पिछले वर्ष के अंत में हुए विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कर्जमाफी का वादा कर सरकार गठन में सफलता प्राप्त की। अपने तरकश के सारे तीर फेल हो जाने के बाद कॉन्ग्रेस ने कर्जमाफी का दाँव खेला था, क्योंकि पंजाब में भी यह फॉर्मूला कामयाब रहा था।अर्थशास्त्रियों ने इसे लेकर आपत्ति जताई कि इससे बैंकों पर दबाव बढ़ेगा और वे किसानों को क़र्ज़ देना ही बंद कर देंगे, लेकिन वोट बैंक की चिंता में दुबले होते जा रहे राजनीतिज्ञों ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया। ख़ैर, उससे पहले भाजपा भी यूपी में कर्जमाफी का वादा कर चुकी थी।
योगी आदित्यनाथ सरकार के पास किसानों की कर्जमाफी के लिए योजना थी, क्योंकि सरकार ने बॉन्ड्स बेच कर बैंकों को नुक़सान होने से रोका। वहीं, कॉन्ग्रेस के पास ऐसी कोई योजना नहीं थी। जैसे-तैसे कर उसने सरकार का गठन तो कर लिया, लेकिन कर्जमाफी अधर में लटक गई। मध्य प्रदेश में तो लोकसभा चुनाव का बहाना बना कर इसे टरकाया गया। आम चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से पहले ही किसनों को मैसेज जाने लगे कि कर्जमाफी अब चुनाव के बाद होगी।
मध्य प्रदेश: किसान ने कर्जमाफी पर उठाए सवाल तो सिंधिया की सभा से किसान को भगाया#AbkiBaarKiskiSarkar https://t.co/v5EVeWInQQ
— Zee News Hindi (@ZeeNewsHindi) May 11, 2019
इन सबके बावजूद मीडिया ने इन ख़बरों को तवज्जो नहीं दी, जबकि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कर्जमाफी को लकीर बड़ा दुष्प्रचार अभियान चलाया गया। इसमें मुख्यधारा की मीडिया से लेकर प्रोपगेंडा पोर्टल्स तक शामिल रहे। मीडिया ने ऐसी ख़बरें चलाईं कि कई किसानों का 10 रुपए और 20 रुपए का क़र्ज़ माफ़ हुआ है। स्थानीय स्तर पर अधिकारियों द्वारा की गई गड़बड़ियाँ हाइलाइट की गई, जबकि कॉन्ग्रेस शासित प्रदेशों में सीधे राज्य सरकार के स्तर पर हुई बड़ी धांधलियों को कवर तक नहीं किया गया। मध्य प्रदेश में तो कर्जमाफी पर सवाल पूछने पर किसान को ज्योतिरादित्य सिंधिया की सभा से ही भगा दिया गया।
आजतक ने यूपी में कर्जमाफी की ख़बर चलाई कि किसानों को सर्टिफिकेट तो मिल गया लेकिन उसमें लिखी रक़म संदिग्ध थी, क्योंकि 10-20 लेकर 100-200 रुपए तक के क़र्ज़ माफ़ किए गए। जबकि, मंत्रियों का कहना था कि ये वो राशि थी जो कर्जमाफी के बाद बच गई थी। योगी सरकार ने कहा कि उसने ढाई साल में 43 लाख किसानों का 25 हज़ार करोड़ रुपए का क़र्ज़ माफ़ किया। कई फ़र्ज़ी व्यक्तियों ने भी इस योजना का लाभ उठा लिया, बाद में जिसकी जाँच हुई। यूपी में लघु व सीमान्त किसानों का 1 लाख रुपए तक का क़र्ज़ माफ़ किया गया था।
कॉन्ग्रेस के कर्जमाफी स्कीम की पोल इसी से खुल गई कि लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने इसी को मुद्दा बनाया और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान- तीनों ही राज्यों में पार्टी को बुरी हार मिली। जिन किसानों ने कर्जमाफी की उम्मीद में कॉन्ग्रेस को वोट दिया था, कुछ ही महीने बाद वे कॉन्ग्रेस से रूठ गए। इससे पता चलता है कि इन राज्यों में कर्जमाफी की प्रक्रिया ठीक से पूरी नहीं की गई। मध्य प्रदेश में तो राज्य सरकार ने पीएम किसान निधि को भी कई दिनों तक सिर्फ़ इसीलिए रोक कर रखा, क्योंकि राज्य सरकार कर्जमाफी पर काम करने का दावा कर रही थी।
लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि कमलनाथ सरकार ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ के अंतर्गत लाभार्थी किसानों की सूची केंद्र सरकार को भेजने में देरी कर रही है, क्योंकि कॉन्ग्रेस को शक है कि इससे भाजपा और मोदी को चुनावी लाभ मिल जाएगा। इस योजना के पहले पहले फेज में 1 करोड़ से भी अधिक किसानों के खाते में 2000 रुपए गए, लेकिन उनमें मध्य प्रदेश का एक भी किसान नहीं था। इसका मतलब ये कि कर्जमाफी में गड़बड़ी तो हुई ही, केंद्र सरकार की योजना को भी रोक कर रखा गया और यही किसानों के आक्रोश का कारण बना।
मध्य प्रदेश में कर्जमाफी फेल हुई है, ऐसा सिर्फ़ विपक्ष का ही नहीं मानना है। ख़ुद कॉन्ग्रेस के नेता भी ऐसा ही मानते हैं। एक दशक तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह कॉन्ग्रेस के बड़े नेता हैं। उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने सीधा कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के कर्जमाफी के वादे पर ही सवाल उठा दिए। उन्होंने साफ़-साफ़ कहा कि चुनाव के दौरान राहुल को कर्जमाफी का वादा नहीं करना चाहिए था। उन्होंने कर्जमाफी को असंभव करार दिया। उन्होंने कहा कि 45 हज़ार करोड़ की कर्जमाफी आसान काम नहीं है। उन्होंने कहा कि कमलनाथ सरकार कर्जमाफी का आकलन करने में विफल साबित हुई है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने कहा है कि राज्य में किसानों से किया गया कर्ज माफी का वादा अभी पूरा नहीं हुआ है.https://t.co/jPoN86Oe1e#lakshmansingh @INCIndia
— Asiaville Hindi (@HindiAsiaville) September 19, 2019
जब पार्टी के बड़े नेता ही स्वीकार कर रहे हैं कि कर्जमाफी किसी भी क़ीमत पर संभव नहीं है तो मीडिया में इस पर सन्नाटा क्यों है? यूपी से ढूँढ-ढूँढ कर कर्जमाफी को लेकर गड़बड़ियों की ख़बर को हाइलाइट करने वाला और दुष्प्रचार फैलाने वाला मीडिया मध्य प्रदेश में कर्जमाफी की खस्ता हालत को राष्ट्रीय स्तर पर क्यों नहीं हाइलाइट कर रहा? राजस्थान की भी यही स्थिति है। कई किसानों ने कर्जमाफी न होने के कारण विरोध प्रदर्शन किया। ‘ऑल इंडिया किसान सभा’ ने इस वर्ष जनवरी में प्रदर्शन किया।
बता दें कि यह संगठन भाजपा से सम्बद्ध नहीं है। ‘ऑल इंडिया किसान सभा’ कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध किसान संगठन है। किसानों ने आरोप लगाया कि गहलोत सरकार ने कई ‘नियम एवं शर्तों’ के साथ कर्जमाफी की, वो भी आधी-अधूरी। किसानों का कहना था कि पहले कहा गया कि सभी किसानों का कर्ज माफ़ किया जाएगा, बाद में कहा जाने लगा कि केवल राष्ट्रीय बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों का ही कर्ज माफ़ होगा। किसानों का यह गुस्स्सा लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की हार के पीछे के कई प्रमुख कारणों में से एक रहा।
राजस्थान में कर्जमाफी में शर्तों की बानगी देखिए। एक तो कहा गया कि केवल राष्ट्रीय बैंकों से लिया गया क़र्ज़ ही माफ़ होगा। दूसरे यह कि पंचायत या नगर पंचायत जनप्रतिनिधियों, सरकारी नौकरों व पेंशनधारियों के परिवारों को इस सूची से बाहर रखा जाएगा। इससे कई लोग ऐसे ही कर्जमाफी की सूची से बाहर हो गए। 23 जून को राजस्थान के श्री गंगानगर में सोहन लाल नामक किसान ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या से पहले उन्होंने एक वीडियो बनाया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि कॉन्ग्रेस की कर्जमाफी स्कीम से किसानों को कोई फ़ायदा नहीं हुआ है।
क़र्ज़माफ़ी के वादे से बनी राजस्थान सरकार में अब तक क़रीब 10 से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं ना क़र्ज़माफ़ हुआ ना समय पर बिजली पानी!कांग्रेस सत्ता में व्यस्त हैं पर किसानो के साथ लगातार हो रहे इस धोखे के ख़िलाफ़ आंदोलन तय हैं https://t.co/fJyNdWozgN
— HANUMAN BENIWAL (@hanumanbeniwal) July 13, 2019
उन्होंने वीडियो में अशोक गहलोत सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि बैंक अभी भी किसानों को परेशान कर रहे हैं और इसके गहलोत सरकार को परिणाम भुगतने होंगे। राजस्थान भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और दिवंगत वयोवृद्ध नेता मदन लाल सैनी ने दावा किया था कि 3 किसानों ने राजस्थान सरकार की कर्जमाफी योजना का लाभ न मिलने के कारण आत्महत्या कर ली। कॉन्ग्रेस नेता या तो ये कहते रहे कि कर्जमाफी की प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हो गई है या फिर लोकसभा चुनाव को लेकर लागू आचार संहिता पर उन्होंने सारा ठीकरा फोड़ दिया। राजस्थान में तो सरकार बनने के बाद जारी हुए बजट में भी कर्जमाफी को लेकर एक शब्द भी नहीं कहा गया।
कॉन्ग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गाँधी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में सरकार गठन के 10 दिनों के भीतर कर्जमाफी का ऐलान किया था। गड़बड़ियाँ तो होनी ही थीं, क्योंकि बिना किसी योजना के इतना बड़ा चुनावी वादा और वो भी इतनी कम समयसीमा में कर दी गई। तभी उनकी ही पार्टी के नेता अब उन्हें नसीहत दे रहे हैं। मध्य प्रदेश में तो स्थिति यह हो गई कि सरकार गठन के 4 महीने बाद किसानों ने 3 दिन का विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्हें कर्जमाफी का लाभ नहीं मिला। बैंक लगातार किसानों को नोटिस भेजते रहे कि उन्हें डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाएगा। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री से मिलने के बावजूद किसानों ने प्रदर्शन जारी रखा।
कॉन्ग्रेस शासित पंजाब की स्थिति भी गड़बड़ है। वहाँ के तो अधिकारियों ने ही स्वीकार किया कि राज्य सरकार वित्तीय कारणों ने किसानों की कर्जमाफी करने में विफल साबित हुई है। किसान नेताओं का कहना था कि छोटे कृषकों को कर्जमाफी का कोई लाभ नहीं मिला। छत्तीसगढ़ की स्थिति और और भी बदतर है। बस्तर सहित कई नक्सल प्रभावित इलाक़ों में किसानों के सरकारी डेटाबेस में ही खामी आ गई और इस वजह से कर्जमाफी लागू ही नहीं हो सकी। वहाँ भी कर्जमाफी न होने की वजह से एक किसान द्वारा आत्महत्या की ख़बर आई।
‘कर्जमाफी है सिर्फ झूठ का पुलिंदा, पंजाब में सिर्फ 30 करोड़ रुपए के कर्ज माफ’https://t.co/eqX6LP5cxl
— Shandilya Giriraj Singh (@girirajsinghbjp) December 24, 2018
यहाँ सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश में इतने बड़े स्तर पर कर्जमाफी हुई और वहाँ की सरकार ने बैंकों पर बोझ न पड़ने के लिए योजना भी बनाई, फिर भी मीडिया के एक वर्ग द्वारा स्थानीय स्तर पर हुई ग़लतियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर फेक नैरेटिव चलाया गया। जबकि, कॉन्ग्रेस शासित राज्यों में बड़े-बड़े चुनावी वादों के बावजूद किसानों ने आत्महत्या किया, विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन इन ख़बरों को प्राथमिकता नहीं दी गई। कर्जमाफी पर मीडिया की सेलेक्टिव रिपोर्टिंग के बावजूद विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को जिताने वाले किसानों ने लोकसभा चुनाव में उससे मुँह मोड़ लिया।