Saturday, July 27, 2024
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चुनाव के समय में पत्रलेखन: प्रचार, आचार, चाटुकार और पत्राचार का फलता फूलता व्यवसाय

विरोधी इसे पत्रलेखक की विफलता मानेंगे किंतु यह पत्र की सफलता ही थी कि संभावित प्रेमिका भाषा से लेखक पहचान गई और प्रेम में परित्यक्त होकर रामू जी को माता पिता का आज्ञाकारी, होनहार पुत्र होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भिन्न गुट, समूह और संगठनों से निवेदन है कि लेखक की इस प्रतिभा का संज्ञान लें।

चुनाव प्रारंभ हो चुके हैं। प्रचार, आचार, चाटुकार और पत्राचार का माहौल खिंचा हुआ है। सोशल मीडिया के ज़माने में पत्र लिखने का दौर चल रहा है। भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रत्याशी नामांकित हो चुके हैं। अभिनय में विफल अभिनेता-अभिनेत्रियाँ, अभिनय में सफल नेता-नेत्रियाँ दस्ताने पहन कर, हँसिया उठा कर मैदान में उतर चुके हैं। हम भी सोच रहे थे खड़े हो जाएँ और कोई बिठाने को आए तो उचित मूल्य पर तुरंत बैठ जाएँ। किंतु जैसा कि शरद जोशी जी के समय से व्यंग्यकारों के साथ होता रहा है, पुरस्कार के समय अपना नाम घोषित होने पर भी निरीह व्यंग्यकार आशंकित सा यहाँ-वहाँ तकता रहता है।

एक व्यंग्यकार अपनी महत्वहीनता को लेकर पूर्णतया निश्चिंत रहता है, और सम्मानित करने का हल्का सा भी प्रयास उसे स्वयं के और सम्मानित करने के वाले के प्रति आशंकित कर देता है। बहरहाल इसी उहापोह में ना हम खड़े हुए ना ही आआपा के कुमार विश्वास। जिस देश में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर विजयी नेत्राणियों के पति ठसक से प्रधान पति की नामपट्टिका स्कॉर्पियो पर लगा कर घूमते हैं, वहाँ हमने और डॉक्टर साहब दोनों ने सांसद बनने का स्वर्णिम अवसर जाने दिया, जिसके कारण हमें विश्वास है कि हमारा और विश्वास साहब का नाम देश के महान बलिदानियों की सूची मे भगवंत मान जी के बाद अवश्य सम्मिलित होगा।

किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि अब चुनाव में हमारा योगदान स्याही लगी अँगुली के आगे कुछ नहीं रहा है। आधुनिक चुनाव के तीन स्तंभ, आचार, प्रचार और चाटुकार तो अपने स्वभाव के लिए व्यंग्यकार होने के नाते कठिन है। एक व्यंग्यकार पर आचार की शिष्टता, प्रचार के प्रभावी होने और कुशल चाटुकारिता के लिए निर्भर नहीं हुआ जा सकता है। पार्टी प्रवक्ता बनने में भी दो समस्याएँ थीं कि अव्वल तो व्यंग्यकार को कोई गंभीरता से नहीं लेता, दूसरे स्टूडियो की हिंसा के लिए इस लेखक की आयु उपयुक्त नहीं है। जो लोग ईवीएम पूर्व भारत में बूथ कैप्चरिंग जैसे वीर-सुलभ कार्य करते थे वे अब प्रवक्ता हो गए हैं और इस आयु में ऐसा ख़तरनाक व्यवसाय उचित नहीं होगा। किंतु जैसा हर विफल व्यक्ति को उत्साहित करने के लिए परंपरागत रूप से कहा जाता है, एक द्वार बंद होता है तो ऊपरवाला दूसरा द्वार खोलता है। इसी प्रक्रिया में प्रभु ने ऐसा मार्ग खोला है जो इस लेखक के स्तर, सामर्थ्य और औकात के अनुरूप है।

अचानक ही मेघदूतम के यक्ष की आत्मा समस्त देशवासियों के हृदय में उतर आई है। सब लोग एक दूसरे को पत्र लिख रहे हैं। सौ लोग एक दल को वोट देने से मना करते हैं तो दो सौ वोट देने के लिए लिखते हैं। परसाईं जी बुद्धिजीवियों के विषय में लिखते हैं कि बुद्धिजीवी हवा में उड़ते हैं, पर जब ज़मीन पर सोते हैं, तो टांगें ऊपर करके– इस विश्वास और दंभ के साथ, कि आसमान गिरेगा तो पाँवों पर थाम लूंगा। सो बुद्धिजीवी एक दूसरे को पत्र लिख कर आकाश को गिरने से रोककर उसी प्रकार आश्वस्त हैं जैसे नेहरू जी अंग्रेजी में ट्रिस्ट विद मिडनाईट का भाषण दे कर हो गए थे और भारतीय पत्नियाँ पतियों को आदर्श पुरूष होने का आदेश दे कर संतुष्ट हो जाती हैं। अब सेवानिवृत्त सैनिकों ने भी कथित रूप से राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। वरिष्ठ अफ़सरों ने इस पत्र को झूठा बताया है।

अपने को उससे मतलब नहीं है। अपना उद्देश्य मूलतः व्यावसायिक हैं। सनद रहे कि लेखक कुशल पत्रलेखक है। युवावस्था मे लेखक के मित्र रहे थे, जिन्हें प्यार करने वाले और उधार देने वाले स्नेहपूर्वक रामू कह कर पुकारते थे। लेखन और धज मे राग दरबारी के रूप्पन बाबू से प्रभावित मित्र रामू लेखक की पत्रलेखन की अंतर्निहित प्रतिभा के साक्षी रहे हैं। जब उन्होंने इंजीनियरिंग के दिनों में संभावित प्रेमिका को प्रेमपत्र लिखवाया था, लेखक ने पत्र को थोड़ा सरल करने का सुझाव दिया था। किंतु साहित्य प्रेमी रामू ने सुझाव नकार कर, अपने हृदय पर दो बार मुक्का मार कर कहा, “नहीं भाई, भारी ही रखो, यहाँ पर लगना चाहिए।” कन्या ने पत्र पढ़ते ही कुशल समीक्षक की भाँति आपके प्रिय लेखक को अपराधी घोषित किया। उस पत्र के परिणामस्वरूप रामू तत्परता से कन्या के भ्राता नियुक्त हुए और कालांतर में उस कन्या के विवाह में बारातियों पर इत्र छिड़कते देखे गए।

विरोधी इसे पत्रलेखक की विफलता मानेंगे किंतु यह पत्र की सफलता ही थी कि संभावित प्रेमिका भाषा से लेखक पहचान गई और प्रेम में परित्यक्त होकर रामू जी को माता पिता का आज्ञाकारी, होनहार पुत्र होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भिन्न गुट, समूह और संगठनों से निवेदन है कि लेखक की इस प्रतिभा का संज्ञान लें। सेना ने, कलाकारों ने पत्र और प्रतिपत्र लिख कर भूमिका बना दी हैं। अब समय आ गया है कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम सड़कों के राजनीतिकरण के विरोध में, सड़क मज़दूर संगठन अधिनियम के विरोध में, पेट्रोलियम संस्थान उज्जवला योजना के राजनीतिकरण के विरोध में, भारतीय रेलवे रेल आधुनिकीकरण के राजनीतिकरण के विरोध में पत्र लिखे। मेरा निवेदन यह है कि यहाँ प्रभावशाली पत्र उचित मूल्य पर लिखे जाते हैं। भारत की तमाम टिटिहरियों से निवेदन है कि लेखक के पत्रों की सहायता रियायती मूल्यों पर प्राप्त कर के इस चुनाव मे आसमान को गिरने से रोकें। वर्तमान पीढ़ी का कर्तव्य है कि पत्रलेखन द्वारा राष्ट्र रक्षा के इस पुनीत प्रयास को बल दें और बेरोज़गार लेखकों को धनार्जन का अवसर दें।

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Saket Suryesh
Saket Suryeshhttp://www.saketsuryesh.net
A technology worker, writer and poet, and a concerned Indian. Writer, Columnist, Satirist. Published Author of Collection of Hindi Short-stories 'Ek Swar, Sahasra Pratidhwaniyaan' and English translation of Autobiography of Noted Freedom Fighter, Ram Prasad Bismil, The Revolutionary. Interested in Current Affairs, Politics and History of Bharat.

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