प्राचीन लातीनी भाषा में एक कहावत है ‘दिल की सुर्ख दीवारों पे, नाम है तेरा-तेरा’। ये कहावत अर्वाचीन वामपंथने और वामपंथी छाती की बायीं तरफ टैटू बनवा के फील के साथ गुदवाए रहते हैं। वैसे इस कहावत या बात का आगे के लेख से वैसे ही कोई लेना-देना नहीं है जैसे कि वामपंथनों का स्त्री विमर्श से, और वामपंथियों का दलित विमर्श से। ऐसे ही सेस्की लग रहा था, तो बोल दिया।
तनिष्क वाला मामला शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा। पहले इन्होंने फर्जी की नौटंकी गढ़ी कि हिन्दू लड़कियों का तो बड़ा सम्मान हो रहा है मुस्लिम परिवार में, संस्कृत नाम भी रखा विज्ञापन का। उस संस्कृत शब्द का भी उस विज्ञापन से उतना ही मतलब था जितना पहले कहे गए कहावत का। इंटरनेट का दौर है, लोगों ने तहजीब की बत्ती बना कर टाटा समूह के तनिष्क को ससम्मान लौटा दी कि ‘रख लो, जहाँ उजाला नहीं होता’।
ऐसी तहजीब की बत्तियाँ ही बननी चाहिए। ऐसे समय में जबकि मुंबई में पावर कट हो रहा था, इन बत्तियों से थोड़ी रोशनी भी हो जाती। तो, जब तनिष्क के रचनात्मक कलाकारों को पता चला कि जो गेम इन्होंने खेला है, बूमरैंग कर के वहाँ धँस गया जहाँ न तो सबके सामने निकाल सकते, न छुपा सकते हैं। तब उन्होंने देर-सबेर एक ‘अपॉलजी’, यानी क्षमायाचना का बयान जारी कर दिया।
अब इस क्षमायाचना में यह समस्या है कि ये याचना कम और आरोप ज्यादा लग रहा है। ऊपर की लाइनों में तो क्षमाप्रार्थी टाइप की बातें हैं, लेकिन अंतिम पंक्ति में कह दिया कि अपने कर्मचारियों, सहयोगियों और स्टोर के स्टाफ के ‘वेल बीइंग’ को देखते हुए यह विज्ञापन हटा लिया गया है। अंग्रेजी तो इतनी मुझे आती है कि पूरा पन्ना पढ़ कर अर्थ समझ सकता हूँ, लेकिन अंतिम वाला हिस्सा समझ में नहीं आया।
वो इसलिए समझ में नहीं आया क्योंकि किसी व्यक्ति ने तो तनिष्क के किसी कर्मचारी, स्टोर स्टाफ आदि को न तो धमकी दी, न ही वैसा कोई इशारा किया। फिर तनिष्क ने ऐसा क्यों लिखा? लोगों ने तो बस ब्रांड का बहिष्कार किया था, इसमें ‘वेल बीइंग’ वाली बात कहाँ से आ गई?
थोड़ा रुकने पर यह समझ में आया कि ये लोग ऐसे नहीं मानते। अपनी गलती मानते हुए भी आरोप आप ही पर कि आगे ये लोग दंगा कर देंगे, हिंसा कर देंगे, इसलिए हमने हटाया वरना विज्ञापन में तो ऐसा कुछ है नहीं, जो नहीं समझे उन्हीं की गलती है। यह रणनीति ये गिरोह पहले भी अपना चुका है। होता कुछ है, ये लोग करते कुछ हैं, और आरोप किसी और बात का लगाया जाता है, इस आशा में कि ऐसा कुछ हो जाए।
शाम तक एक खबर आई कि गुजरात के गाँधीधाम के तनिष्क स्टोर पर एक भीड़ ने हमला कर दिया, जबरन मालिक से माफी लिखवाई और उसे स्टोर पर चिपकाने को कहा। NDTV ने इसमें अगली पंक्ति में खड़े हो कर, पूरे दृश्य को अपनी कोर्निया पर घटित होते देख कर, विस्तार से लिख दिया, चैनल पर चला दिया।
वामपंथी-वामपंथनें आहें भरने लगे कि हाय! हाय! तोड़ डाला, फोड़ा डाला… मेरी एक टाँग नकली है, मैं हॉकी का बहुत बड़ा खिलाड़ी था… इनकी स्क्रिप्ट तैयार ही थी, और जिस ‘हिंसा’ की तरफ तनिष्क की क्षमायाचना में इशारा था, NDTV ने उसको घटित होता दिखा दिया। भले ही, ये पूरी घटना उनके स्टूडियो में घटी हो।
फिर थोड़ी देर में, लोगों ने स्टोर के मैनेजर को फोन किया तो उसका वही रिएक्शन था जैसा कि गालिब का होता है जब हर टुटपुँजिया शेर उसी के नाम के साथ शेयर कर दिया जाता है: ये कब हुआ? मैनेजर ने कहा कि उसके स्टोर पर हमला भी हो गया, NDTV ने दिखा भी दिया, वीडियो भी बन गया है, लेकिन उसके पास वीडियो है नहीं। बेचारा मैनेजर कन्फ्यूज कि किसी ने उसको बताया क्यों नहीं!
बताते कैसे? जो हुआ ही नहीं, वो बताते कैसे! अब NDTV और गिरोह इस बात पर आया कि हमला नहीं हुआ, हमले की धमकी दी गई थी। फिर उसके एक एंकर हैं, जिन्होंने हो न हो, रवीशानंद इंटर कॉलेज से कॉमर्स की डिग्री ली होगी और फिर अखंड रवीशानंद महाविद्यालय से पत्रकारिता पढ़ी होगी, उन्होंने बताया कि ‘अटैक’ का मतलब होता है ‘कटु आलोचना’। लगता है NDTV वाले अपने शब्दकोश भी छापने लगे हैं, या फिर संजय राउत जी से इनकी ठीक-ठाक जान-पहचान है।
हो सकता है कि कल तक ये लोग यह भी न कहने लगें कि ‘बॉयकॉट तनिष्क’ का हैशटैग तनिष्क के कर्मचारियों को गरीब बना देगा। कई माओवंशी विचारकों ने सर्वसम्मत हो कर यह माना है कि गरीबी भी एक तरह की हिंसा ही है, (भले ही बंदूक से मारना हिंसा नहीं है), तो NDTV ने जो चलाया वो तकनीकी तैर पर बिलकुल सही है।
ऐसे में बनारसी लोग अपना एक विशेष संबोधन का प्रयोग करते हैं जो कि अंग्रेजी के बी, एस, डी और के को लगातार, बिना स्वर वर्णों के लिखने पर प्राप्त होता है। जैसे कि श्री अमिताभ बच्चन ने ‘पिंक’ में कहा था कि ‘मीलॉर्ड ‘नो’ शब्द अपने आप में एक पूरा वाक्य है, वैसे ही बनारस का उपरिलिखित शब्द, अपने आप में एक वाक्य ही नहीं, अनुच्छेद भी है अगर कहने वाले ने सही तरीके से अपनी भावनाएँ अपने टोन में प्रवाहित की हो। बिहार में ऐसे लोगों को पतितखंती कहा जाता है जो कि ‘पतित’ होने की उच्चतम अवस्था मानी गई है। इसको सड़क पर बोली जाने वाली भाषा में ‘थूक कर चाटना’, और चार दोस्तों के बीच ‘टट्टी खाना’ कह कर बताया जाता है।
वामपंथी-वामपंथनों का रोचक नृत्य
इसी संदर्भ में, फोटोशॉप से ऊपर वाले की मेहनत को नकारने वालों ने हिन्दुओं द्वारा इस विज्ञापन पर बहिष्कार पर लिखा कि जो लोग बच्चियों को गर्भ में मार देने वाले, दहेज के नाम पर जिंदा जला देने वाले, लड़की को रसोई और बिस्तर तक सीमित रखने वाले आखिर एक हिन्दू बहू को मुस्लिम परिवार में मिल रहे प्यार-सम्मान को कैसे बर्दाश्त करेंगे! साथ ही में, यह ज्ञान भी दिया कि ऐसे लोग लड़कियों की आजादी के दुश्मन हैं।
यूँ तो मैं NCRB के आँकड़े ऐसे खींच के मारता कि फोटोशॉप की आगे से जरूरत ही नहीं पड़ती टेढ़ा बनने के लिए, लेकिन तू-तू-मैं-मैं में एक मजहब की आजादियों पर एक निगाह डाल ही लेते हैं: बुर्के में रहने की आजादी से ज्यादा आजादी क्या होगी? हिजाब जैसी आजादी से बड़ी आजादी कहाँ से मिल पाएगी? हलाला करवाने की आजादी कितनी आधुनिकता लिए हुए है! चार बीवी वाली आजादी की भी बात कर लें? लड़कियों के खतना की आजादी कितनी शानदार बात है? पत्थरों से पीट-पीट कर हत्या करवाना को आजादियों में सबसे ऊपर रखने की बात चल रही है लॉ बोर्ड में। तीन तलाक की आजादी तो मैं भूल ही गया! और हाँ, एक प्रतिशत लड़कियों को ही कॉलेज पहुँचने देने की आजादी आदि तो कमाल की आजादी में आती ही है! मौलवी जी द्वारा मदरसों में छोटी बच्चियों के साथ जो आजादी दी जाती है… आजादी ही आजादी… इतनी आज़ादियाँ तो पंद्रह अगस्त को भी नहीं मिली थी!
जहाँ तक जहरवाली वामपंथनों द्वारा बताए जा रहे प्यार और सम्मान की बात है तो कुछ उदाहरण देना चाहूँगा। इस लिंक पर सिर्फ अगस्त से नवंबर 2019 के बीच हुई वो घटनाएँ हैं जो ऑपइंडिया ने रिपोर्ट की। ये संख्या कम नहीं है, न ही इतनी ही वारदातें हुई हैं। हर घटना में एक मुस्लिम है जो ‘प्यार’ करता है हिन्दू लड़की से, उसे कभी बाप के साथ सोने कहता है, कभी बाहर अकेले में बुला कर दोस्तों के साथ रेप करता है, कभी भाई से रेप करवाता है, कभी मन भर गया तो नदी किनारे ले जा कर रेप करने के बाद काट कर फेंक देता है। टिपिकल प्यार और सम्मान जो हर हिन्दू लड़की को एक मुस्लिम परिवार में मिलता है।
ये लोग पिछवाड़ा धो कर कढ़ी बनाने की तकनीक खूब इस्तेमाल करते हैं। तथ्यों की गरीबी इतनी ज्यादा है कि जितना है उसी से काम चला लो, दिखाना ही तो है। वही इन्होंने यहाँ भी करने की सोची। स्कोडा-लहसुन तहजीब का सत्य क्या है, हम सब जानते हैं। वामपंथन जानम जहरवाली लोग चाहे जो क्लेम कर लें, लेकिन वीभत्स चित्र यही है कि हिन्दू लड़की उस घर में जाती तो प्रेम के कारण है, भले ही धोखे में किया हो, लेकिन उसका अंत नदी में बहते सूटकेस में, या फिर ऐसे घरों में आजीवन बलात्कार का शिकार होने में ही होता है। ‘आजीवन’ से तात्पर्य उसके उकता जाने, या यह निर्णय लेने तक का ही है कि अब बहुत हो गया।
जैसा कि मैंने कल के एक लेख में लिखा कि इनकी नीति हिन्दू संस्कृति को सामूहिक तौर पर, और हिन्दू परिवारों को इकाई-दर-इकाई तबाह करने की है। एक-एक कॉलोनी से एक-एक महीने में दर्जन भर ‘लव जिहाद’ की घटनाएँ सामने आ रही हैं। पहले पता नहीं चलता था, अब हर जिले में यही सब चल रहा है। ईमेल और इनबॉक्स ऐसी खबरों से भरे रहते हैं कि ‘आपको यह भी छापना चाहिए।’ कितना छापें? समय खत्म हो जाएगा लेकिन इनकी नीचता और हिन्दूघृणा खत्म नहीं होगी।
तनिष्क की जहाँ तक बात है, तो हिन्दुओं को कल औकात की बात बताई गई थी। औकात तो भैया ये है कि हिन्दू स्त्रियों के पास का स्वर्णाभूषण भंडार दुनिया के कई देशों के भंडार से ज्यादा है। औकात तो ऐसा है कि हमसे लूट कर ले गए तो पचास साल तक यूरोप की इकॉनमी चलती रही। औकात तो ये है कि जिन भी ढाँचे को मुगलिया कह कर नाचते हो, वो भी हमारे ही पैसों से बना है। औकात तो ये है कि एक मंदिर का एक वॉल्ट खोल दें, तो कई पंचवर्षीय योजनाएँ निकल जाएँगी। औकात का ये है कि हर हिन्दू आश्रम, हर मध्यम और बड़ा मंदिर हर दिन करोड़ों को बिना जाति-मजहब पूछे मुफ्त भोजन कराता है। औकात तो ये है कि एक बार अगर सारे हिन्दुओं के टायर पंचर हो गए तो तुम्हारी पुश्ते खप जाएँगी पैसा गिनने में, जो हम देंगे। इसलिए औकात की बात मत किया करो पगली!
अरे टाटा वाले सिर्फ गहने थोड़े ही बेचते हैं! नमक से ले कर घड़ी, चश्मा सब बेचते हैं। जिसकी जो खरीदने की औकात है वो बंद कर देगा तो क्या होगा सोच लो। इसलिए औकात पर नहीं जाने का। भीख माँग कर बीड़ी पीने वाले, और चंदा माँग कर बीयर गटकने वाले खलिहर वामपंथी-वामपंथने औकात की बात करते हैं तो हँसने के चक्कर में नाक से पानी निकल जाता है हमारा।
एक और बात देखिए कि सुदर्शन टीवी वाले सुरेश चव्हाणके ने कल ही ट्वीट किया था कि ये वामपंथी-जिहादी समूह अपना मतलब साधने के लिए तनिष्क के स्टोर पर हमला करेगा और दोष हिन्दुओं पर मढ़ेगा। चूँकि कानून व्यवस्था अब इनके टाइप की रही नहीं तो अटैक तो नहीं हो पाया, लेकिन हाँ सुनियोजित षड्यंत्र के तहत अटैक की खबरें अवश्य चलाई गईं।
अब इनकी पूरी रणनीति का हर चरण लोगों को पहले से पता रहता है क्योंकि यही खेल ये लोग दशकों से खेलते रहे। तुम्हीं साबरमती एक्सप्रेस में आग लगा कर 59 हिन्दुओं को भी जलाओ और फिर फर्जी खबरें छापो कि गर्भवती महिला के पेट से बच्चा निकाल कर मार दिया! याद है कि भूल गए ऐसी खबरें? मस्जिद के छत पर पत्थर भी यही लोग रखें, फैसल फारूख के छत से आग, एसिड और बंदूकें चलें, ताहिर हुसैन के छत क लॉन्चपैड भी बनाया जाए, शरजील-खालिद-सफूरा जैसे लोग राष्ट्ररोधी बयान भी दें, और उल्टे यह भी कहा जाए कि ये तो भाई मुस्लिम पोगरोम हो रिया है!
नहीं चलेगा ये सब। बहुत लम्बा चल गया तुम लोगों का। हम उसी को बंद करने आए हैं। ताला नहीं मारेंगे, सीमेंट से पूरा घर ही जाम कर देंगे।
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