चुनाव आयोग ने शुक्रवार (25 सितंबर 2020) को बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया। तीन चरणों में मतदान होगा और 10 नवंबर को नतीजे आएँगे। बिहार में चुनावों की चर्चा के साथ ही जंगलराज और चुनावों के दौरान बूथ कैप्चरिंग का भयावह अतीत भी चर्चा में आ जाता है।
लालू प्रसाद यादव चुनाव के दौरान दावा करते रहते थे कि जब बक्सा खुलेगा तो उनका जिन्न निकलेगा। यानी, जब गिनती होगी तो नतीजे उनके ही हक में रहेंगे। लेकिन, 2005 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव ने बूथ कैप्चरिंग के इतिहास को दफन कर दिया। जब नतीजे आए तो कोई जिन्न नहीं निकला और लालू का 15 सालों से चला आ रहा राजपाट खत्म हो गया।
बिहार को बूथ कैप्चरिंग से निजात दिलाने वाले अफसर का नाम है, केजे राव। उन्हें 2005 के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। इसके बाद राव ने जो कुछ किया वह एक इतिहास है।
असल में राजनीतिक जोड़-तोड़ से 1990 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने वाले लालू ने ऐसा समीकरण गढ़ा कि अगले डेढ़ दशकों तक वही बिहार की राजनीति के धुरी बने रहे। उन्होंने एमवाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) बनाया था। 1995 में जब विधानसभा के चुनाव आए तो उन्होंने कहा, “बक्सा (मतदान पेटी) से जिन्न निकलेगा और सब पलट जाएगा।” जब नतीजे आए तो लालू के कहे अनुसार जिन्न बाहर निकला और उनकी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की। ये वो दौर था जब बिहार में चुनाव और बूथ कैप्चरिंग एक-दूसरे का पर्याय बन गए थे।
साल 2005 के पहले बिहार विधानसभा चुनावों में बाहुबलियों का प्रभाव अपने चरम पर था। राजनीतिक नुमाइंदे बेख़ौफ़ होकर बूथ पर कब्ज़ा करते थे और जनता मन मुताबिक मतदान करने में भी डरती थी।
ऐसे में प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि 2005 के चुनाव निष्पक्ष और नियमबद्ध तरीके से कराए जाएँ। चुनाव आयोग ने केजे राव को बिहार चुनाव के दौरान पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया। बिहार में फैले राजनीतिक आतंक को देख कर देख कर राव समझ चुके थे कि यहाँ राजनैतिक हालातों का ढाँचा अन्य क्षेत्रों जैसा नहीं है। अक्टूबर 2005 में होने वाले चुनाव से ठीक पहले उन्होंने राजधानी पटना में अधिकारियों की एक बैठक आयोजित की। दुबली पतली काया, चेहरे पर मोटा चश्मा, चेक शर्ट और गोल चेहरा। कुर्सी पर बैठने कुछ ही देर बाद उन्होंने एक कागज़ उठाया, जो चुनाव की तैनाती में शामिल अधिकारियों ने तैयार किया था।
उन्होंने एक दरोगा से अंग्रेजी भाषा में कहा, “ह्वाट इज़ द स्टेट ऑफ़ नॉन बेलेबल वारंटी।” दरोगा जी शांत, बल्कि पूरी सभा ही शांत! इसके पहले बैठक में शामिल होने वाला कोई और शख्स अपनी राय पेश करता राव ने चुनाव को लेकर एक गाढ़ी लकीर खींच दी। उन्होंने कहा “इस चुनाव में लुटेरों और बाहुबलियों मनमानी नहीं चलेगी। चुनाव का पैमाना केवल एक होगा, संविधान और क़ानून।”
उनके जीवन का एक किस्सा बहुत उल्लेखनीय है, 2005 बिहार चुनाव के दौरान वह गया स्थित पहाड़ी मतदान केंद्र पहुँचे। बूथ की छत पर एक जवान एलएमजी लेकर खड़ा था। राव ने उससे पूछा तो उसने स्थानीय बोली में जवाब दिया, “ई बार त बूथ लुटेरवन डरे झांकियों न मारतौ, गोली खाएला हई का।” एक पंक्ति में यही था 2005 का बिहार विधानसभा चुनाव। बिहार की जनता के लिए यह परिवर्तन अविस्मरणीय था। आलम यह हुआ कि जब केजे राव हेलिकॉप्टर से निकलते तो जनता उनके नारे लगाने लगती थी।
इस चुनाव पर राव ने कितनी गहरी छाप छोड़ी थी इसका अंदाजा आप एक सर्वे से लगा सकते हैं। चुनाव के बाद बिहारटाइम्स डॉट कॉम ने यह सर्वे किया। बिहार के लोगों ने उन्हें बदलाव का हीरो चुना था। राव को 62 फीसदी वोट मिला था, जबकि राजनीतिक बदलाव के चेहरे बने नीतीश कुमार को 29 फीसदी वोट ही इस सर्वे में मिले थे।
साल 2015 में एक समाचार समूह को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, “चुनाव से जुड़े हर रोग की एक ही दवा है। चुनाव आयोग के प्रस्तावों को सही तरीके से लागू किया जाए। यह बड़ी चुनौती है लेकिन इसके लिए युवाओं और विशेष रूप से महिलाओं को आगे आना होगा। जिन बूथों पर सेना के जवान नहीं मौजूद होंगे, वहाँ असल लोकतंत्र नज़र आएगा। 2005 से 2015 के बीच बहुत बदलाव नहीं आए हैं, अभी तक कई मूलभूत समस्याएँ हैं। मतदाता को निडर होकर घरों से बाहर निकलना होगा और बेहतर उम्मीदवार का चुनाव करना होगा। कोई उचित विकल्प न हो तो नोटा दबाएँ जो बाहुबली जनता को डराए, जनता उसे नोटा से डराए।”