Saturday, April 20, 2024
Homeबड़ी ख़बरमोदी... वाजपेयी नहीं हैं - मर्यादा की LoC और आधी रात घर में घुसकर...

मोदी… वाजपेयी नहीं हैं – मर्यादा की LoC और आधी रात घर में घुसकर मारने वाले में अंतर है

अभी का जो पीएम है, वह बहुत ही बदमिजाज है और ठेठ है। उसे नेहरू की अंग्रेजियत, गुलाबियत, बौद्धिकता और गुटनिरपेक्षता जैसे ढकोसले कतई आकर्षित नहीं करते, बल्कि अगर भारत के 70 साल के इतिहास में किसी पीएम ने नेहरूवाद को जूते की नोंक पर रखा है तो वह मोदी ही है।

कुछ परम आशावादी लोग, अभी भी यह मानने को राजी नहीं हैं कि मोदी ही आएगा। बेशक उनके पास कोई विकल्प नहीं हैं, लेकिन उनके भीतर ‘चमत्कार’ की जो एक विशेष ग्रंथि है, वह उन्हें इस बात का लगातार यकीन दिला रही है कि बेशक काला कौवा पीएम बन जावेगो लेकिन मोदी तो गयो।

चूँकि मैं ऐसे चमत्कारों और ग्रंथियों का पुराना सर्जन हूँ तो बता सकता हूँ कि मोदी विरोधियों के इस ‘यकीन’ के पीछे का राज क्या है! दरअसल… यह जो उड़नछल्ले हैं, वे अपने भरोसे की जीत के पीछे वर्ष 2004 के चुनावों में बीजेपी की असफल ‘शाइनिंग इंडिया’ थ्योरी को देख रहे हैं।

जब वाजपेयी सरकार और उनके राजनैतिक मैनेजरों को भरोसा था कि उन्होंने इतना विकास कर दिया है कि गाँव से लेकर शहर तक चमक रहा है और चुनावों में वे फिर से सरकार बनाने जा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कि वाजपेयी सरकार ने विकास के हर पैमाने पर काम किया था, अटल जी की वापसी नहीं हो सकी।

तो पनामा की बिना फ़िल्टर वाली सिगरेट के धुएँ से निकले उड़नछल्लो, इतना जान लो कि वह साल दूसरा था, यह साल दूसरा है। वह जमाना दूसरा था, यह मिजाज दूसरा है।

क्या तुम जानते हो कि उस हारी हुए बीजेपी नीत राजग सरकार के दौरान भाजपा का अध्यक्ष कौन था? लेकिन अभी का तो पता ही है न कौन है… जो तड़ीपार भी रहा है और जेल में भी रहा है, सुनने में तो यह भी आता है कि वह (पॉलिटिकल) एनकाउंटर स्पेशलिस्ट भी है।

जब वाजपेयी सरकार गई तो उस वक्त अटल जी का घुटनों का ऑपरेशन हो चुका था, वे ठीक से चल भी नहीं पाते थे, उनको प्राइममिनिस्टरशिप जीवन के ऐसे कालखंड में मिली जब उनका शरीर लगभग निढाल हो चुका था, वे अपने रोजमर्रा के कार्यों के लिए ही नहीं बल्कि राजनीतिक निर्णयों के लिए भी आडवाणी, प्रमोद महाजन, जॉर्ज फर्नांडीज जैसे सहयोगियों पर निर्भर हो चुके थे।

लेकिन अभी का जो नेता है उसका दिल, दिमाग और घुटना एकदम ठीक और ठिकाने पर हैं, और यही वजह है कि वह हवाई जहाज की खड़ी सीढ़ियों को भी दौड़ते हुए चढ़ जाता है।

अटल जी, भौतिक रूप से बेशक भाजपाई और संघी थे, लेकिन अंतरात्मा से प्योर नेहरूवियन ही थे, क्योंकि उन्होंने अपनी राजनीति का ककहरा नेहरु के दौर में ही सीखा था, और उनके व्यक्तित्व पर नेहरु के उस आशीर्वाद की छाप और कृतज्ञता भी सदैव रही, जब नेहरू ने संसद में युवा अटल के एक दिन देश का पीएम बनने की बात कही थी।

लेकिन अभी का जो पीएम है, वह बहुत ही बदमिजाज है और ठेठ है। उसे नेहरू की अंग्रेजियत, गुलाबियत, बौद्धिकता और गुटनिरपेक्षता जैसे ढकोसले कतई आकर्षित नहीं करते, बल्कि अगर भारत के 70 साल के इतिहास में किसी पीएम ने नेहरूवाद को जूते की नोंक पर रखा है तो वह मोदी ही है।

वाजपेयी जहाँ कवि, लेखक, पत्रकार, चिंतक, विचारक और पारिवारिक टाइप व्यक्ति थे, वहीं मोदी इन सबके उलट एक उत्कृष्ट दर्जे के ट्रोलर हैं। वाजपेयी जहाँ भाषा की मर्यादा के पीछे संसद और बाहर घंटों बोल सकते थे, वहीं मोदी अपनी बात ’50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’ से शुरू करते हैं तो शहजादे, मैडम सोनिया और इटली वाले मामा पर खत्म करते हैं।

वाजपेयी सरकार का जब पतन हुआ तो उस समय सोनिया गाँधी लोगों के लिए एक तुरुप का पत्ता थीं, जिनका चलना बाकी था और लोगों ने सोनिया गाँधी वाली कॉन्ग्रेस पर दाँव लगा दिया था। आज जब मोदी फिर से पीएम पद के इम्तिहान में बैठने वाले हैं तब सोनिया ही नहीं बल्कि इटली की पूरी बटालियन खत्म हो चुकी बाजी और फुँक चुका ट्रांसफार्मर है।

अटल जी को जब उनके विकास कार्यों के लिए ‘पुरस्कृत’ करके देश की जनता ने दिल्ली की सत्ता से बेदखल किया तब कॉन्ग्रेस ही नहीं बल्कि तीसरा मोर्चा भी वैकल्पिक राजनीति का एक मजबूत आधार था, जहाँ कई दिग्गज, क्षत्रप और कद्दावर नेता गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेसी सरकार को साकार करने की स्थिति में थे। लेकिन आज तीसरे मोर्चे के नाम पर विरासत की राजनीति के पापा’ज़ बॉय तेजस्वी, अखिलेश, जयंत चौधरी और खुर्राट ममता बनर्जी तथा कहीं की न रहीं मायावती ही बची हुई हैं।

इसलिए ‘शाइनिंग इंडिया अस्त्र’ से मोदी के राजनीतिक जीवन का खात्मा देखने वालों को इस खुशफहमी से बाहर आ जाना चाहिए। आपको पता है उत्तर प्रदेश में हाथ से निकल चुके अपना दल को कौन वापस लेकर आया है? उत्तर प्रदेश भाजपा के सह-प्रभारी गोर्धन झडफिया, जो बीते कई वर्षों से मोदी और अमित शाह के एंटी रहे, लेकिन मोदी जी उनको वापस ले कर आए कि आप काम करो, और पूरी आजादी के साथ करो। पूर्वोत्तर में एनआरसी के मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डाल कर असम गण परिषद् सहित अन्य क्षेत्रीय दल फिर से बीजेपी के साथ जुड़ चुके हैं।

जिन संजय जोशी के सहारे बीजेपी के भीतर और बाहर, लोग मोदी विरोध की राजनीति करते थे, मोदी ने उनको भी इन चुनावों में काम पर लगा दिया है और इसलिए जितनी भीड़ इन दिनों भाजपा मुख्यालय में दिखती है उतनी ही भीड़ संजय जोशी के घर पर भी होने लगी है।

बात को लम्बा खींचने से कोई मतलब नहीं हैं जबकि लब्बोलुआब यही है कि मोदी….वाजपेयी नहीं हैं। वाजपेयी जहाँ क्रिएटिव थे वहीं मोदी डिस्ट्रक्टिव हैं, बेशक इसके मतलब कुछ भी निकालते रहिये। वाजपेयी मर्यादा की एलओसी थे, वहीं मोदी आधी रात को घर में घुस कर मारने में यकीन रखते हैं। इसलिए पहले 56 इंच और अब चौकीदार के नाम से रंग-बिरंगे लेख लिखने वालों को मेरी यही सलाह है कि काम बेशक यही करो लेकिन पेस धीमा कर लो, क्योंकि अगले पाँच साल भी यही करना है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘शहजादे को वायनाड में भी दिख रहा संकट, मतदान बाद तलाशेंगे सुरक्षित सीट’: महाराष्ट्र में PM मोदी ने पूछा- CAA न होता तो हमारे...

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि राहुल गाँधी 26 अप्रैल की वोटिंग का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद उनके लिए नई सुरक्षित सीट खोजी जाएगी।

पिता कह रहे ‘लव जिहाद’ फिर भी ख़ारिज कर रही कॉन्ग्रेस सरकार: फयाज की करतूत CM सिद्धारमैया के लिए ‘निजी वजह’, मारी गई लड़की...

पीड़िता के पिता और कॉन्ग्रेस नेता ने भी इसे लव जिहाद बताया है और लोगों से अपने बच्चों को लेकर सावधान रहने की अपील की है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe