वाराणसी के विवादित ज्ञानवापी ढाँचा (Gyanvapi Controversial Structure, Varanasi) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित पूजास्थल कानून-1991 पर शुक्रवार (20 मई 2022) को टिप्पणी की। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी स्थान के धार्मिक चरित्र के निर्धारण को पूजास्थल अधिनियम-1991 (Places of Worship Act 1991) प्रतिबंधित नहीं कर सकता।
वहीं, शाही ईदगाह ढाँचे और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर (Shahi Idgah Mosque – Shri Krishna Janmbhoomi Temple) मामले में हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार करते हुए मथुरा की कोर्ट ने भी कहा कि इसकी सुनवाई में पूजास्थल अधिनियम-1991 बाधा नहीं है।
हालाँकि, दोनों ही मामलों में कोर्ट स्वीकार किया है कि यह कानून सुनवाई में बाधा नहीं बन सकता, लेकिन तकनीकी तौर यह अधिनियम भारतीय कानून का हिस्सा है और विभिन्न परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट अपने विवेक के आधार पर इसका प्रयोग कर सकता है। ऐसे में यह कानून रहने के बावजूद उपरोक्त दोनों मामलों में हिंदुओं का पक्ष कितना मजबूत है, इस पर चर्चा करेंगे।
हम पहले ही बता चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पूजास्थल अधिनियम-1991 को असंवैधानिक बताया और कहा कि ऐसा कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है ही नहीं। उन्होंने कहा कि अवैध काम को वैध ठहराने के लिए सरकार कानून नहीं बना सकती। इस कानून द्वारा हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों को उनके धार्मिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों को सीमित कर दिया गया है। इसके साथ ही उन्होंने इस कानून पर न्यायपालिका पर चोट बताया है।
भाजपा तो इस कानून का शुरू से विरोध करती रही है। कॉन्ग्रेस की सरकार द्वारा इस बिल को पेश करने के दौरान ही बहस में तत्कालीन भाजपा सांसद उमा भारती (Uma Bharti) ने इसे महाभारत के ‘द्रौपदी का चीरहरण’ कहा था। भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Adawani) ने कहा था कि इस कानून से जिन स्थानों पर तनाव नहीं है, वहाँ भी दोनों समुदायों में तनाव बढ़ेगा।
साबित करना होगा कि ज्ञानवापी और ईदगाह इस्लामिक लॉ के तहत मस्जिद है
ऑपइंडिया से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय मथुरा, काशी, भद्रकाली, भोजशाला जैसे विवादों में कानूनन हिंदुओं के पक्ष को मजबूत बताया और कहा कि इसके प्रमाण इन जगहों पर उपलब्ध हैं। ये प्रमाण हिंदुओं के पक्ष को मजबूत करते हैं।
एडवोकेट उपाध्याय ने बताया, “ये सब स्थान मस्जिद नहीं हैं। इन्हें मस्जिद साबित करने के लिए सबसे पहले इस्लामिक लॉ से इन्हें प्रूव करना पड़ेगा। ये मंदिर हैं या नहीं है, इसे हिंदू लॉ से प्रूव करना है। कोई भी स्थान ऐसा नहीं हो सकता कि वह मंदिर भी हो और मस्जिद भी। वह या तो मंदिर होगा या मस्जिद। अगर यह मस्जिद है तो आपको (मुस्लिम पक्ष को) कुछ बातें साबित करनी पड़ेंगी।”
इस्लामिक कानून के तहत मस्जिद बनाने के लिए आवश्यक शर्त की बात करते हुए उन्होंने कहा, “मस्जिद बनाने के लिए सबसे पहले यह साबित करना होगा कि ये यह जमीन मेरी है या हमने इसे किसी से खरीदा या फिर किसी ने अपनी इच्छा (बिना डर-भय, लालच के) से इसे दान किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात साबित करना होगा कि वहाँ पहले कोई स्ट्रक्चर नहीं था। इस्लामिक लॉ में मस्जिद के लिए यह पहली कंडीशन होती है। धार्मिक स्ट्रक्चर तो होना ही नहीं चाहिए।”
इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने आगे बताया, “अगर मकान, दलान, दुकान आदि कोई घरेलू ढाँचा है और वहाँ मस्जिद बनाना चाहते हैं…. मान लीजिए हमारे पास एक दुकान है और हम उसे अब नहीं चलाना चाहते और वहाँ एक मस्जिद बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले उस दुकान की एक-एक ईंट उखाड़नी पड़ेगी। इस्लामिक लॉ कहता है कि नींव में पहले के ढाँचे का एक ईंट भी नहीं होनी चाहिए। पहली ईंट जो लगनी चाहिए, वो मस्जिद के नाम की लगनी चाहिए।”
हिंदू कानून और इस्लामिक कानून के बीच फर्क का जिक्र करते हुए एडवोकेट उपाध्याय ने कहा कि मंदिरों में पहले मंदिर बन जाता है फिर नामकरण होता है, जबकि मस्जिदों में पहले नामकरण होता है फिर मस्जिद बनती है। इस्लामिक लॉ के तहत मस्जिद का जो नाम रख दिया जाता है, उसी के नाम की पहली ईंट मस्जिद निर्माण की नींव में रखी जाती है।
औरंगजेब और इतिहास को झूठा साबित करना होगा
अश्विनी उपाध्याय ने ज्ञानवापी मामले को लेकर ऑपइंडिया से कहा, “आप (मुस्लिम) कहते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद है तो आपको सबसे पहले औरंगजेब को झूठा साबित करना पड़ेगा। जो उसके इतिहासकार हैं, उनको झूठा साबित करना पड़ेगा। उसके ये भी साबित करना पड़ेगा कि फलाने आदमी ने जमीन दान किया या उससे खरीदा। यह भी साबित करना पड़ेगा कि फलाने बादशाह ने इस मस्जिद की पहली ईंट रखी थी यहाँ पर।”
ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष ने 20 मई को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि इतिहासकार इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस्लामी शासक औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें उसके प्रशासन को वाराणसी में स्थित भगवान आदि विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था। आदि विश्वेश्वर के मंदिर पर 1193 ईस्वी से 1669 ईस्वी तक हमला किया गया, लूटा गया और ध्वस्त किया गया।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि औरंगजेब ने अपने फरमान में और मुगल इतिहासकारों के रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि औरंगजेब या उसके बाद के शासकों ने विवादित भूमि पर वक्फ बनाने या किसी मुस्लिम या मुस्लिम निकाय को जमीन सौंपने का आदेश दिया था। हिंदू पक्ष की ओर कोर्ट में शामिल अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने याचिका में अदालत को बताया कि फरमान की कॉपी कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी रखे होनी की जानकारी मिली है।
हिंदू देवता की एक बार जमीन, हमेशा के लिए उनकी जमीन
अश्विनी उपाध्याय ने कहा, “हिंदू लॉ कहता है कि एक बार वहाँ भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा कर दिया, उसके बाद उसकी दीवार तोड़ दीजिए, गुंबद उड़ा दीजिए, नमाज पढ़िए चाहे उसकी नींव की एक-एक ईंट उखाड़ दीजिए वह मंदिर ही रहेगा। एक बार मंदिर हो गया तो वह किसी भी रूप में हमेशा मंदिर ही रहेगा। जब तक वहाँ से मूर्ति का विसर्जन नहीं होगा, तब तक वह मंदिर ही कहलाएगा।”
हिंदू पक्ष ने कहा कि मस्जिद सिर्फ वक्फ या मुस्लिम की जमीन पर बनाई जा सकती है। इस मामले में मंदिर की भूमि और संपत्ति अनादि काल से देवता की है। इसके साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि किसी मुस्लिम शासक या किसी मुस्लिम के आदेश के तहत मंदिर की भूमि पर किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं माना जा सकता है।
ज्ञानवापी विवादित परिसर में अभी भी भगवान की पूजा होती है और श्रद्धालुओं द्वारा पंचकोशी परिक्रमा की जाती है। हिंदू कानून भी कहता है कि देवता की भूमि हमेशा देवता के नाम पर रहती है। विदेशी शासन आने के बाद भी देवता का अधिकार खत्म नहीं होता।
अगर विवादित स्थानों पर वर्तमान कानून, इस्लामिक कानून, हिंदू कानून और संविधान के अनुच्छेदों में प्रदत्त अधिकारों के उल्लंघन पर गौर करें तो स्पष्ट है कि इन मामलों में हिंदुओं का पक्ष मजबूत है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जिन-जिन स्थानों को विवादित माना जा रहा है, वहाँ हिंदू देवताओं एवं प्रतीकों के निशान आज भी मौजूद हैं।