जिन लोगों को इस बात से आपत्ति होती है कि समाज के बनाए नियमों में सरकार या कानून का हस्तक्षेप एक बनी-बनाई रूढ़िवादी व्यवस्था को तार-तार कर देगा, उन लोगों को कॉन्ग्रेस मंत्री सज्जन सिंह वाली सूची में शामिल हो जाने की जरूरत है। इन नेता का सवाल है कि लड़की जब 15 साल की उम्र में बच्चा पैदा करने में सक्षम हो जाती है तो फिर शादी की उम्र 21 साल की करने की क्या आवश्यकता है? कॉन्ग्रेस नेता सज्जन सिंह चाहते हैं कि विवाह की उम्र जब 18 साल तय है, तो उसे 18 ही रहने दिया जाए।
प्रगतिशील भारत की नजर से देखें तो सज्जन सिंह का बयान थोड़ा अजीब जरूर है, लेकिन हैरान करने वाला बिलकुल भी नहीं है। ऐेसा इसलिए क्योंकि सज्जन सिंह जिस पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार हैं, उस पार्टी की सोच भी हमेशा से यही रही है कि जब उन्होंने लंबे समय से देश को सामाजिक तौर पर गड्ढे में ढकेलने का काम किया तो आखिर अब उसे उभारने का प्रयास क्यों हो रहा है? इसके अलावा, यह वही राजनीतिक दल है जिसमें महिलाओं को ‘100 टका टंच माल’ की संज्ञा देने वाले दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता मौजूद हैं।
जाहिर है, जिनके लिए देश का विकास या राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले कब्ज का विषय बन जाएँ, उन्हें महिलाओं के अधिकारों या भविष्य की चिंता पर भौखलाहट क्यों नहीं होगी। महिलाओं के विषय में दोयम दर्जे की राय रखने वाले क़ॉन्ग्रेस नेता का विरोध करना आज केवल समय की बर्बादी है। इसलिए इससे बेहतर है कि हम शुक्रिया अदा करें केंद्र में बैठे एक ऐसा नेतृत्व का जो इस बात पर विमर्श को तैयार है कि आखिर लड़कियों के शादी की उम्र 18 बढ़ा दी जानी चाहिए। लेकिन साथ ही उन लड़कियों की चिंता भी करें, जिनका संबंध ऐसे नेताओं से है। सोचिए कि ऐसी सोच वाले कॉन्ग्रेसी नेता अपने घर की बहन बेटियों की शादी किस उम्र में करवाएँगे और शादी के लिए क्या मानदंड तय करेंगे?
वास्तविकता में मोदी सरकार को लड़कियों की उम्र पर चर्चा करने से ज्यादा ऐसी मानसिकता पर काम करने की जरूरत है, जिनके महिलाओं के अधिकारों की या उनके हित में की जाने वाली बात किसी हथौड़े की मार से कम नहीं होती। या जिनके लिए बदलाव का अर्थ सिर्फ़ उनके खुद के विकास व विस्तार तक ही सीमित होता है। बात जैसे ही लड़की की शादी या उसके भविष्य की आती है तो सब स्वास्थ्य विशेषज्ञ बन कर ज्ञान देने लगते हैं। वो भी ,तब जब वह जनता के प्रतिनिधि के तौर पर चुने जा चुके हों।
दूर-दराज के गाँव में बैठा कोई पिछड़े समुदाय का व्यक्ति भी आज समझाने पर इस बात को समझता है कि लड़कियों की समाज में भूमिका क्या है और क्यों सरकार उन्हें बराबरी की हिस्सेदारी दिलवाना चाहती है। लेकिन अफसोस सज्जन सिंह जैसे नेताओं के दिमाग में लड़कियों की महत्ता केवल प्रजनन तक सीमित है। उनके दिमाग में आज भी लड़की की बिंब केवल भोग वस्तु के रूप में उभरता है और शादी का मतलब केवल बच्चा पैदा करना होता है।
आज के आधुनिक दौर में जब इस बहस ने जोर पकड़ लिया है कि आखिर लड़की की शादी की सही उम्र क्या है 18 या 21? और कानूनी तौर पर अभी तक सारी बात 18 साल पर टिकी हुई है। तो मोदी सरकार इसलिए इस पर बातचीत नहीं कर रही, क्योंकि उन्हें ये मुद्दा भी राजनीति में इस्तेमाल करना है, बल्कि इसलिए कर रहे हैं ताकि उन लड़कियों के पास विस्तार की संभावनाएँ पैदा हो पाएँ, जिनके परिवार वाल कानून के डर से केवल उन्हें 18 साल तक घर में रोक कर रखते हैं और उम्र पार होते ही उनकी शादी कर देते हैं और फिर नए जीवन में कदम रखते ही वह सामाजिक, मानसिक और आर्थिक रूप से शून्य हो जाती हैं। बाद में पारिवारिक दवाब के नाम पर वह रोज खुद की इच्छाओं से समझौता करती हैं और उनके भीतर की ऊर्जा, सृजनात्मकता, तर्कशीलता सिर्फ़ घर के चार कोनों की मोहताज हो जाती है।
लड़कियों की शादी की उम्र के मुद्दे पर बहस होनी चाहिए और यही समय की माँग है। बात चाहे मानसिक दृष्टिकोण से हो या फिर सामाजिक या शारीरिक नजरिए से, इस मुद्दे पर जब तक बात होनी शुरू नहीं होगी, नहीं पता चल सकेगा कि आखिर लड़कियों का भविष्य किस समाज के हाथ में है, या कितने सज्जन सिंह जैसे नेता समाज के हितैषी बनकर लड़कियों के सुनहरे भविष्य के विरोधी बने हुए हैं।