कुछ स्मृतियाँ ऐसी होती हैं जो आपके अंतर्मन को बार-बार जागृत करती रहती हैं। ऐसा ही एक अनुभव मेरा अंडमान निकोबार से जुड़ा है। यह एक सामान्य सी बात है कि जब कोई अंडमान के बारे में सोचता है, उसके मन में सेल्युलर जेल का विचार कौंध जाता है। मैंने बहुत बचपन में सेल्युलर जेल की कहानी पढ़ी थी, उस कहानी को पढ़कर सेल्युलर जेल मेरे अवचेतन में बैठ गया था।
ईश्वर की कृपा से मुझे अंडमान और निकोबार में एक वर्ष रहने का मौका मिला। इस दौरान मैं कई बार सेल्युलर जेल घूमा। जिन कमरों में क्रांन्तिकारी रहते थे, उन दीवारों को बार-बार छूता और कभी-कभी उसमें घंटों बैठकर दीवारों को कान लगा कर कुछ सुनने का प्रयास करता। मैं सोचता था कि काश कहीं से भारत माता की जय, इन्कलाब जिंदाबाद सुनने को मिल जाए।
मैं सेल्युलर जेल के छोटे-छोटे कैदखाने के दरवाजे (लोहे का छड़ वाला दरवाजा, जिसमें बाहर से लॉक लगाने की व्यवस्था थी) को बंद कर खिड़की की तरफ उछलता और अनुभव करता था कि जब दूसरे बैरक से चीखने की आवाज आती होगी तो आजादी के दीवाने ऐसे ही खिड़कियों और दरवाजों से किस कैदी को यातना मिल रही होगी, इसका अंदाज़ा लगाते होंगे।
मैं इन्कलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय का जयगान करता था और सोचता था कि एक क्रन्तिकारी जब इन नारों को लगाता होगा तो उसकी आवाज कैसे गूँजती होगी। सेल्युलर जेल के एक कोने में सावरकर की कोठरी है। पहले सेल्युलर जेल में 7 विंग्स थे। 4 विंग्स को तोड़कर वहाँ जीबी पन्त मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल बनाया गया है और बाकी 3 विंग्स अभी पूरी तरह से सुरक्षित हैं।
सेल्युलर जेल का इस्तेमाल आजादी के बाद भी किया गया, जिन कमरों में पहले क्रांतिकारियों को कैद किया जाता था, वहाँ आजादी के बाद अपराधियों को रखा जाने लगा। हालाँकि जब अंडमान में नया जेल बना तो कैदियों को सेल्युलर जेल में रखना बंद कर दिया गया। सेल्युलर जेल में जितने भी लोग आते हैं, उनमें सावरकर की कोठरी देखने की होड़ मची रहती है।
लोग सावरकर की कोठरी के साथ सेल्फी लेते हैं, चप्पल खोल कर उस कोठरी में प्रवेश करते हैं। जेल में जैसे ही आप प्रवेश करेंगे, दाईं तरफ तीसरी मंजिल पर सबसे अंतिम वाला कमरा सावरकर का है। सावरकर के कमरे के ठीक बाहरी दीवार को छूता हुआ एक इमली का पेड़ है, जिसके बारे में स्थानीय बताते हैं कि यह बहुत पुराना है।
उसी ईमली के पेड़ की बगल से एक सड़क गई है और सड़क के उस पार समंदर है। समंदर में थोड़ी दूर के बाद रोस आइलैंड है। अंग्रेज यहीं रहते थे और यहीं से उनका पूरे अंडमान निकोबार पर नियंत्रण भी था। 1942-1945 में जब जापानी सैनिकों ने अंडमान पर कब्ज़ा किया था तो रोस आईलैंड और माउंट हेरियट के एक अंग्रेज अधिकारी के घर पर इतना बम गिराया था कि अंग्रेजों के लिए उसको रिपेयर कर पाना मुश्किल हो गया था।
आज भी जापानी बमों के दाग और जापानी बंकर अंडमान में आसानी से देखे जा सकते हैं। सेल्युलर जेल बनने से पहले क्रांतिकारियों को वाइपर आइलैंड पर रखा जाता था। वाइपर आइलैंड पोर्ट ब्लेयर के पास ही है। इसी जेल में पुरी के एक राजा का कैदखाने में ही देहांत हो गया था। अंग्रेजों ने बहुत जुल्म ढाए थे राष्ट्रवादियों पर। बंदियों के पैरों से लेकर गले तक को लोहे के जंजीरों में जकड़ कर रखा जाता था।
नारियल के छिलके को कूटने से लेकर, कोल्हू में जुतना होता था। प्रताड़ना के लिए तो अंग्रेजों ने पूरी व्यवस्था कर रखी थी। जेल के बीचोबीच एक लोहे का स्लैब बनाया गया था। इसमें तपती धुप में देशभक्तों को पेट के बल लिटा कर बेड़ियों से जकड़ा जाता था और फिर पीठ पर कोड़े बरसाए जाते थे। ना तो पीने का पानी और ना ही भर पेट भोजन… ऊपर से ऐसी प्रताड़ना, जिसकी कल्पना भी मुश्किल है।
सावरकर की कोठरी ठीक फाँसी घर के सामने थी। जब किसी को फाँसी दी जाती थी, तो उस समय क्रांन्तिकारियों के इन्कलाब के नारों से पूरा जेल थर्रा जाता था। इतने बड़े परिसर में जब फाँसी पर झूलने वाले क्रांन्तिकारी भारत माता की जय बोलते थे, उनके शपथ को दम देने के लिए, जज्बा देने के लिए कैदखाने में बंद सैकड़ों बंदी ‘भारत माता की जय’, ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारों से जेल की मोटी-मोटी दीवारों को हिला देते थे।
यह अनुगूँज इंतनी भयंकर होती थी कि जेल के बाहर के लोगों को अंदेशा हो जाता था कि आज किसी क्रांन्तिकारी को फाँसी हुई है। जेल के फाँसी घर में एक साथ तीन व्यक्तियों को फाँसी देने की व्यवस्था थी।
इस देश का दुर्भाग्य ही कहिए कि वर्ष 2004 में कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर अंडमान निकोबार गए थे। सेल्युलर जेल में एक ज्योति पुंज पर स्वातंत्र्य वीर सावरकर का नाम देख कर वो इतना चिढ़ गए कि उन्होंने तत्काल उस नेम प्लेट को हटाने का निर्देश दे दिया था। इस घटना से पूरे अंडमान निकोबार में क्षोभ पसर गया था। इसका वहाँ के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने भारी विरोध किया था, लेकिन फिर भी सावरकर का नाम वहाँ अंकित नहीं हो सका।
Balasaheb Thackeray in the past when Manishankar Aiyar disrespected Veer Savarkar.
— Mikku (Sonu Sood FC) (@effucktivehumor) December 14, 2019
Sir @OfficeofUT wait kar rahe hain hum 🙄 pic.twitter.com/N8rOMkTJ8Q
उस वक्त बालासाहेब ठाकरे जिन्दा थे और उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में शिव सैनिकों से सावरकर के अपमान का बदला लेने को कहा था। जगह-जगह मणिशंकर अय्यर के पुतले पर जूते मारे गए थे और उनके पुतले का दहन किया गया था।
वामपंथियों और कॉन्ग्रेसियों को सारा जीवन सावरकर से चिढ़ होती रही। सावरकर के संघर्षों को अपमानित करना इनका सर्वकालिक अजेंडा रहा है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस व्यक्ति ने दशकों तक भारत की आजादी के लिए अमानवीय कष्ट सहे, जिन्होंने 1857 की क्रांति का इतिहास लिख कर भारतीय ज्ञान परम्परा को समृद्ध किया, उसे कॉन्ग्रेस ने अपने पूरे जीवन काल में अपमानित करने का कार्य किया।
कम्युनिस्ट और कॉन्ग्रेस के विचारकों का इसके पीछे का षडयंत्र यह था कि विनायक दामोदर सावरकर को एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भारतीय मन से विस्मृत किया जाए, क्योंकि सावरकर ने सेकुलरिज्म पर ना लिखते हुए मोपला के वीभत्स दंगों का इतिहास लिखा था, क्योंकि सावरकर ने हिंदुत्व के दर्शन पर पुस्तकें लिखी थीं।
आप सोचिए अगर इनके छवि को धूमिल ना किया जाता, अगर सुभास चन्द्र बोस के इतिहास को चंद शब्दों में ना समेटा जाता, अगर भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को आतंकी न कहा जाता तो इनके चेहते नेता कैसे स्थापित होते?
खैर 11 वर्षों तक सेल्युलर जेल का वह ज्योति पुंज, जिसे वाजपेयी की सरकार ने स्थापित किया था, उस पर एक बार पुनः सावरकर की वाणियाँ उदृत की गईं। आज वह अमर ज्योति सावरकर सहित ऐसे सैकड़ों राष्ट्रभक्तों की आत्मा की अहर्निश आवाज को बुलंद कर रहा है। सेल्युलर जेल हर शाम प्रकाश और ध्वनि कार्यक्रमों का आयोजन करता है और… हर शाम सेल्युलर जेल की दीवारें जीवंत हो उठती हैं।