2021 की 10 मई भारतीय राजनीति में एक नई लकीर खींच गया। असम में हिमंत बिस्वा सरमा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उसके पड़ोस के पश्चिम बंगाल में शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी ने अपने विधायक दल का नेता चुन लिया। इन फैसलों खासकर सरमा की ताजपोशी से बीजेपी ने झटके में वो धारणा खत्म कर दी, जिसके आधार पर अब तक माना जाता रहा था कि पार्टी बाहरी नेताओं को शीर्ष नेतृत्व की भूमिका नहीं देगी।
ऐसा नहीं है कि इस सोमवार को केवल सियासी पिच पर बीजेपी में ही हलचल रही। कॉन्ग्रेस की कथित शीर्ष नीति निर्धारक ईकाई सीडब्ल्यूसी (CWC) की बैठक भी हुई। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा, “समझना होगा कि हम केरल और असम में मौजूदा सरकारों को हटाने में विफल क्यों रहे? बंगाल में हमारा खाता तक क्यों नहीं खुला?” लेकिन, इन पराजयों से सीख की बजाए सोनिया ने पराजय के हर पहलू पर गौर करने के लिए एक छोटे समूह के गठन की बात कही। जैसा कि कॉन्ग्रेस की परंपरा रही है ऐसी किसी भी कमिटी की रिपोर्ट पर शायद ही कभी गौर किया जाता है। अमल तो दूर की बात है। इतना ही नहीं, कॉन्ग्रेस को उसका पूर्णकालिक अध्यक्ष कब तक मिल जाएगा इसको लेकर भी यह बैठक स्पष्ट तस्वीर खींचने में नाकामयाब ही रही।
We need to candidly understand why in Kerala & Assam we failed to dislodge incumbent govts & why in WB we drew a complete blank. These will yield uncomfortable lessons, but if we don’t face up to reality, if we do not look facts in face, we won’t draw right lessons: Sonia Gandhi
— ANI (@ANI) May 10, 2021
कायदे से इस बैठक में कॉन्ग्रेस को असम में सरमा की ताजपोशी से मिली सीख पर चर्चा करनी थी। सरमा कुछ साल पहले तक कॉन्ग्रेसी ही थे। राजनीति में उनकी एंट्री असम के कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री रहे हितेश्वर सैकिया ने कराई थी। पहला विधानसभा चुनाव हारने वाले सरमा तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेसी सरकार में मंत्री रहे। इसी दौरान असम की राजनीति में उनका उभार हुआ।
कहा जाता है कि कॉन्ग्रेस के दुर्दिन शुरू होने पर सरमा नेतृत्व की भूमिका की आस लेकर पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के पास गए थे। लेकिन, कथित तौर उन्होंने सरमा की बात सुनने से ज्यादा तवज्जो अपने कुत्ते के साथ खेलने को दी। आहत सरमा बीजेपी में चले गए। 2016 के असम विधानसभा चुनावों के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा दिया, ‘असम का आनंद, सर्बानंद’ और उस चुनाव का संयोजक बनाया गया सरमा को। उन चुनावों में बीजेपी को पहली बार असम की सत्ता मिली और सरमा मंत्री बने। लगातार 5 सालों तक उत्तर-पूर्व में वे बीजेपी के चेहरे बने रहे और पार्टी को कई राज्यों में सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई। 2021 के चुनावों में बीजेपी ने जब सत्ता बरकरार रखी तो पार्टी ने सर्बानंद सोनोवाल की जगह उन्हें राज्य की कमान सौंप दी है।
ऐसा नहीं है कि सरमा ऐसे पहले नेता हैं जो दूसरे दल से आकर भी बीजेपी में खुद को साबित करने में सफल रहे हैं। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। ऐसे में सरमा को आगे कर बीजेपी ने तमाम राज्यों में विपक्ष के उन संभावनाशील चेहरों को एक संदेश दिया है, जो अपनी पार्टी में छटपटा रहे हैं।
मसलन, सचिन पायलट जैसे नेताओं को एक तरह से संदेश दिया गया है कि आप हमारे साथ आइए। खुद को साबित करिए और नेतृत्व की भूमिका लेकर जाइए। मार्च 2020 में बीजेपी का हिस्सा बने ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं को जो महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पाने की प्रतीक्षा में हैं, उन्हें भी बताया गया है कि खुद को साबित करने वालों को कमान देने से अब पार्टी को गुरेज नहीं रही।
सरमा से पहले एन बिरेन सिंह जैसे कुछेक नाम हैं जो बीजेपी में आकर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। लेकिन, इन राज्यों में बीजेपी के पास न तो वैसा संगठन था और न वैसे नेता। असम या बंगाल जैसे राज्य में बीजेपी अरसे से संघर्षरत रही है। उसके पास संगठन और अपनी रीति-नीति वाले नेता भी रहे हैं। ऐसे में सरमा और अधिकारी को आगे कर बीजेपी ने उन तमाम राज्यों को भी संदेश दिया है जहाँ उसका संगठन बेहद मजबूत है और उसके पास नेताओं की लंबी कतार है। इससे पार्टी को फैलाव में और मदद मिल सकती है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले जब तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) छोड़ बीजेपी में आने की भगदड़ मची थी, तब शायद ही किसी ने ये अंदाजा लगाया था कि बीजेपी का राज्य में आने वाले समय में चेहरा टीएमसी से आया नेता होगा। राज्य में हालाँकि 3 से 77 सीटों पर पहुँचने के बावजूद बीजेपी अपेक्षित परिणाम हासिल करने में सफल नहीं रही। लेकिन, नंदीग्राम के मैदान में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को परास्त करने वाले अधिकारी को आगे कर उसने बता दिया है कि टीएमसी के लिए सत्ता के 5 साल आसान नहीं रहने वाले हैं। ध्यान रहे कि अधिकारी चुनावों से पहले तक ममता की कैबिनेट में थे। जिस नंदीग्राम ने टीएमसी को सत्ता का रास्ता दिखाया, वहाँ ममता को ले जाने और ताकत देने वाले भी अधिकारी ही थे।
Kolkata: Suvendu Adhikari, bJP MLA from Nandigram elected as the Leader of the Opposition in West Bengal Assembly pic.twitter.com/m85B2PVKtf
— ANI (@ANI) May 10, 2021
इसमें कोई दो मत नहीं है कि 2014 के बाद बीजेपी ने कई धारणाओं को तोड़ा है। राष्ट्रीय राजनीतिक फलक पर मोदी-शाह के उदय के बाद से वह हर चुनाव एक युद्ध की तरह लड़ती दिखी है। इसने भारतीय राजनीति के समीकरण और मायने उलटपुलट कर रख दिए हैं। ऐसे में सरमा और अधिकारी जैसों को आगे करना एक ऐसे राजनीतिक दल के लिए जो राष्ट्रव्यापी फैलाव के लिए हर सेकेंड जोर लगा रही हो, जो पूरे भारत पर छाने के लिए मिशन मोड में हो और जो इस सपने को पूरा करने के लिए एक पल भी विश्राम करने को तैयार नहीं दिखती, इससे बेहतरीन फैसला इन चुनावों के बाद शायद ही कुछ होता।