ में संविधान की एक कॉपी पकड़ कर मिस इंडिया में OBC और दलित ढूँढने वाले राहुल गाँधी की पार्टी पर किया गया एक शोध बात है कि उनकी सरकारों में OBC समुदाय से मंत्रियों की संख्या हमेशा भाजपा की तुलना में कम रही। कॉन्ग्रेस ने जहाँ 1952-2024 के बीच अपनी सरकारों में 14% मंत्रिपद OBC को दिए तो वहीं भाजपा ने यह आँकड़ा 25% तक पहुँचाया। एक और बात यह है कि राहुल गाँधी यदि जाति को लेकर चिंतित हैं तो कर्नाटक में वह जातिगत जनगणना के आँकड़े क्यों नहीं सार्वजनिक करवाते।

दलित-OBC पर दिलफेंक टाइप राजनीति का असल सच यह है कि कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने दलितों के फंड में से पैसा अपनी गारंटी योजनाओं के लिए निकाल लिया है। इसी कर्नाटक में जनजातियों के विकास के लिए चलाई गई एक योजना में करोड़ों का घोटाला हुआ। यहाँ तक कि एक मंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ गया।

ऐसे में भले अब आरक्षण सीमा तोड़ने, आबादी का हक़ दिलाने और हर चीज में जाति ढूँढने की बाते राहुल गाँधी करें, यह उनकी पार्टी के चरित्र को नहीं बदलेगा। ना ही इससे यह बात बदल पाएगी कि उनकी सरकारें ही दलितों का फंड कम कर रही हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में कॉन्ग्रेस की सीटों में कुछ बढ़ोतरी जरूर हुई है। राहुल गाँधी को लगता है इसमें और बढ़ोतरी जाति के नैरेटिव को धार देने से होगी। हालाँकि, वह यह नहीं समझ पा रहे कि यदि जनता में इस बात की इतनी ही स्वीकार्यता होती तो NDA को स्पष्ट बहुमत कैसे मिलता।

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अर्पित त्रिपाठी
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