पत्रकारिता के समुदाय विशेष की एक मजदूर यूनियन है- नाम है एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इण्डिया। इसके अध्यक्ष हैं शेखर गुप्ता। शेखर गुप्ता ‘राजीव गाँधी जवान थे, बाल-बच्चों वाले थे, देश के सबसे महत्वपूर्ण जंगी जहाजों को टैक्सी बना भी लिया तो क्या?’ जैसे तर्क देते हैं, और ‘हिन्दू प्रतिमाओं से मुस्लिम बेचैन हो जाते हैं’ जैसी बातें छापने वाला प्रोपेगंडा पोर्टल ‘द प्रिंट’ चलाते हैं।
उनकी एडिटर्स गिल्ड म्याँमार में पत्रकारिता के नाम पर हस्तक्षेप कर रहे रॉयटर्स के विदेशी पत्रकारों को जेल भेजे जाने की निंदा करती है, पत्रकारों से सोशल मीडिया पर आम आदमी के सवाल पूछ लेने और खरी-खोटी सुना दिए जाने पर, क्विंट के ऊपर पड़ने वाले आयकर विभाग के छापे पर चिंता प्रकट करती है। लेकिन जब देश के पूर्व केंद्रीय मंत्री और कॉन्ग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर एक पत्रकार से बदतमीजी से बात करते हैं, उसे ‘आई विल किल यू’ कहते हैं, उसका माइक झटक देते हैं, कैमरे पर ‘फ़क ऑफ़’ बोलते हैं तो एडिटर्स गिल्ड को साँप सूँघ जाता है। इसलिए कि ‘दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है।’
Look at the way Mani Shankar Aiyar is treating Journalists.
— Chowkidar Ankur Singh (@iAnkurSingh) May 14, 2019
Almost slapped them. Said Fuck Off!
But ‘Ecosystem Journalists’ and Editors Guilt will remain silent. HUA TOH HUA pic.twitter.com/lHAdHzEF4W
पहले भी एडिटर्स गिल्ड का व्यवहार दोहरा
एडिटर्स गिल्ड ऐसे ही दोहरे चाल-चरित्र के लिए बदनाम है। #MeToo मूवमेंट के समय में एमजे अकबर, जो कि अब पत्रकार थे भी नहीं, नेता बन चुके थे, के खिलाफ निशाना साधा लेकिन विनोद दुआ के मामले पर सन्नाटा बाँधे रहे। इसलिए कि एमजे अकबर अब भाजपा सरकार के मंत्री थे, जबकि विनोद दुआ हर रोज भाजपा के खिलाफ जहर उगलते हैं।
जैसा कि हमने बताया, अपने दोहरे व्यवहार पर सोशल मीडिया में उठते हर सवाल को ‘अब्यूसिव बिहेवियर विद् जर्नलिस्ट्स’ के लेबल के साथ यह हौआ बना देते हैं। और जब अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी के संवाददाताओं को तृणमूल के कार्यकर्ता असल में मारते-पीटते हैं, तो यह गैंग मुँह पर उँगली रख लेता है।
Since TMC gundas of Mahataghbandhan allegedly attacked @republic crew in Bengal today , do not expect Editors guild to even take notice of that.
— Pawan Durani (@PawanDurani) April 29, 2019
Have a good day.
ANI की सम्पादिका स्मिता प्रकाश ने नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया तो राहुल गाँधी ने उनपर सस्ते हमले करने शुरू कर दिए। उस समय एडिटर्स गिल्ड ने बयान तो जारी किया लेकिन साफ़ पता चल रहा था कि यह कॉन्ग्रेस नहीं, भाजपा के खिलाफ था। एक वाक्य में स्मिता प्रकाश पर राहुल गाँधी के हमले को ‘नोट’ भर करने वाला उनका बयान पूरी तरह भाजपा को घेरने के लिए था। और-तो-और, ‘अपने लोगों’ की सोशल मीडिया आलोचना न सह पाने वाला यह गैंग स्मिता प्रकाश को ‘प्रवचन’ देता है कि पत्रकारों को आलोचना से परे होने का गुमान नहीं पालना चाहिए।
The Editors Guild of India has issued a statement. pic.twitter.com/XJ8OAylXxx
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) January 3, 2019
यह बयान आया भी अरुण जेटली के ललकारने के बाद ही था।
Why are the pseudo liberals silent? Waiting for the Editors guild’s response.
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) January 3, 2019
पी चिदंबरम ने भी जिस बुरी तरह शेखर गुप्ता के ही द प्रिंट की ज्योति मल्होत्रा को झिड़का, वैसा अगर किसी भाजपाई ने किया होता तो अब तक मोमबत्तियाँ निकल आईं होतीं, और इंडिया गेट पर मार्च शुरू हो गया होता। लेकिन चूँकि चिदंबरम ‘माई-बाप’ थे तो एडिटर्स गिल्ड को भी अस्थमा हो गया, आवाज नहीं निकली।
HAHHAHAAHHA Lol. Must watch. pic.twitter.com/UGWDtXqWxJ
— Satya Paul Sabharwal (@satyasabharwal) February 12, 2019
मीडिया को हेडलाइन मैटीरियल न मिले तो लोकतंत्र रुक नहीं जाता: नरेंद्र मोदी
एडिटर्स गिल्ड और पत्रकारों के इसी चरित्रहीन चरित्र के सबसे बड़े भुक्तभोगियों में एक भारत के प्रधानमंत्री पद पर बैठा है। इसी गिल्ड के लोगों ने 12 साल उसे हर तरीके से खून का प्यासा दरिंदा दिखाने की कोशिश की। फिर जब हार गए और वह पीएम बन इनकी छाती पर मूँग दलने आ ही गया तो पहले दिन से उसके कार्यकाल को असफल घोषित कर बदनाम करने की कोशिश की- केवल इसलिए कि मलाई कटनी बंद हो गई, अवैध रूप से, लीक होकर आ रहीं खबरों से हेडलाइन मिलनी बंद हो गई। इसीलिए जब उस व्यक्ति को अपनी बात कहने, अपनी भड़ास निकालने का मौका मिला तो उसने भी बता दिया कि मीडिया को हेडलाइन मैटीरियल न मिले तो लोकतंत्र रुक नहीं जाता।