इसे सत्ता से दूरी की छटपटाहट कहें, या फिर मोदी से घृणा, या यह कुछ और जिसके कारण कॉन्ग्रेस का शीर्ष परिवार अब लोकतांत्रिक परंपराओं के सम्मान से भी पीछे हटने लगा है। 2014 के चुनावी हार के बाद कॉन्ग्रेस ने हरेक लोकतांत्रिक संस्था को निशाना बनाया। चुनाव आयोग से लेकर न्यायपालिका तक की निष्पक्षता पर सवाल उठाए ताकि मोदी सरकार पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप मढ़ सके।
2019 के आम चुनावों में यह रणनीति औंधे मुॅंह गिरी और अब लोकतांत्रिक परम्पराएँ कॉन्ग्रेस के निशाने पर हैं। बेटे की जिद की वजह से हाल ही में कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्षा बनीं सोनिया गॉंधी और उनके सांसद बेटे राहुल गॉंधी इस बार लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस के जश्न से गायब रहे। ज्यादा दिन नहीं बीते, माँ-बेटे की इस जोड़ी ने प्रणब मुखर्जी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजे जाने के मौके पर पहुॅंचना जरूरी नहीं समझा था।
Today both Sonia Gandhi, Congress President again & Rahul Gandhi, Congress President till recently gave the Independence Day celebration at the Red Fort, a miss. India didn’t even blink at their absence but it is unusual for opposition leaders to not honour democratic traditions.
— Amit Malviya (@amitmalviya) August 15, 2019
यह समझना मुश्किल है कि सोनिया और राहुल लाल किला क्यों नहीं पहुॅंच पाएँ? जबकि, लाल किला से करीब छह किलोमीटर दूर कॉन्ग्रेस मुख्यालय में इस मौके पर दोनों ही मौजूद थे। इसी तरह कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने गॉंधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया है, के लिए मॉं-बेटे के पास समय नहीं होना भी समझ में नहीं आता।
लेकिन, यही कॉन्ग्रेस लोकतांत्रिक परंपराओं की दुहाई देकर राहुल गॉंधी के लिए पहली कतार में सीट मॉंगने का कोई मौका जाया नहीं करती। पार्टी ने हाल ही में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर सदन की पहली कतार में राहुल के लिए सीट का जुगाड़ करने को कहा था। हालॉंकि स्पीकर ने नियमों का हवाला देकर उसकी मॉंग ठुकरा दी थी।
इन्हीं राहुल गॉंधी को वर्ष 2018 में जब राजपथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस परेड में पहली कतार में बैठने की जगह नहीं मिली थी तो सोशल मीडिया में लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान नहीं किए जाने की दुहाई देते हुए लिबरलों की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई थी। कॉन्ग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया था, “मोदी सरकार की ओछी राजनीति जग ज़ाहिर! कॉन्ग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गॉंधी को गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर अंहकारी शासकों ने सारी परंपराओं को दरकिनार करके पहले चौथी पंक्ति और फिर छठी पंक्ति में जानबूझकर बिठाया। हमारे लिए संविधान का उत्सव ही सर्व प्रथम है।”
मोदी सरकार की ओछी राजनीति जग ज़ाहिर!
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) January 26, 2018
कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी को गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर अंहकारी शासकों ने सारी परंपराओं को दरकिनार करके पहले चौथी पंक्ति और फिर छठी पंक्ति में जानबूझकर बिठाया।
हमारे लिये संविधान का उत्सव ही सर्व प्रथम है। https://t.co/8bRi017G8J
लगता है कि आम चुनावों में करारी शिकस्त के बाद गॉंधी परिवार ने सुरजेवाला की ओछी राजनीति वाली टिप्पणी को सच साबित करने की ठान ली है। इसलिए, भारत से जुड़ी हर परंपराओं से वह दूरी बना रहे हैं। मानों इस देश की जनता को कहना चाहते हों, “मूर्खों वोट तुमने मोदी को दिया तो परंपराओं के सम्मान का ठेका हम क्यों ले। तुमने फिर से भाजपा को चुना। राफेल के नाम पर हमने इतना झूठ गढ़ा फिर भी मोदी को चुना। तो हम भी नहीं मानेंगे लोकतांत्रिक मूल्यों को। उड़ाएँगे इसकी धज्जियॉं। तुम निरीह जनता क्या कर लोगे। आखिर हम नेहरू-गॉंधी नाम वाले जो ठहरें।”
यकीन न हो तो सोनिया के शब्दों पर ही गौर कर लें, जो 15 अगस्त के मौके पर कॉन्ग्रेस मुख्यालय में उनके मुख से निकले, “हमें अन्याय, असहिष्णुता और भेदभाव के हर कृत्य के खिलाफ एक राष्ट्र के रूप में खड़ा होना होगा ताकि सही मायनों में हम आजादी को संजोए रख सकें।”
असल में, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के जश्न के मौकों से देश की मुख्य विपक्षी पार्टी और सबसे पुरानी पार्टी के नेताओं की बेरुखी उस हताशा से उपजी जान पड़ती है जो उनमें उस नेता को देख पैदा होती है जिसे कुछ महीने पहले तक लिबरल देश का अगला प्रधानमंत्री बता रहे थे। राहुल गॉंधी की हरकत उस लाडले जैसी लगती है जो स्कूल तो नहीं जाना चाहता पर चाहता है कि क्लासरूम की अगली सीट उसे ही मिले। उसकी जब मर्जी हो उस सीट पर जाकर बैठ जाए। भले ही परीक्षा में नंबर दूसरे बच्चों के ज्यादा आते हों पर गॉंधी सरनेम तो केवल राहुल का ही है!