वो वकील भी है, वो डॉक्टर भी है, वो जज भी है, वो पुलिस भी है। वो विषाणु विशेषज्ञ से लेकर आरबीआई का प्रबंधक भी है। नासा वाले किसी भी सैटेलाईट को अन्तरिक्ष भेजने से पहले उसके यूट्यूब वीडियो देखने लगे हैं। उसका नाम लेने भर से वो आपको ‘एक्स्पोज़’ कर सकता है। यहाँ आप ध्रुव राठी लिखिए और वहाँ आपको एक्स्पोज करता एक सनसनीखेज यूट्यूब वीडियो ‘वायरल’ हो पड़ता है।
यह डेढ़ जीबी दैनिक सस्ते इन्टरनेट का ही कमाल है कि जिस पार्टी के युवराज को अपने पार्टी के भीतर ही आए दिन खिसक रहे विधायकों की कानों कान खबर नहीं लगती, वह भी ट्विटर पर भावुक संगीत के साथ भारत के पड़ोसियों के साथ सम्बन्धों, विदेश नीति और फॉरेन पॉलिसी पर ज्ञान दे रहे हैं।
Since 2014, the PM’s constant blunders and indiscretions have fundamentally weakened India and left us vulnerable.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 17, 2020
Empty words don’t suffice in the world of geopolitics. pic.twitter.com/XM6PXcRuFh
बहुत से बड़े और लम्बे वीडियो सेशंस के बाद राहुल गाँधी अब एक बेहद छोटा और महज साढ़े तीन मिनट का एक वीडियो लेकर आए हैं। इस वीडियो में उनका मुख्य मर्म यह है कि चीन ने गलवान घाटी में खुरापात करने के लिए यह समय क्यों चुना?
इसका जवाब बेहद साधारण सा है – जवाब यह है कि शायद चीन भी जानता था कि ऐसा अवसर उन्हें पहले कभी नहीं मिल पाता, जब भारत में ही रहकर विपक्ष में बैठकर बूढ़ा होता, इस देश में सबसे लम्बे समय तक राज करता सत्ता का लालची परिवार अपने ही देश के खिलाफ जाकर चीन के लिए समर्थन दे रहा होता है? ऐसे में, यह तो वास्तव में चीन के लिए आपदा को अवसर में बदलने वाली बात थी।
सबसे हास्यास्पद बात यह है कि आए दिन नया भावुक वीडियो बनाकर देश में रोजगार पर ऐसा व्यक्ति चिंता व्यक्त करता नजर आता है, जिसके अपने ही परिवार में आने वाली अभी कई पुस्तों को सिर्फ इस कारण रोजगार की चिंता नहीं करनी होगी क्योंकि उसके नाम के साथ किसी ना किसी तरह से ‘गाँधी’ या फिर ‘नेहरू’ जुड़ा हुआ है। संयोगवश, जिनके नाम में गाँधी नहीं भी जुड़े हों, उन्हें जोड़ लेने के लिए इस परिवार को किसी बाहरी व्यक्ति की सलाह लेने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
पड़ोसी मुल्कों के साथ भारत की विदेश नीति: मोदी सरकार के 6 साल ‘बनाम’ UPA
विदेशों से सम्बन्ध पर राहुल गाँधी का कहना है कि एक समय था जब अमेरिका, रूस और यूरोपीय देशों से भारत के अच्छे सम्बन्ध थे। लेकिन वह ये बताना भूल गए कि जिन अच्छे विदेशी सम्बन्धों की वो बात कर रहे हैं, वो मोदी सरकार के दोनों कार्यकालों से पहले शायद ही इतने गहरे रहे हों।
यह सिर्फ मोदी-ट्रम्प रिश्तों तक सीमित नहीं बल्कि इजराइल और रूस के साथ बढ़ते रक्षा सौदों और सामरिक सम्बन्धों से लेकर ऑस्ट्रेलिया के साथ होने वाले ट्रेड डील्स से ही पता चलता है, जिन्हें लेकर पिछली यूपीए सरकार पीछे हट गई थी।
चीन के व्यवहार के साथ ही जिन विदेशी सम्बन्धों का रोना राहुल गाँधी अपने इस तीन मिनट के वीडियो में रो रहे हैं, उन्हें इसकी गर्त में जाकर देखना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जब चीन डोकलाम सीमा में घुसपैठ की कोशिश कर रहा था, तब कहीं कॉन्ग्रेस चीन की कम्युनिस्ट सरकार से अपने पारिवारिक राजीव गाँधी फाउंडेशन के लिए ‘वित्तीय सहायता’ लेने में व्यस्त तो नहीं थी?
या फिर राहुल गाँधी यह संदेश देना चाहते हैं कि कॉन्ग्रेस की विदेश नीतियों का आधार ही यही है कि चीन हमारी सेना का निरंतर दमन करते जाएँ और परदे के पीछे गाँधी परिवार उसी देश से वित्तीय सहायता की भीख माँगता रहे?
नेपाल की कम्युनिस्ट सत्ता का इस्तेमाल चीन हमेशा से ही पड़ोसी मुल्कों के साथ अपने शत्रुतापूर्ण व्यवहार के लिए इस्तेमाल करता आया है। इसके बाद नेपाल की सत्ता में जब भी भारत विरोधी भावनाओं ने पैर पसारा है, उसकी बुनियाद 1986-87 में राजीव गाँधी रख चुके हैं, जब इन्हीं राहुल गाँधी के पिता ने देश का प्रधानमंत्री रहते हुए नेपाल की तीन महीने की नाकाबंदी कर दी थी।
विदेश नीति में कॉन्ग्रेस कितनी कुशल रही है इस बात का सबूत यही है कि नेपाल की इस नाकाबंदी के दौरान भारत से नेपाल पानी, नमक और तेल तक नहीं जा सका था। नेपाल को भारत कभी अपने भरोसे में ला ही नहीं सका था।
वर्ष 1971 से 1975 के बीच इंदिरा गाँधी ने बांग्लादेश के मुद्दे पर नेपाल को भरोसे में नहीं लिया था। जब सिक्किम भारत का हिस्सा बना, तब भी यही हुआ। भारत के चीन के 1962 युद्ध के दौरान जवाहर लाल नेहरू ने भी यही किया। यही वजह है कि नेपाल को आज भी लगता है कि भारत उसके साथ अन्याय करता है। नतीजा यह हुआ कि समय के साथ एकमात्र पूर्ण हिन्दू देश नेपाल भी धर्म निरपेक्षता का आडम्बर करने लगा।
इन समबन्धों में प्राण फूंकने की कोशिश एक बार फिर गत 6 सालों में पीएम मोदी ने की थी, नेपाल में आपदा और भूकम्प के दौरान भारत से हर सम्भव मदद भेजी गईं, और ये सभी प्रयास कांग्रेस के प्रपंच की भेंट चढ़ते रहे।
भारत के पड़ोसी देश, मॉरिशस, मालदीव के लिए कोरोना वायरस की मह्मारी के दौरान ही भारत द्वारा उन्हें हर सम्भव मदद भेजी जा रही हैं। भारत एयर इंडिया के विशेष विमान से मेडिकल इक्विपमेंट्स, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टेबलेट, विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम और अन्य राहत सामग्री मॉरीशस को भेज चुका है। सिर्फ मॉरिशस ही नहीं बल्कि मेडागास्कर, मालदीव्स, सेशेल्स, कोमोरोस आदि देशों को भी कोरोना वायरस के दौरान मदद के तौर पर भारत की ओर से दवाइयाँ भेजी गई हैं।
अपने सामुद्रिक पड़ोसी देश मालदीव के साथ भारत के सम्बन्धों में पीएम मोदी ने दुसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही सकारात्मक संकेत देते हुए ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति का विस्तार किया। दोबारा प्रधानमंत्री निर्वाचित होने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मालदीव द्वारा अपने सर्वोच्च सम्मान ‘रूल ऑफ निशान इज्जुद्दीन’ से सम्मानित किया गया था। इसी तरह अरब देशों ने भी पीएम मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि को सम्मानित करने का काम किया है।
अपने सामरिक हितों के लिए चीन भारत के सबसे करीबी देश श्रीलंका हम्बनटोटा बंदरगाह को विकसित करना चाहता है। श्रीलंका में हम्बनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण चीन को देने के सवाल पर भारत में पहले से ही चिताएँ थीं। 2008-09 में चीन के दख़ल की कोशिशें शुरू हुई थीं, और तब से भारत इसे लेकर चिंतित ही रहा है, यह कहने कि आवश्यकता नहीं है कि तब भारत में UPA की सरकार थी और हमारे पास एक रोबोट प्रधानमंत्री हुआ करते थे।
यह सरकार भारत के हितों के लिए कितनी सजग थी, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि श्रीलंका ने भारत को 2008 में इस बंदरगाह की पेशकश की थी लेकिन उस समय कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार, जिसके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, का पहला कार्यकाल खत्म होने के कगार पर था। तब भारत सरकार ने कहा था कि भारत 1.5 अरब डॉलर का निवेश करने की स्थिति में नहीं है।
इसके अलावा, इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है की एक परिवार के निजी स्वार्थ और देश के पहले प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत छवि के लिए यह देश अक्साई चिन की सीमा से लेकर कश्मीर की जनता तक का विश्वास खोता रहा है और यह सब समेटने के प्रयास भी इन्हीं छह सालों में किए गए हैं, जिन्हें लेकर राहुल गाँधी रोज किसी ना किसी तरह से प्रासंगिक बने हुए हैं। नेहरू ने तो जनता को यह भनक तक नहीं लगने दी थी कि देश की सीमा के एक बड़े हिस्से पर चीन अतिक्रमण कर चुका है।
लेकिन तथ्यों का यदि गाँधी परिवार से अगर कोई नाता होता तो आज वो राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी वाड्रा के हेयरस्टाइल में उनका भविष्य नहीं तलाश रही होती। फिलहाल राहुल गाँधी को अपने अगले वीडियो में एक ऐसा ग्राफ भी शेयर करना चाहिए, जिसमें दर्शाया गया हो कि किस तरह से किसी इंसान के अपने पिता से मिलते-जुलते हेयर स्टाइल और उस व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना के बीच व्युत्क्रम सम्बन्ध होता है।
पीएम इन वेटिंग का ‘पीएम मटेरियल’ से ध्रुव राठी बनने तक का सफ़र
कहाँ एक ओर तमाम पीआर एजेंसी की ताकत एक राहुल गाँधी को राजीव गाँधी तक नहीं बना पा रही है, और कहाँ राहुल गाँधी हैं कि खुद एक प्रायोजित एजेंडाबाज ध्रुव राठी होने का सपना मन में पालकर चल रहे हैं। ध्रुव राठी होने और राहुल गाँधी होने के लिए एकमात्र आवश्यकता तर्कों से सख्त बगावत की प्रवृत्ति है, और यह स्वाभाविक हुनर इन दोनों ही हस्तियों में मौजूद है।
अब शायद ही कोई ऐसा विषय रह गया हो, जिस पर उस विषय के जानकारों से ज्यादा जानकारी राहुल गाँधी ने ना दे दी हो। अगर इसी स्ट्राइक रेट के साथ राहुल गाँधी सभी घरेलू, देशी, विदेशी, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, आकाशगंगा, ब्लैकहोल्स के अंदरूनी मामलों पर भावुक संगीत के साथ वीडियो बनाते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब ‘रोजगार’ पर वीडियो बनाते-बनाते किसी दिन राहुल गाँधी खुद ध्रुव राठी का ही रोजगार ना खा बैठें।
टेलीविजन पर आने वाले ‘टेलेंट हंट’ प्रोग्राम्स, रियेलिटी शो और राहुल गाँधी के वीडियो में एक बात कॉमन है कि दोनों में ही माहौल बनाने के लिए बेहद भावुक और अप्रासंगिक संगीत की धुन बजाई जाती हैं। हालाँकि, दोनों ही जगह ‘टेलेंट खोजना’ और उसके लिए फिर ‘माहौल बनाना’, ये दोनों भी मिलती-जुलती चीजें ही हैं।
कोरोना वायरस की आपदा को अवसर में बदलने के लिए राहुल गाँधी शुरू से ही यत्न करते नजर आ रहे हैं। ऐसा करने के लिए उन्होंने अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, टीवी, सिनेमा से लेकर किसी आकाशगंगा में छुपे एलियंस और इटली की विलुप्त पशु-पक्षियों की प्रजातियों तक से भी बात कर ली है। हालाँकि, इतने सब के बीच भी वो आज तक स्वयं से बात कर थोड़ा सा आत्मचिंतन करने की फुर्सत नहीं निकाल सके हैं।