Monday, November 4, 2024
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पहले सरकारी डॉक्टर, अब टीचर का बेटा… क्या बिहार में फिर शुरू हो गया जंगलराज वाला ‘अपहरण उद्योग’: लालू यादव के भतीजे पर भी रंगदारी माँगने का आरोप

कहा जाता है कि लालू यादव के शासनकाल में CPI-ML पर कार्रवाई के बाद उसे नीचे करके MCC को उभारा गया और राजद सरकार ने MCC के हर लेवल पर अपने लोगों को बैठवाया। आज भी बिहार में राजद गैंग के आतंक के आगे लोग इसलिए हथियार डाल दे रहे हैं, क्योंकि घुम-फिरकर उनके माओवादी नक्सली MCC से जुड़ाव सामने आ जाता है। वे थानों में जाने से रते हैं।

बिहार के पहले न्यूरो सर्जन दिवंगत डॉक्टर रमेश चंद्रा तब बिहार की राजधानी में रहकर प्रैक्टिस किया करते थे। एक दिन उनका अपहरण हो गया। इसके बाद बिहार भर के डॉक्टरों ने रमेश चंद्रा के समर्थन में हड़ताल कर दिया। हड़ताल को वापस लेने के लिए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी पति और पर्दे के पीछे के कार्यवाहक लालू प्रसाद यादव ने डॉक्टरों को धमकाना शुरू कर दिया था।

लालू यादव अपहृत डॉक्टर रमेश चंद्रा के मित्र और प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार को फोन पर धमका रहे थे। लालू कह रहे थे, “ऐ डॉक्टर… ई हड़ताल-उड़ताल बिहान बंद करावsss। हमार आदमी सब तहरा लोग के अस्पताल में कल आग लगा दी। तब हमरा के दोष मत दीहsss।” यह घटना है मई 2003 की। तब अजय कुमार ने कहा था, मैं सीएम कार्यालय आ रहा हूँ, आग लगाकर मुझे ही लहका (जला) दीजिए।”

जिसने लालू के उस दौर को देखा होगा, उसे अब भी बीते हुए बहुत ज्यादा दिन लग रहा होगा। लगभग एक दशक तक बिहार के आम लोगों से लेकर डॉक्टर-इंजीनियर और अधिकारियों तक में खौफ सवार था। हर तरफ बदहवासी और बेसहरापन था। जो भी था वो या तो भगवान भरोसे था या फिर अपराधियों के भरोसे या भी लालू यादव के राजद गैंग के भरोसे।

ये वो दौर था जब बिहार में हर अपराध संस्थागत रूप ले चुका था और उसके तार घुम-फिरकर तब की सत्ताधारी पार्टी राजद (RJD) के नेताओं से होते हुए यादव परिवार तक पहुँचता था। इस दौरान अपहरण उद्योग सबसे अधिक फला-फूला। जो पैसे वाले थे, उन्होंने करोड़ों की फिरौती देकर जान बचाई और जिनके पास पैसे नहीं थे, वे जान देकर बिहारी होने की कीमत चुकाई थी।

यह बिहार का अंधकार युग था। एक ऐसा अंधकार युग, जिसमें लालटेन की टीमटिमाती रौशनी के सहयोग से निशाचर शिकार करते थे। जंगलराज का खौफ और सन्नाटा हर तरफ दिखता था। शाम होते ही लोगों के चेहरे पर दहशत दिखने लगता था। जो लो सूरज के ढलने से पहले अपने घरों तक नहीं पहुँच पाते थे, वे रेलवे स्टेशनों, बसों या अपने जानने वालों के यहाँ रात बिताने की गुहार लगाते थे। ऐसा था 90 के दशक के बिहार का ‘जंगलराज’।

अब आप सोच रहे होंगे कि 25-30 साल पुरानी कहानी अब मैं क्यों सुना रहा हूँ, तो जानिए कि बिहार पर फिर सी उसी ताकत की काली साया मंडरा रही है, लेकिन थोड़ा रूप बदलकर। बिहार में जब से राजद के साथ नीतीश कुमार ने गठबंधन करके शासन शुरू किया है, तब से बिहार में वही ‘अपहरण उद्योग’ फिर से फलता-फूलता दिख रहा है। अपराधी हत्या जैसे वारदात को लगातार अंजाम दे रहे हैं।

राजधानी पटना से सटे बिहटा के कन्होली गाँव में एक शिक्षक के एकलौते बेटे को गुरुवार (16 मार्च 2023) को अपहरण कर लिया गया। अपहरणकर्ताओं ने शिक्षक से उसके बेटे के बदले 40 लाख रुपए की फिरौती माँगी है। अपहरणकर्ताओं ने धमकी दी है कि अगर पैसे नहीं दिए गए तो शिक्षक के बेटे की हत्या कर दी जाएगी।

शिक्षक का नाम राजकिशोर पंडित है। उनका एक ही बेटा है, जिसका नाम तुषार पंडित है। वह अपने घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा। इसके बाद ह्वाट्सएप के जरिए परिजनों से 40 लाख रुपए की माँग की गई। हालाँकि, परिजनों ने इसकी शिकायत थाने में की है।

ठीक दो दिन पहले छपरा में एक स्थानीय नेता और प्रॉपर्टी डीलर सुनील राय नकाबपोश अपराधियों ने हथियार के बल पर अपहरण कर लिया था। इस घटना में 5 संदिग्धों के शामिल होने की बात कही जा रही है। वहीं, पुलिस ने इस मामले में SIT का गठन किया है।

इतना ही नहीं, 13 मार्च 2023 को लालू यादव के भतीजे नागेंद्र राय ने पटना के बिल्डर नितिन कुमार से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी माँगी। इसके बाद बिल्डर ने एफआईआर दर्ज कराई। बिल्डर दानापुर-खगौल रोड स्थित जमीन पर एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बना रहा था। लालू यादव के भतीजे पर पहले से कई आपराधिक मामले लंबित हैं। वह अभी जमानत पर बाहर चल रहा है।

इसी तरह 4 मार्च 2023 को पटना में एक मोबाइल कंपनी के बड़े अधिकारी सुमन सौरभ को अपराधियों ने अपहरण कर लिया। इसके अगले दिन अपराधियों ने सुमन की माँ के पास ह्वाट्सएप मैसेज भेजकर 25 लाख रुपए की माँग की। उन्होंने धमकी दी कि अगर पैसे नहीं दिए गए तो सुमन सौरभ की हत्या कर दी जाएगी।

हाल में आया सबसे सनसनीखेज मामला एक डॉक्टर के अपहरण का है। 3 मार्च 203 को पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज में फार्मोकोलोजी विभाग के हेड डॉक्टर संजय कुमार का अपहरण कर लिया गया। संजय कुमार के साढ़ू UP में ADG लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार हैं। वहीं, उनकी साली डिंपल वर्मा IAS हैं।

अगर बिहार में ऐसे लोग सुरक्षित नहीं हैं तो एक आम आदमी की क्या बिसात है। बिहार के चंपा विस्वास कांड को लोग शायद ही भूले होंगे। बिहार में तैनात IAS अधिकारी बीबी विश्वास ने जब लालू यादव के करीबी राजद विधायक हेमलता यादव के बेटे मृत्युंजय यादव और उसके दोस्तों पर 2 साल में न सिर्फ उनकी पत्नी चंपा का, बल्कि उनके कई सम्बन्धियों का भी रेप करने का आरोप लगाया था। उसके बाद बिहार की राजनीति में कोहराम मच गया था।

सन 1983 के बॉबी हत्याकांड के बाद यह बिहार का सबसे बड़ा कांड था, जिसे छिपाने में पूरा प्रशासन लग गया था। चंपा विस्वास हर जगह अपनी फरियाद ले जाती रही, लेकिन तब केंद्रम में भी लालू यादव के प्रभावशाली होने के कारण उनकी कहीं नहीं सुनी गई थी। आईएएस होकर इतनी जलालत शायद ही किसी को झेलनी पड़ी होगी। ऐसा था बिहार का जंगलराज।

अक्सर ये सवाल पूछा जाता है कि जंगलराज एक शगूफा है, जिसे भाजपा एवं अन्य विपक्षी दलों ने गढ़ा है। हालाँकि, जो उस दौर को जीए हैं, वो भी इसे शब्दों में नहीं बयां कर सकते थे। शायद मुगल काल ऐसा ही रहा होगा, जहाँ लोगों को हर पल डर के साए में जीना पड़ता होगा।

सन 2019 में अमेरिका में स्वर्ग सिधारे रमेश चंद्रा के मित्र डॉक्टर अजय कुमार का कहना है कि उस समय अधिकारी के बजाय राजद का यादव गैंग काम करता था। यही लोग राज चलाते थे और लालू उनके संपर्क में रहते थे। उस समय राबड़ी मुख्यमंत्री भले थीं, लेकिन लालू यादव के इशारे के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था। कहा जाता था कि हर अपहरण की वसूली के पैसे में सीएम हाउस तक हिस्सा जाता था।

लालू यादव उस दौरान अपने कैडरों वाले इलाकों में होने वाली रैलियों में अक्सर कहा करते थे, “मैं इसलिए तुम्हारे यहाँ रोड नहीं बनवा रहा हूँ कि पुलिस ना घुस पाए।” जाहिर है कि लालू यादव इशारों-इशारों और मजाक-मजाक में ही वो हकीकत कह दिया करते थे, जो उनके सियासत का आधार था। राजद के शासन में बिहार में हर तरफ अपराधियों को संरक्षण दिया, तो कई नेताओं को किनारे भी लगाया गया।

लालू के कार्यकाल में विधायक अजीत सरकार, विधायक देवेंद्र दुबे, बीपीपा उम्मीदवार छोटन शुक्ला और मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की खुलेआम हत्या कर दी गई। यही नहीं, राज्य में जाति हिंसा को खूब बढ़ावा दिया गया। कहा जाता है कि CPI-ML पर कार्रवाई के बाद उसे नीचे करके MCC को उभारा गया और राजद सरकार ने MCC के हर लेवल पर अपने लोगों को बैठवाया। आज भी बिहार में यादव गैंग के आतंक के आगे लोग इसलिए हथियार डाल दे रहे हैं, क्योंकि घुम-फिरकर उनके माओवादी नक्सली MCC से जुड़ाव सामने आ जाता है।

राजद के जंगलराज में जातीय हिंसा अपने चरम पर थी। लालू यादव ने खुलेआम भूरा बाल (भूमिहार, राजपूत, बाभन, लाला) को साफ करने का ऐलान किया था। वो खुद को शोषितों का मसीहा साबित करने के लिए कथित उच्च जातियों पर खूब जुल्म किए। ईचरी, सेनारी, लक्ष्मणपुर बाथे जैसे नरसंहार को अंजाम दिया जाता था। लोगों की जमीनों पर जबरन झंडा गाड़कर कब्जा करने की कोशिश की जाती थी और विरोध करने वालों को गोली मार दी जाती थी।

लालू और राबड़ी यादव के शासन में तो लालू के सालों- साधु यादव और सुभाष यादव के आंतक से पूरा बिहार परेशान था। कहा जाता है कि लालू यादव की एक बेटी की शादी के दौरान साधु यादव से एक कार शोरूम से जबरन कई कार उठवा लिए थे। इसी तरह साल 2001 में लालू के साले साधु और उनके आदमियों ने IAS अधिकारी एनके सिन्हा पर बंदूक भिड़ा दी और जबरन एक ऑर्डर पास करवा लिया था।

लालू के सबसे मजबूत साथियों में से एक कुख्यात शहाबुद्दीन को कौन भूल सकता है। शहाबुद्दीन खुलेआम हत्याएँ और रंगदारी वसूल करता था और उसे रोकने वाला कोई नहीं था। बिहार में हुई हत्याओं का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2000 से 2005 के बीच, सिर्फ पांच साल में ही 18,189 हत्याएँ हुईं। इस हिसाब से 15 सालों में 50,000 से अधिक हत्याएँ हुईं। वहीं, 1992 से 2004 तक बिहार में अपहरण के 32,085 मामले सामने आए।

एक बार फिर बिहार में सत्ता राजद के पास जाते ही यही खूनी खेल शुरू हो गया है। अपहरण की कई कहानियाँ तो हमने ऊपर बता ही दिया। छपरा के मुबारकपुर में एक राजद नेता के संरक्षण में रहने वाला विजय यादव नाम का एक मुखिया के पति ने अपने ही गाँव के तीन लोगों को पकड़ कर इतना मारा कि तीनों की बाद में मौत हो गई। तीनों लड़के सवर्ण जाति से थे। इस तरह की छिटपुट घटनाएँ बिहार में हर तरफ हैं, लेकिन 90 के दशक को देखने वाले लोग ही इसे समझ पा रहे हैं। लालू-राबड़ी भले चेहरा नहीं है, लेकिन तेजस्वी और उनका कैडर अब भी वही है।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

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