देश की राजधानी दिल्ली में रविवार को हिंसा की हुई। सोमवार को इसने भयावह रूप ले लिया। नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में कई जगहों पर आगजनी-पत्थरबाजी हुई। गोलियॉं चलाई गई। अब तक पॉंच लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। मंगलवार की सुबह भी मौजपुर और ब्रह्मपुरी में पत्थरबाजी तथा आगजनी की घटना हुई। दिल्ली की सड़कों पर हिंसा की शुरुआत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत आने से ठीक पहले हुई। उनके अहमदाबाद में लैंड करने के बाद हिंसा तेज हो गई।
इसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि भारत की छवि खराब करने के लिए ट्रंप के दौरे को हिंसा के लिए सोच-समझकर चुना गया है। आखिर क्यों जब ट्रंप अहमदाबाद में दुनिया को इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ संदेश दे रहे थे देश की राजधानी तेजी से भभक उठी? इसके पीछे किसका हाथ है? ये किसकी साजिशें हैं?
हिंसा की पूरी जॉंच के बाद ही तस्वीरें स्पष्ट हो पाएँगी। फिलहाल जो वीडियो, तस्वीरें सामने आई हैं उससे जाहिर है कि सुनियोजित तरीके से यह सब अंजाम दिया गया है। 20 साल पुरानी एक घटना पर गौर करें तो हालात और स्पष्ट हो जाते हैं।
दरअसल, आज से बीस साल पहले यानी साल 2000 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत आए थे। उस समय भी देश में बीजेपी नीत एनडीए सरकार आज की तरह ही थी। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के मुखिया थे। उस समय क्लिंटन का भारत दौरा दो कारणों से महत्वपूर्ण माना जा रहा था। कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने पहली बार सार्वजनिक तौर से भारत का पक्ष लिया था। दूसरा, करीब 22 साल बाद कोई अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे। क्लिंटन 5 दिन (19-25 मार्च) भारत में रुके। आगरा, हैदराबाद, मुंबई, जयपुर और दिल्ली का भ्रमण किया था। संसद को संबोधित किया था। ऊर्जा व पर्यावरण संधि पर हस्ताक्षर किए थे।
मगर, उसी दौरान श्रीनगर से 70 किलोमीटर दूर दक्षिण में अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपुरा गाँव में जहाँ 200 सिख परिवार रहते थे, वहाँ से एक हृदयविदारक खबर आई। सूचना मिली कि 20 मार्च, 2000 की रात गाँव में बिजली नहीं थी और स्थानीय निवासी रेडियो पर अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पाँच दिन की भारत यात्रा की खबरें सुन रहे थे। तभी शाम को 7 बजकर 20 मिनट पर 40 से 50 आतंकवादी गाँव में घुस आए और उन्होंने जबरन सिख लोगों को घरों से बाहर निकालना शुरू कर दिया। सिखों को कुछ आगे समझ आता कि अचानक उन्होंने अपनी ऑटोमेटिक बंदूकों से गोलियाँ दागनी शुरू कर दी। अगले ही पल 35 लाशों का ढेर लग गया और बाद में एक व्यक्ति ने अस्पताल में दम तोड़ा। सामूहिक नरसंहार के इस तांडव में सभी लाशें सिख समुदाय के लोगों की थी।
इस घटना के उजागर होने के बाद सुरक्षा सलाहकार रहे बृजेश मिश्र ने दावा किया कि यह काम लश्कर-ए-तय्यबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन का है। और, नरसंहार के अगले दिन पाकिस्तान के विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार ने दोनों आतंकी समूहों के समर्थन में बयान दे दिए। बता दें, सत्तार वही शख्स हैं, जो भारत के ख़िलाफ़ गतिविधियों के लिए पूरे दक्षित एशिया में कुख्यात रहे हैं।
बर्बरता की उस रात निहत्थे सिखों को दो समूहों में खड़ा किया गया था। उनमें से एक आतंकी पास के ही गाँव का रहने वाला था। उसे एक सिख ने पहचान लिया। गोलीबारी से पहले उसने आतंकी से पूछा ‘चट्टिया तू इधर क्या कर रहा है’? दरअसल चट्टिया एक आतंकी मोहम्मद याकूब का उपनाम था। इस वाकए के दो दिनों के अन्दर ही याकूब सुरक्षा बलों के हत्थे चढ़ गया। हिरासत में उसने बताया कि वह मुजाहिद्दीन के साथ काम करता हैं। नरसंहार वाले दिन वह लश्कर के एरिया कमांडर अबू माज के साथ छत्तीसिंहपुरा आया था। छह फीट लंबा पाकिस्तानी अबू माज ही लश्कर के चार आतंकियों शाहिद, बाबर, टीपू खान और मसूद को लेकर आया था। कश्मीरी मुजाहिद्दीन आतंकियों को इकठ्ठा करने की जिम्मेदारी गुलाम रसूल वानी उर्फ सैफुल्ला के पास थी।
उस दर्दनाक और क्रूर रात की यादें आज भी वहाँ के लोगों के जेहन में जिंदा हैं। उस खौफनाक मंजर को शायद ही कोई भुला सकता हैं। कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह दर्द कैसे झेला गया होगा। साम्प्रदायिक नरसंहार की सबसे बड़ी घटनाओं में से यह एक थी।
उल्लेखनीय है कि आज भी 20 साल बाद वही सब दोहराया जा रहा है। कुछ नहीं बदला है। तब क्लिंटन का दौरा था, आज ट्रंप दौरे पर हैं। तब भी भारत-अमेरिका का संबंध नया मोड़ ले रहा था, आज भी दोनों मुल्कों के संबंधों में नई गर्मजोशी दिख रही है। जाहिर है, दिल्ली में जो कुछ हुआ है वह अचानक नहीं हुआ है। इसके पीछे साजिशें गहरी हैं।