किसी बीमारी से उबरना जितनी बड़ा आशीर्वाद है उतना ही कठिन है स्वास्थ्य सेवाओं का सुचारू रूप से चलना। अस्पताल, दवाओं और बुनियादी ढाँचों की जरूरत के साथ लोगों के लिए उनका आसानी से मुहैया होने जरूरी होता है। देश में कोई भी आपातकाल आने पर सबसे पहले स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ होने की दरकार होती है। मोदी सरकार के पिछले 11 वर्षों में स्वास्थ्य के पहलू पर ये दरकार सफल होती नजर आई है।
2014 से पहले की स्वास्थ्य क्षेत्र में लगभग हर कदम पर एक नई समस्या से जूझना पड़ रहा था। बीमारी के इलाज के लिए जितने खर्चे हो रहे थे, उससे भी कहीं अधिक मुश्किल था हर वर्ग का उस इलाज तक पहुँच पाना।
इसके अलावा डॉक्टरों की कमी, अधिक लागत और लोगों की पहुँच न हो पाना स्वास्थ्य के नजरिए से काफी बड़े मुद्दे रहे। स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी खर्चे GDP का महज 0.9 से 1.2 फीसद ही था। इसके कारण विश्व बैंक ने भी भारत को 191 देशों में 184वें स्थान पर रखा।
2014 में मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद हेल्थकेयर के मोर्चे पर अपनी मजबूत भागीदारी निभाई। स्वास्थ्य नीतियों में कई बदलाव किए गए। बुनियादी खामियों को कम करने का काम किया गया। आयुष्मान भारत, डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, टेलीमेडिसिन और संस्थाओं के विस्तार जैसी कई शुरुआतों ने हेल्थकेयर के पैमानों पर बढ़त दर्ज की।
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) ने 50 करोड़ से अधिक भारतीयों को ₹5 लाख तक का वार्षिक स्वास्थ्य बीमा कवरेज दिया। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) ने डिजिटल तौर पर स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे की शुरुआत की, जिससे स्वास्थ्य आईडी, टेली-परामर्श, AI-आधारित निदान, और डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रबंधन संभव हुआ। इसके कारण लोगों को बेहतर इलाज मिलना शुरू हुआ।
Over the past 11 years, India has witnessed an unprecedented digital revolution under the visionary leadership of Hon'ble Prime Minister Shri @narendramodi ji. This transformation has not only connected millions but also bridged the digital divide, ensuring that technology… pic.twitter.com/4Ep93Ks6DG
— Jagat Prakash Nadda (@JPNadda) June 12, 2025
स्वास्थ्य सेवाओं में क्या थी चुनौतियाँ
11 वर्ष पहले तक ज्यादातर स्वास्थ्य सेवाएँ कागजों तक सीमित थी। डिजिटल नेटवर्क का कोई ओर-छोर नहीं था। सरकारी अस्पतालों में मरीजों की जानकारी को दर्ज करने के लिए कोई केंद्रीकृत विकल्प नहीं था। इसके कारण स्वास्थ्य सेवाओं का समन्वय मुश्किल था। मोदी सरकार में इसकी शुरुआत होने से केंद्रीकृत डैशबोर्ड, बीमा लॉग, राष्ट्रीय रोग रजिस्टर या टीकाकरण ट्रैकर की जानकारी सुनिश्चित हुई।
गाँवों में तो बुनियादी चिकित्सा व्यवस्था ही ध्वस्त थी। लगभग तीन-चौथाई डॉक्टर शहरों में बसे थे। इसके चलते गाँवों में इलाज के लिए कई संघर्ष करने पड़ते थे। कई जिलों में 75 फीसद इलाज झोलाछाप डॉक्टर ही करते थे। जब मरीज की हालत बिगड़ने लगती तो शहरों में रेफर कर दिया जाता था।
अब शहर में इलाज की बात की जाए तो सरकारी तंत्र में जहाँ इलाज की कमी थी तो वहीं निजी अस्पताल में भीड़ के साथ खर्च भी अधिक था। आँकड़ों के अनुसार, हर 10,000 लोगों पर केवल 12 प्रशिक्षित डॉक्टर उपलब्ध थे। इस लिहाज से चिकित्सा व्यवस्था के एजेंडे पर लोगों को सेवा मिलना लगभग मुश्किल था। ये आँकड़े WHO के मानकों के आधे भी नहीं थे।
2010 के आस पास के आँकड़े कहते हैं कि महज दो तिहाई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) ही रोजाना खुलते थे। इसके अलावा एक-तिहाई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) में जरूरी स्टाफ, डॉक्टर और नर्स की कमी थी। PHC में जरूरी सुविधाओं जैसे टीके, ग्लूकोज़ स्ट्रिप्स और साफ सुईओं की भी आपूर्ति पूरी नहीं थी।
2014 से पहले हेल्थकेयर के मामले पर बुनियादी ढाँचा काफी कमजोर रहा। उसका कारण बजट में कमी नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सरकार की उपेक्षा थी। इसका एक कारण ये था कि स्वास्थ्य सेवाओं को ‘राज्यों का विषय’ कहा गया। इससे केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचती नजर आती थी। इसकी वजह से स्वास्थ्य सेवाओं में न केवल पक्षपात हुआ, बल्कि राज्यों के बीच बजट और इलाज के लिए भी कई असामनता देखी गई। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी से स्वास्थ्य व्यवस्था बिगड़ती चली गई।
सुविधाओं से लैस हुआ हेल्थकेयर
मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद देश भर में स्वास्थ्य प्रणाली को एकमुश्त और बेहतर करने के लिहाज से डिजिटल करने की शुरुआत की गई। 2018 में भारत सरकार ने आयुष्मान भारत योजना शुरु की। इसमें दो महत्वपूर्ण पहल थे- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) और स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs)। इन सेवाओं ने भारत के स्वास्थ्य सेवा के ढाँचे को पूरी तरह से बदल दिया।

वर्तमान में PM-JAY दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य बीमा प्रणाली बन गई है। ₹5 लाख तक की वार्षिक कवरेज में ये गरीब और कमजोर वर्ग के लिए वरदान सिद्ध हुई। गंभीर और असाध्य बिमारियों में ये योजना उनका सहारा बनी। अब तक लगभग 42 करोड़ से अधिक भारतीयों का स्वास्थ्य कार्ड बन चुका है।
इस योजना के तहत कैंसर जैसे गंभीर मर्ज के लिए भी इलाज शामिल किया गया और इसके लिए भी देश भर के हजारों सरकारी और निजी अस्पतालों का एक विस्तृत नेटवर्क तैयार किया गया। इससे जो लोग पहले अस्पतालों की भारी खर्च के कारण इलाज से घबराते थे, वे PM-JAY के तहत समुचित इलाज पाने में सफल हुए।
इसके अलावा स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs) ने भारत की पुरानी और कमजोर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को दोबारा मजबूत किया। इन केंद्रों ने रोजमर्रा की बीमारियों, उनके इलाज, दवाइयों, मातृ एवं शिशु देखभाल और रेफरल नेटवर्क की निःशुल्क सेवाएँ दी गईं।
2025 तक 1.7 लाख से अधिक HWCs को शुरू किया गया। इनमें से कई आदिवासी और दूरस्थ क्षेत्रों में भी स्थापित हुए। ये ऐसे क्षेत्र रहे जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच बेहद सीमित थी।
आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन से स्वास्थ्य सेवाओं में आई तेजी
इसके लिए 2021 में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) लॉन्च किया गया। इसके जरिए हर एक व्यक्ति की हेल्थ आईडी बनाने की सुविधा दी गई ताकि स्वास्थ्य से जुड़ी हर जानकारी एक ही जगह पर सुरक्षित रहे। इसके कारण एक जगह से दूसरी जगह जाने पर बीमारी के साथ-साथ इलाज से जुड़ी हर एक छोटी से छोटी बात को भी समझना आसान हो गया।
इसके अलावा नई जाँच प्रयोगशालाएँ, अस्पताल, क्लिनिक, फार्मेसी आदि का राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क तैयार किया गया। इसमें टेलीमेडिसिन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित इलाज और रेफरल प्रक्रियाएँ सुगम हुईं।
आँकड़ों की मानें तो ABDM से 55 करोड़ से भी अधिक लोगों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड एकमुश्त हुए हैं और 6.4 लाख चिकित्सकों और हेल्थ केयर वर्कर्स को एक मंच पर लाया जा सका है।
स्वास्थ्य सेवाओं में बजट की बात करें तो 2013-14 में जो बजट 37,000 करोड़ रुपए था, वह 2023-24 में 89,000 करोड़ रुपए तक पहुँच गया। 2025-26 में ये बजट 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुँचा। इसके साथ ही कई नए मेडिकल कॉलेज बनाए गए और डॉक्टरों की संख्या में इजाफा हुआ।
बिहार, छत्तीसगढ़ और असम जैसे दूरदराज के राज्यों में भी एम्स स्थापित किया गया ताकि स्वास्थ्य सेवाओं से दूर रह रही जनसंख्या को भी गंभीर बीमारियों के लिए बेहतर इलाज मिल सके।
टेलीमेडिसिन से बेहतर हुई चिकित्सा व्यवस्था
डिजिटलाइजेशन के चलते ग्रामीण और दुरुस्त क्षेत्र में रहने वाले मरीजों के लिए टेलीमेडिसिन जैसी सुविधा बेहद कारगर सिद्ध हुई। ABDM के प्लेटफार्म से हेल्थकेयर में भ्रष्टाचार की आशंकाओं को भी काफी हद तक कम किया गया।
कोविड-19 महामारी के दौरान, जब लोगों का घरों से निकलना मुश्किल था, उस समय ई-संजीवनी प्लेटफार्म के जरिए टेलीमेडिसिन की शुरुआत की गई। इसमें 10 करोड़ से भी अधिक लोगों को ऑनलाइन परामर्श दिया गया। यहाँ तक कि शहर में बैठे डॉक्टरों ने वीडियो कॉल के जरिए गाँव के मरीजों का भी इलाज किया।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए हर समय उपलब्धता
पहले मानसिक रोगियों को ‘पागल’ करार दिया जाता था, तो वहीं अब इन बीमारियों के लिए 24 घंटे की सेवा उपलब्ध है। ‘टेली-मानस’ एप की शुरुआत के साथ 24*7 टेलीफोन हेल्पलाइन शुरू की गई। इससे लोगों में बढ़ रहे अवसाद, चिंता, घबराहट और तनाव के साथ गंभीर मानसिक बीमारियों के लिए भी मदद मिलनी सुनिश्चित हुई।
इसके अलावा ‘वैक्सीन मैत्री’ के जरिए भारत ने न केवल देशवासियों की रक्षा की बल्कि दुनिया को भी COVID-19 से बचाने में अहम भूमिका निभाई। जब दुनियाभर में लोग संक्रमण की जद में आकर मर रहे थे उस समय देश में कोविडरोधी वैक्सीन तैयार हुई और लोगों की जान बचाई।
संकट की घड़ी में वैक्सीन मैत्री बना भारत
इसके साथ ही, COVID-19 महामारी के दौरान एक ओर बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जान गँवाई तो वहीं लोगों की जान बचाने के लिए CoWIN डिजिटल प्लेटफॉर्म की शुरुआत की। इस प्लेटफॉर्म पर 2.2 अरब से अधिक वैक्सीन खुराक को ट्रैक किया। इसके जरिए भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में अहम योगदान दिया।

वैक्सीन मैत्री की पहल के तहत भारत ने 100 से अधिक देशों को 130 मिलियन से अधिक वैक्सीन की खुराकें भेजीं। इससे वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में मजबूती लाने में भी भारत का नाम शामिल हुआ।
एक निश्चित तौर पर भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में मोदी सरकार ने एक मील का पत्थर स्थापित किया है। आम लोगों के लिए उनकी उंगलियों पर गंभीर और असाध्य बीमारियों के लिए भी विकल्प मौजूद कर दिए। साथ ही दूरस्थ से लेकर आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया करवाई। किसी भी अन्य सरकार की अपेक्षा मोदी सरकार ने इसे एक अलग स्तर पर पहुँचा दिया है।