उलजुलूल बयनाबाजी, माफ़ी माँगना, सेना को बलात्कारी बताना, राफेल को विमानवाहक पोत (𝗥𝗮𝗳𝗮𝗹𝗲- 𝗔𝗜𝗥𝗖𝗥𝗔𝗙𝗧 𝗖𝗔𝗥𝗥𝗜𝗘𝗥 𝗱𝗲𝗮𝗹) बताना, आदिवासियों की भूमि पर अवैध कब्जा… संस्थाओं के खिलाफ लोगों को भड़काना। इस सबके बावजूद यदि कोई यह मानता है कि अरुंधति रॉय (Arundhati Roy) की पहली दुश्मनी सामान्य तर्क क्षमता, बुद्धि-विवेक के साथ ना होकर दक्षिणपंथ और हिदुओं से है तो वह गलत है। कोरोना वायरस ने अरुंधति रॉय को एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा भुनाने के लिए चर्चा में आने का अवसर दिया है। लेकिन उनके नाम के साथ ही गूगल में साल-दर-साल कुछ अलंकरण जुड़ते जाते हैं, जिनके बारे में बात की जानी चाहिए।
Google की एक ख़ासियत है कि वह वामपंथियों की तरह चीजों को भूलता नहीं है। यदि आप गूगल में अरुंधति रॉय सर्च करते हैं तो अरुंधति रॉय से जुड़े हर साल किए गए कुछ ना कुछ गैरकानूनी या अवैध काम आपके सामने नजर आने लगते हैं। इस तरह से एक ‘अर्बन नक्सल विचारक’ के दोहरेपन की पूरी सिलसिलेवार टाइमलाइन तैयार हो जाती है। हालाँकि, एक वामपंथी ‘अर्बन नक्सल’ के लिए यह एक उपलब्धि ही हो सकती है कि उसका नाम हर बार किसी ना किसी कानून के उल्लंघन और विवाद के कारण चर्चा का विषय रहा।
आपको यह जानकार हैरानी होगी (या, हो सकती है) कि बातों और विचारों में गरीब-पिछड़ों के उद्धारक नजर आने वाले वामपंथी जिस बंगले में रहते हैं वह किसी आदिवासी की वन भूमि का गैरकानूनी अधिग्रहण और दस्तावेजों में हेर-फेर कर बनाया गया है।
कानूनन अवैध है अरुंधति रॉय का आलीशान बंगला
दिसम्बर 2010 – बुकर पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरण प्रेमी लेखिका अरुंधति रॉय के फिल्म निर्माता पति प्रदीप कृष्ण के मध्य प्रदेश पचमढ़ी में बने विवादास्पद बंगले (Dream Home) के नामांतरण को वैध ठहराने की अपील होशंगाबाद की कमिश्नर कोर्ट ने खारिज कर दी है। कोर्ट ने प्रदीप कृष्ण के साथ ही तीन अन्य बंगलों का नामांतरण भी अवैध माना था। ख़ास बात यह है कि यह भूमि उन्होंने वर्ष 1994 में किसी आदिवासी से ‘खरीदी’ थी।
अरुंधति रॉय के पति प्रदीप कृष्ण ने मध्य प्रदेश के पचमढ़ी से सात किमी दूर बारीआम गाँव में एक खूबसूरत बंगला बनवाया था। दिलचस्प बात यह है कि यह क्षेत्र पचमढ़ी वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है और केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने इसे पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत इको-संवेदी क्षेत्र घोषित कर रखा है।
इस मामले में पचमढ़ी स्पेशल एरिया डवलपमेंट अथॉरिटी ने कहा था कि अरुंधती रॉय के पति प्रदीप कृष्ण समेत चारों लोगों ने इस जमीन का लैंड यूज (भू-उपयोग) गलत तरीके से बदलवाया था। इसके बाद वन विभाग ने भी इन बंगलों को अभयारण्य क्षेत्र में होने के कारण अवैध करार दे दिया था।
क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि जल-जंगल-जमीन जैसे कर्णप्रिय ‘वामपंथी मुहावरों’ के मसीहा नजर आने वाले लोगों ने अपनी छुट्टियों का पूरा लुत्फ़ लेने के लिए आदिवासी इलाकों में वन भूमि के दस्तावेजों में हेर-फेर कर एक आलीशान बंगला बनाकर रखा है?
इसके बाद कोर्ट द्वारा इस अवैध बंगले को तोड़ने के भी आदेश जारी किए गए थे। लेकिन वामपंथी अरुंधति रॉय और उनके पति निरंतर इसके खिलाफ याचिका दायर करते नजर आए हैं, जो कि हर बार खारिज होती रही है।
हिन्दू विरोधी होने के लिए तार्किक होना पहली आवश्यकता नहीं
तारीफ़ अगर किसी चीज की कि जानी चाहिए तो वह अरुंधति रॉय जैसे सभ्यता और अधिकारों की आड़ में अपनी विषैली विचारधारा की रोटियाँ सेंकने वाले लोगों के आत्म सम्मान की! क्योंकि तमाम फर्जीवाड़ों, आडम्बरों में सर से पाँव तक घिरे होने के बावजूद ये लोग सफलतापूर्वक इस बात का दिखावा करने में सहज रहते हैं कि ये सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं।
अरुंधति रॉय अपनी सहूलियत के अनुसार ही बिल से बाहर निकलती हैं। इस बार भी वह हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर ही बाहर निकली हैं। उनका मानना है कि सरकार ने कोरोना की महामारी के द्वारा मुस्लिमों की छवि को नुकसान पहुँचाने का काम किया है, जबकि होना यह चाहिए था कि वो यह कहती कि मुस्लिमों को ऐसे काम नहीं करने चाहिए जिससे उनके समुदाय का नाम और छवि खराब होती है।
पहले भी वो राफेल को विमानवाहक पोत बताकर अपने विवेक का परिचय अपने भगत-जनों को दे चुकी हैं। यही नहीं, हिन्दू, दक्षिणपंथ और उसके समर्थकों के लिए उनके भीतर भरे हुए जहर को बाहर निकालते हुए वह अक्सर कहती देखी गई हैं कि पूर्वोत्तर में आदिवासी, कश्मीर में मुस्लिम, पंजाब में सिख और गोवा में ईसाइयों से भारतीय राज्य लड़ रहा है।
गोआ पर 450 सालों से चले आ रहे पुर्तगाली स्वामित्व के बाद 1961 में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए गोवा मुक्ति संघर्ष ऑपरेशन को इसी अरुंधति रॉय ने सवर्ण भारतीय सेना का क्रिश्चियनों के खिलाफ साजिश बताते हुए कहना था कि ऐसा लगता है जैसे यह अपरकास्ट हिंदुओं का ही स्टेट हो। अरुंधति रॉय जैसे लोग जानते हैं कि उनका विषय तबलीगी जमात या मुस्लिमों की छवि नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के प्रयासों को ढकना है। यदि वो ऐसा नहीं करते हैं तो फिर प्रश्नचिन्ह उस विलुप्त होती विचारधारा पर लग सकता है, जिसके मसीहा आज अरुंधति रॉय जैसी हस्तियाँ हैं।