Friday, March 29, 2024
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भारत की घरेलू नीति तय करे अमेरिका: यूपीए जमाने में NSA रहे शिवशंकर मेनन

मेनन ने अपने लेख में कई झूठे दावे किए हैं। उन्होंने लिखा कि मोदी सरकार ने संप्रदाय विशेष अप्रवासियों को नागरिकता के दायरे से बाहर रखा है। मेनन ने यह सीएए के संबंध में लिखा है। लेख के मुताबिक़ यह क़ानून संप्रदाय विशेष के अधिकार और उनकी नागरिकता छीन लेता है।

शिवशंकर मेनन मनमोहन सिह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) होते थे। उन्होंने अमेरिकी प्रकाशन समूह Foreignaffairs.com के लिए एक लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने मोदी और ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिकी संबंधों पर चर्चा की है। साथ ही कहा है कि भारत की घरेलू नीतियॉं अमेरिकी सहमति से तैयार होनी चाहिए। मेनन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विश्वस्त लोगों में गिने जाते थे और यूपीए सरकार के कई मंत्रियों का भरोसा उन्हें हासिल था।

शिवशंकर मेनन के इस लेख का शीर्षक है “League of Nationalists: How Trump and Modi Refashioned US-Indian Relationship” (राष्ट्रवादियों का संघ: कैसे मोदी और ट्रंप ने भारत और अमेरिका के संबंधों का नव-निर्माण किया)। लेख में मेनन ने लिखा कि मोदी और ट्रंप ज़्यादातर मुद्दों पर एक साथ इसलिए नज़र आते हैं, क्योंकि उनकी कई बातें एक जैसी हैं।   

दोनों इजरायल के न्येतन्याहू, सऊदी अरब के मोहम्मद बिन सलमान और ब्राज़ील के बोल्सोनारो को पसंद करते हैं। दोनों विदेश नीति को लेकर फ़ायदे देने और फ़ायदा मिलने की मानसिकता पर काम करते हैं। मेनन ने कहा मोदी और ट्रंप में सब कुछ इतना सही होने का एक और कारण है। दोनों बाँटने वाले एजेंडे की भरपाई करने के लिए राष्ट्रवाद को आगे कर देते हैं।

मेनन ने अपने लेख में सारा ज़ोर इस बात पर दिया है कि ट्रंप (और उनके सहयोगी) कितने बुरे काम करते हैं और कितने बुरे हैं। उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों और व्यापार संबंधी मुद्दों में आए बदलावों का विस्तार से ज़िक्र किया है। लेकिन यह नहीं बताया कि कैसे अमेरिका और उसके सहयोगी देश बुरे या गलत हैं। मेनन ने जितनी बातों-बदलावों का उल्लेख किया है, उनमें से ज़्यादातर पर चर्चा हो चुकी है।   

ये वे बदलाव थे जिन्हें रास्ते पर लाने के लिए दोनों देशों की सरकारें काफी समय से कार्यरत थीं। अपनी बात साबित करने के लिए मेनन ने भारत और मोदी सरकार की नीतियों को लेकर कई झूठी बातें कहीं। ऐसे दावे करते हुए मेनन ने राष्ट्रहित के मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया और देश की संप्रभुता को भी कमज़ोर किया। इतना कुछ सिर्फ और सिर्फ कुछ राजनेताओं (अमेरिकी) को लुभाने के लिए किया गया है।           

शिवशंकर मेनन के लेख का अंश

इसके अलावा भी मेनन ने अपने लेख में कई झूठे दावे किए हैं। उन्होंने लिखा कि मोदी सरकार ने संप्रदाय विशेष के अप्रवासियों को नागरिकता के दायरे से बाहर रखा है। मेनन ने यह सीएए के संबंध में लिखा है। जिसमें भारत सरकार ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान के धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को शामिल किया है। उनके लेख के मुताबिक़ यह क़ानून संप्रदाय विशेष के अधिकार और उनकी नागरिकता छीन लेता है। यहाँ तक कि उन्हें नागरिकता के लिए आवेदन करने से भी प्रतिबंधित करता है।   

यह एजेंडा भारत के भी तमाम वामपंथी सामाजिक समूहों, कॉन्ग्रेस के नेताओं, पाकिस्तान, कुछ अमेरिकी डेमोक्रेट, यूके की लेबर पार्टी और लिबरल्स ने भी चलाया था। जबकि सच यह है कि सीएए का भारत के नागरिकों से कोई संबंध नहीं है। चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का व्यक्ति क्यों न हो। न ही यह क़ानून भारत की नागरिकता के लिए आवेदन प्रक्रिया पर कोई प्रभाव डालता है। वह व्यक्ति भी भले किसी धर्म का क्यों न हो। इसका मतलब यह है कि मेनन ने अपने लेख में जितने दावे किए वह पूरी तरह झूठे हैं और उनका कोई आधार नहीं है।   

इसके बाद मेनन ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर भी इसी तरह के दावे किए हैं। इस अनुच्छेद के हटने से जम्मू-कश्मीर के आम नागरिक भारत का अभिन्न अंग बन गए और संविधान के दायरे में आए। उन्हें भी भारत के आम नागरिकों की तरह अधिकार और नागरिकता मिलेगी। चाहे वह किसी धर्म, समुदाय, लिंग, जाति या समूह के क्यों न हों। यूपीए सरकार के पूर्व सुरक्षा सलाहकार की बातों से साफ़ है कि भारत राज्य (विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर) को एक खुफ़िया नियमावली के तहत गवर्न करना चाहिए। जिसे संप्रदाय विशेष के लोग तैयार करें और जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए अधिकार न मिलें।   

शिवशंकर मेनन ने मोदी और ट्रंप को गलत क्यों कहा इस संबंध में उन्होंने आगे भी कई बातें लिखी हैं। उनके मुताबिक़ ट्रंप ने कभी मोदी की घरेलू नीति का विरोध नहीं किया, बल्कि मोदी की बाँटने वाली नीति को फ्री पास (हरी झंडी) दिया था। ऐसे कुछ ही डेमोक्रेट थे जिन्होंने मोदी की इस नीति का विरोध किया था। इसमें प्रमिला जयपाल और रो खन्ना जैसे डेमोक्रेट शामिल थे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि शिवशंकर मेनन को ऐसा क्यों लगता है कि भारत सरकार जो लोकतांत्रिक रूप से चुन कर आई है, उसे अमेरिका की इजाज़त, मूल्यांकन और स्वीकृति की ज़रूरत है। 

प्रमिला जयपाल समेत जितने भी डेमोक्रेट थे उन्होंने हमेशा से भारत की घरेलू नीतियों को लेकर भारत सरकार पर दबाव बनाया था। इसमें मुख्य रूप से अनुच्छेद 370 और सीएए क़ानून शामिल था। इस मुद्दे पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका के उस प्रतिनिधि मंडल से बैठक के लिए इनकार कर दिया था।   

मोदी सरकार ने इस मामले पर भी अपना मत एकदम स्पष्ट रखा है कि वह किसी विदेशी नेता के सामने नहीं झुकेंगे। यूके की लेबर पार्टी ने भारत के अनुच्छेद 370 हटाने पर भारत सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। जिस पर भारत सरकार का स्पष्ट तौर पर कहना था कि वह बाहरी देशों की सहमति-असहमति के आधार पर घरेलू नीति नहीं तय करेंगे। 

शिवशंकर मेनन जनवरी 2010 से लेकर मई 2014 तक यूपीए सरकार में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं। फ़िलहाल क्राइसिस ग्रुप में बतौर बोर्ड ट्रस्टी हैं और जॉर्ज सेरोस उनके साथी हैं। जॉर्ज सेरोस, तथाकथित ‘प्रगतिशील समाजसेवी’ हैं जो अपने गैर सरकारी संगठनों और एजेंसी की मदद से दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल देते हैं।   

उन्होंने साफ़ तौर पर कहा था कि उनका संगठन भारत के राष्ट्रवाद के खिलाफ लड़ेगा। दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की बैठक में जॉर्ज ने कहा था कि उन्होंने राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादियों से लड़ने में 1 बिलियन डॉलर खर्च करेंगे। जॉर्ज का कहना था कि नरेंद्र मोदी भारत को एक राष्ट्रवादी हिंदू देश में बदलना चाहते हैं। जॉर्ज की संस्था ओपन सोसायटी फाउंडेशन के तहत कई एनजीओ भारत में काम कर रहे हैं।   

हर्ष मंदर इस संस्था के तहत आने वाले ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव एडवाइज़री बोर्ड के चेयरमैन हैं। इस संस्था ने इस्कॉन के अक्षय पात्र से लेकर भारत के अभिव्यक्ति से संबंधित क़ानून का खूब दुष्प्रचार किया है। इतना ही नहीं संस्था ने रोहिंग्या संप्रदाय विशेष के लोगों को भी बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद की है। इस संस्था ने शिक्षा के अधिकार को लागू किए जाने का भी विरोध किया था। इस संस्था ने भारत की क्षेत्रीय अखंडता तोड़ने की भी बराबर कोशिश की।      

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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